मेरी प्रार्थना अब स्वीकार करो
हे नगपति अब तुम संभल जाओ
शांत हो जाओ ना ऐसे तांडव करो
अनुनाद ना तुम ऐसा करो श्रेष्ठ मेरे
भूधर पे ना ऐसे हलचल करो
दरवाजे की चौखट पर खड़ा है कोई शैल
थमे अटके पड़े है प्राण आज उसके
भटका हुआ है उसका कोई यंहा
रिश्तों से बंधे बस दो सांस है लटके
शिखर ना तुम यूँ उन्माद करो
कंकड़ों चटटनो से ना तुम अब प्रहार करो
उस अकेले मकान का तो अब ख्याल करो
धरणीधर अब थोड़ा तो तुम मेरा विचार करो
नीचे से ऊपर तक कंपता है तू
अचल है ये विश्वास अब डोलता है मेरा
अंतिम पंक्तियों पड़ी किरणों सा तुम
श्वेत बर्फ सा शांत और निहाल बनो
ना उथल पुथल ना यूँ हाहाकार
सौम्या से रहने का ख्याल करो
शांत हो जाओ हे महीधर
मेरी प्रार्थना अब स्वीकार करो
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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