मेरे ईश्वर ना देना फिर से ये नश्वर शरीर
जब दुखड़ा अपना मै तुम्हे सुनता हूँ
ना जाने कौन सा असीम सुख मै पाता हूँ
आंखों से अपने आंसुओं को पिघला देता हूँ
अनचाही अनुभति मै कहाँ से लाता हूँ
बस द्वार में तेरे अब खुद को खड़ा पाता हूँ
जब मै तुम में पूरी तरह से खो जाता हूँ
ऐ कैसा रिश्ता मैं तुम संग अब निभता हूँ
मै अब भी तुम को ठीक से समझ नहीं पाता हूँ
मधुर संगीत हो तुम या कल कल नदी की धार
आसमान हो तुम या हरित वतस्ला मेरा आधार
किस आकार निरकार में बसे हो तुम मेरे नरंकार
तुम्हारे आकलन में ही ये जीवन गुजार देता हूँ
मेरे ईश्वर ना देना फिर से ये नश्वर शरीर
इसमें कपट छल घमंड अभिमान का मल भरा
क्या करना इस विहीन पिजरे को अपना कर
मुझे मुक्त रहकर हरपल बस तुम्हरे पग चूमना
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित