Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447250 times)

devbhumi

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मयारू  ऊ अप्डू

म्यार अग्ने बी कुई निछ
म्यार पिछने बी कुई निछ
बल बस जी छै जो बी
निलू  अगास छ
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

हैरी भैरी गैरी धरती
एक खुटा अग्ने छ
एक खुटा पिछने छ,कै बाटा  च जाणि
कै बाटा वा अब हिटने छ
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

अग्ने उजालु  छया जी
पिछने अंद्यारु छया,यखुल मां बैठी
सोची मिल वा जून
किलै यखुलि  हैसनि छया
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

मयारू  ऊ अप्डू बिरड़ी
अध् बाटू वा कख हर्चिग्या
पञ्च बरसा को बसंत
ऐ बरसा को बितीग्या
म्यार अग्ने बी कुई निछ ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अबी बी रखियुं छ धरियुं

अबी बी रखियुं छ धरियुं
जख हमल बालपना मां लुकाई छ्या
माया कि गेड़ी बी ऊनि छ्या
जन हमल गेंठी छ्या

छ्वट बटी पाली जैथे
अब ऊ खूब बड़ो ह्वैगे होलु
इंकुलवास को मेरु डालो
खूब अब ऊ मौलीगे होलु 

अचाणचक हात आई
खत कैरी कि ऊ निसडी गैई
नीयती अगन्या पिच्न्या
जीबन यन ही मजबूर राई

चिमनी झालौ कलैग्याई
मुखड़ी का सुपनिया हैंसदा राई
अपणू पुटक पळण खातिर
क्दगा राति बुकि सैईग्याई

अबी बी रखियुं छ धरियुं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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 मेरी बोई

बोई मेरी , मेरी बोई
अबि बी जग्वाळ कनि चा
यखुली मां बैथि बैथि
ऊ मेरु  ख़ैयाळ कनि चा

अफी स्वाळ  कैकी वा
अफी  जवाब देणी चा
आँखु का आंसु पोस्दा पोस्दा
वा मिथे रैबार  देणी चा

माया विंकी ईनि घहरी तिसी
विंकी सौली मां ऐ उमरी बीति
फिर बी रैगे मेर गौलि  तिसी
आँखि रैगे बल जी मेर भिजि

आज आई विंकी खुद खूब दौड़ी
वा आई सबि धाणी थे झट छोड़ी
कपला मां दिल विं दिं बुकी
मलास दीं विन माथा छूछा कैकि

बोई मेरी , मेरी बोई  ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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छोरी

तू इतगा सुंदर छै  छोरी मि क्या बोलों
हर्चिगे म्यारा पासा का सबि  आखर
मि ऊथे कख खोज्यूँ 

एक बारी देखि ले छोरी  इन नरगिसी आंख्युं न
इन आंख्युं  की भाषा मि बी
जणदू  छौ  छोरी

ते दगडी मेरी पैली  भेंट मिथे  इन लगणी  छे 
सात  जळमा  कि  कुई मेरी  अपुरी
आस छे तू छोरी

तू इतगा सुंदर छै  ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरु पैली लेखी  कबिता

मेरु पैली लेखी  कबिता किलै कि  आखेर ह्वैगयाई
कतगा दौड़ी दौड़ी मि इखलु  कपाली मुंडेर ह्वैगयाई !

भुंया बिखरयां पड्यां  गार ढुंगा  मेरु गैला ह्वैगयाई
फुण्ड  उनद चुलैदे मिल  गार ढुंगा मेरु खेळ ह्वैगयाई !

दुई आंख्युं झौळ  पौड़ी भुंईयां भंडया मैला ह्वैगयाई
कैर  कुडदा कुडदा ऐ  जिन्दगी किलै फेल  ह्वैगयाई !

फोन लगाण कोशिश जुटयां रयाँ औरृ रूमक ह्वैगयाई
अंध्यारु दियू  बलिगे इन लागि कि सुबेर ह्वैगयाई !

मेरु पैली लेखी  कबिता  ....

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खुद थे बदली बदली

खुद थे बदली बदली
म्यारा तौर तरीका बदली गैना

बगत थे इन ना बदनाम करयां
बल जी बस ऐ इंसान बदली गैना

रवाटा को एक टुकड़ा खातिर
मयारू  संसार बदली गैना

इन रितू का नि राखी ख्याल हमुळ
 ऐ जीबन को चाळ बदली गैना

कै छोर खड़याँ छन हम सबि आज
म्यारा पहाड़ बदली गैना

खुद थे बदली बदली  ..................

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मिथे त इन लागि गैल्या

मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई
म्यारा डंडा धारू मां
कण क्वै ऐ उजाड़ा ह्वैग्याई

सड़की का घेर ईनि घेरयाँ
देखि कि मि त पुरतु चकरी ग्याई
इन घेरों  मां घिरयां हम
हम थे कुच बी समझ नि आई

उन्का इन रिंग रिंगया देखि
कि मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

अगास मां उडद चखुला देखि कि
मिल बी अप्डू पंख फैलेद्याई
इन लमडी मि उन भेटको भतेक
अब बी जोड़ तोड़ मेरु थिक ना व्हाई

दागटरों की फौज देखि की देरहादुन मां
मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

शिक्षा को बल इन हाल च
कख एक विधार्थी चार मास्टर छन
कख चालीस विधार्थी छन
बस  बल जी एक हेडमास्टर छन

इन दूर ब्यवस्था को  देखि कि
मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

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अपने से ही

अपनी ही कमियों को
अब मैं यूँ छुपाने लगा हूँ 
मिल जाये अगर  कोई मुझे
गुस्सा अपना उतारने लगा हूँ

कितना बदल गया हूँ मैं
खुद से ही  महसूस होने लगा  है
खुद से ही अब खुद मैं
जब  बहुत दूर  जाने लगा हूँ

बातें मेरी सब झूठी थी
मुझे अब वो आ  सताने लगी है
उस झूठी मेरी हंसी के लिये
आकर मुझे  वो रुलाने लगी है

पल पल तड़पता हूँ मैं
अपने ही में अब मचलता हूँ मै
उन सारे गुन्हों से करके  तौबा
जब अकेले खुद आगे बढ़ता हूँ मैं

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फसक पहाड़ों की

पुरानी  यादें  पहाड़ों की
फिर बुलाती  है मुझे
अकेले में आकर क्यों
वो फिर रुलाती है  मुझे

आज जगना चाहता हूँ
उसे और पढ़ना चाहता हूँ
उस टूटे हुये पुल से
आज फिर गुजरना चाहता हूँ

वो मसूरी के किस्से
वो मेरे छूटे पहाड़ के हिस्से
उस भूले बिसरे बचपन से
आज फिर मैं जुड़ना चाहता हूँ

यूँ ही बरसती रहे  वो तसव्वुर में
मेरे हिर्दय के किसी तरनुम में
अनसुलझे से मेरे सवालों को
वो एक हल्का जवाब  दे जाये

कोई आहट सुनाई देती है
मै  झट से अब चौंक जाता हूँ
अपने को जब मै अपनों में पता हूँ
फिर सकून से  मैं सो जाता हूँ

पुरानी  यादें  पहाड़ों की

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हर्चि राजधानी  बाटा देखणी चा

सबि का सबि  लुबाड़ छिन
हे नेता मेरा पहाड़ का ना ना
(सबि का सबि ऐ दुट्याल छिन) ...२

कथा इनकी इन अपुरि चा
सत्ता मिलि बल जनता धूलि च
अपड़ो समझी बिस्वास कैरी
घात कै जांदी ना लगदी इन थे देरी

ज्यू बी सिरमौर यख ह्वै जांदू
सत्ता का सुख मां किले बिसरि जांदू
कुछ वादा किया छन तुमल
ना गद्दी द्याई हमलु तुम थे घुमण

गैरसैण तुमरि बाटा हेरनी चा
जीकोडी की तुमरी उल्यार देखणी चा
शहीदों का परान इन आस लगेनि
अपड़ा पहाड़ा की  वा बाट देखणी चा

मेर हर्चि राजधानी .....गैरसैण
 
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