एक अकेला
एक अकेला इस देश में
कभी मंदिर में कभी मस्जिद में
उस रचेता को ढूंढता है
बस ढूंढता है
दिन खाली खाली बवंडर
रात जैसे बस सोच का कुआं
इस झूठ और सच की लड़ाई में
दुओं का असर क्यों कमजोर पड़ा
अपना यंहा पर कोई मिलता नहीं
जो भी मिला वो अनजान मिला
एक अकेला इस देश में
कभी मंदिर में कभी मस्जिद में
उस रचेता को ढूंढता है
बस ढूंढता है
इन शून्यहीन रंगों की गर्दी में
हर रंग यंहा पर भागों भागों में बँटा मिला
किसी का रंग यहां पर हरा हुआ
तो किसी का रंग भगवा से रंगा मिला
दूर लहराते उस तिरंगे पर
सैनिक की शाहदत का ही नाम लिखा मिला
एक अकेला इस देश में
कभी मंदिर में कभी मस्जिद में
उस रचेता को ढूंढता है
बस ढूंढता है
भेद भाव आज कल इतना दिखता नहीं
जात पांत का मुद्दा क्यों फिर रह रहकर उठा
पहाड़ों से पलायन होते सड़कों से पूछा जब मैंने
विकास का मुद्दा आज भी मुझे खोया सा मिला
दूर तक फ़ैली उस ख़ामोशी में
जब मैंने अपनी तन्हाई को महसूस किया ,महसूस किया
एक अकेला इस देश में
कभी मंदिर में कभी मस्जिद में
उस रचेता को ढूंढता है
बस ढूंढता है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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