कुछ दिनों बाद
डला से पत्तों सा आज मै जब गिरने लगा
होने लगा हूँ अपने आप से अब मैं बरबाद क्यों
सोचता हूँ मौन मेरा अब ये क्यों टूटता नहीं
बिछड़ रहा हूँ अपनों से ही जब आज मैं
ये हवायें नीलाम होंगी अब तो देख
भाव जिस तरह पानी का चढ़ है आज कल
कुछ भी हो सकता है महज कुछ पलों में यंहा
जिन्दगी हकीक़त है उसे फलसफा ना समझ
अलग थलग जब सब रहने लगे हैं अपनों से भी
दोष अपना है क्यों दोष सब पेड़ पर मढ़ने लगे
समझना है तो उसे बरीकी से पढ़ना अब जरूरी है
ध्यानी उड़ता बादल है बस बरसकर गुजर जायेगा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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