Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447159 times)

devbhumi

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किसे खोज रहा  है

मन रे भेद-भाव तू पालता क्यों है
नहीं धन पास में उसे टालता क्यों है

करके अभिमान अपने शुभकार्यों का
उन सत्कर्मों से रिसाव करता क्यों है

धन दौलत से कोई कभी संतुष्ट नहीं होता
इंसानियत के कर्मों को तू  छोड़ता क्यों  है

खुशी के हित को देखो लोगों में
अंतर कर लोगों को गिनता क्यों है

खोजें खुशी में परिवार समाज, अपना जल्दी हो
उस लालच को रखता  क्यों हो

हर आत्मा,आत्मा से दिव्य सूत्र में बंधी  है
मन खंडहर ,मंदिर में उसे ढूढ़ता क्यों  है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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लक्ष्य

भागते दौड़ते समय से
खोजें साध्य अपना
छोटा सा ही हो सही
होना चाहिए लक्ष्य अपना

करना पड़े तो करले
थोड़ी सी और मेहनत
थक भी गये गर तुम
इस निसर्ग से  लो हिंमत

बस धैर्य रखना मन में
वो पल भी जरूर आयेगा
प्यास लगी होगी जब
मरुस्थल भी रिमझिम बरसेगा

कभी बैठा ना थक के
ये लक्ष्य का सफर है
प्राप्त करते  ही लक्ष्य को
आनंद भी देखने आयेगा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हिमाला

जलता नहीं हूँ मैं
पर आज जल रहा हूँ
जब जलते हैं मेरे जंगल
मैं पिघल रहा है

हाथ पाँव है मेरे कितने
मफ़्लूज नहीं हूँ मै
ना जाने हर साल क्यों ऐसे
अब जल रहा हूँ मै

इक बूँद बरसात के लिए 
बस तड़प रहा हूँ
किस बात पर मैं ऐसे
खुद ही उबल रहा हूँ मै

तुम सरा सर अब
मुझ से झूठ कह रहे हो
अब अपनों के कारण  ही
क्या बदल रहा  हूँ मैं

क्या गुनाह हुआ है मुझ से
क्यों मैं अपनों से बंधा हुआ हूँ
आसमाँ की ख़्वाहिश में
अब भी ज़मीं पे चल रहा हूँ

बर्फ हटा दो मेरे सर से
आज मैं और जल रहा हूँ
मुझको पिलाओ ना पानी
अपनों साथ ख़ाक हो रहा हूँ

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बरखा ऐग्याई

बरखा ऐग्याई
झिर झिर पौड़ी
अँगालो मां ऐकी
झिर बिर कैग्याई

बिन बोलि वा
छतों बि ना खोलि वा
तितर बितर छितर
मिथे  कैग्याई

ढुंगा गारों मां
म्यारा पहाड़ों मां
बिन माँगि कि हैराळी
वा मिथे देग्याई

दबक्यूँ बैठ्युं छा
अटक्यूँ  ऐंठ्युं छा
तप्युं ज्यू को ताण थे
उल्यार देग्याई

बरखा ऐग्याई

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बातें नई हो पुरानी

बातें नई हो पुरानी होनी चहिये
कैसे गुजरेगा जिंदगी का ऐ सफर 
कैसे गुजरेगा अकेला  ऐ सफर 
मुलाकातें होनी चाहिए
बातें नई हो पुरानी  ................

अच्छी अच्छी बातें 
जीवन में खुशियों से भर देंगी
अक्सर होती वो मुलाकातें
रिश्तों  को  एक नया रंग देंगीं
बातें नई हो पुरानी ................

खुश रहने के लिए क्या जरूरी है
एक का दूसरे से मिलना जरूरी है
बन भी गयी है अगर जो दुरी
तो उसका  मिटना जरुरी है
बातें नई हो पुरानी ................

सुख- दुःख से भरा ऐ वक्त
देख अब यूँ ही गुजर जाएगा
अकेला गर तू पड़ा भी गया है
वो बातें यादें बन साथ आयेंगी
बातें नई हो पुरानी ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरी प्रार्थना अब स्वीकार करो

हे नगपति अब तुम संभल जाओ
शांत हो जाओ ना ऐसे तांडव करो
अनुनाद ना तुम ऐसा करो श्रेष्ठ मेरे
भूधर पे ना ऐसे हलचल करो

दरवाजे की चौखट पर खड़ा है कोई शैल
थमे अटके पड़े है प्राण आज उसके
भटका हुआ है उसका कोई  यंहा
रिश्तों से बंधे बस दो सांस है लटके

शिखर ना तुम यूँ  उन्माद करो
कंकड़ों चटटनो से ना तुम अब प्रहार करो
उस अकेले मकान का तो अब ख्याल करो
धरणीधर अब थोड़ा तो तुम मेरा विचार करो

नीचे से ऊपर तक कंपता है तू
अचल है ये विश्वास अब डोलता है मेरा
अंतिम पंक्तियों पड़ी किरणों सा तुम
श्वेत बर्फ सा शांत और निहाल बनो

ना उथल पुथल ना यूँ हाहाकार
सौम्या से रहने का ख्याल करो
शांत हो जाओ हे महीधर
मेरी प्रार्थना अब स्वीकार करो

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एक शाम बैठे बैठे

एक शाम बैठे बैठे
तेरा ख्याल जब सताने लगा
(भर आयी क्यों  मेरी आंखें) ... २
क्यों कर तू मुझे रुलाने लगा
एक शाम बैठे  ............

दुनियाँ में इतनी रस्में क्यों हैं
प्यार अगर ज़िंदगी है  तो
उस में इतनी कसमें क्यों हैं
बताता नहीं है क्यों कोई
ये राज़ दिल में  छुपाता है  कोई

सखी  संध्या भी दूर देखो
अब मुझ से अझोल होने लगी
अंधेर मुझे अब डराने लगा
एक शाम बैठे बैठे
तेरा ख्याल जब सताने लगा

वो शाम  दायरा मिटने नहीं देता
उस सुबह  का बस देखो अब इंतज़ार रहता
एक हसरत थी  कभी मेरी
मेरा भी कोई मेरे जैसे इंतज़ार करता
एक शाम बैठे बैठे
तेरा ख्याल जब सताने लगा

मुहब्बत काले धन की तरह है
इसका कोई खुलासा नही करता
हंगामा ना हो जाये कहीं
अकेले अकेले बस वो इंतजार करता
एक शाम बैठे बैठे
तेरा ख्याल जब सताने लगा

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वो दूर हो गया

वो देखो कैसे आज  मजबूर हो गया 
कभी मुझ से कभी खुद से
वो दूर हो गया

तुम्हे बताओं आधी सदी की दूरी
एक पलभर में कैसे समाप्त होती है
सोशल मीडिया पर दो शब्द  कमेंट कर
वो अब मशहूर हो गया

जहर का प्याला या वो शराब
उसे अब सब  मंजूर हो गया
कभी मुझ से कभी खुद से
वो दूर हो गया

इंसान की फितरत नहीं बदलती
बस उसके ख्याल बदलते हैं
ये जरुरी नहीं है  फितरत बदले
तो वो पूरा बदल गया

मन भर जाने पर  देखो
कितने पुराने रिश्ते बदलने लगे
कभी मुझ से कभी खुद से
वो दूर हो गया
 
बालकृष्ण डी ध्यानी
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क्या चाहती है

पता नहीं जिंदगी मुझ से
(क्या चाहती है) .... २
लेकर यही सवाल
मैं जगता हूँ  मैं सोता हूँ
सुख वेदना संग में क्यों रहता हूँ
पता नहीं जिंदगी मुझ से
(क्या चाहती है) .... २

एक रात जिंदगी है
एक सुबह जिंदगी  है
संघर्ष क्यों जुड़ा है मुझ से
दिल क्यों हिलोरे भरता
चाहिए ये मुझसे क्या
तू बता दे  जिंदगी
पता नहीं जिंदगी मुझ से
(क्या चाहती है) .... २

धनी होना चाहता हूं मैं
बड़ा पद भी पाना चाहता हूं
सहचारिणी है तू मेरी
तेरे संग भी रहना चाहता हूं
अपनी मंजिल की तलाश में
मैं तेरी तलाश भी करना चाहता हूं
पता नहीं जिंदगी मुझ से
(क्या चाहती है) .... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना चाह कर भी 

ना चाह कर भी 
मैं बदल रहा हूँ
ना चाह कर भी   ..... २

दिन प्रतिदिन अब तो  बस
मेरा चेहरा बदल रहा है
आईने में आकर वो
रोज मुझ से क्यों ? मिल रहा है
ना चाह कर भी   ..... २

खटक रहा है ऐसे क्यों मुझे
वो मेरा इस तरह बदलना
समीप किसके जा रहा हूं मैं
पग मेरे तू आगे ना बढ़ना
ना चाह कर भी   ..... २

कल तितलियाँ पकड़ता था
अब डंडी का है बस सहारा
अपने घर से बेदखल होके
अब किस घर ओर जाना
ना चाह कर भी   ..... २

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