आभासी दुनिया
आभासी दुनिया है सारी
मनोहर बहुत ,बहुत है प्यारी
छद्म का अहसास वो कराती रहती
कूट और मिठासा की वो मिश्रक है
आभासी दुनिया है सारी
मिलते नहीं हैं मगर मिलते हैं सब
अपना हो या हो यंहा बेगाने का सफर
दृश्यमान सब को ऐसा होता है
अपने ही रचे जाल में जब हम फंसते है
दूसरों संग हम भी खुद पर हँसते हैं
कृत्रिम भी है वो नकली भी है
बनावटी है वो जो अपनी बनाई प्रतिरूपी
भ्रामक कभी वो यूँ कर जाती है
अपने को अपने से वो दूर कर जाती है
मायावी अनोखी दुनिया में खो जाती है
जाली उसकी इस कदर ऐसी फैली है
कंही पर भी हो हम वहाँ खींचे चले जाते हैं
इतना नहीं सोचते हैं हम आपने बारे में
वो जाने कैसे हमारे बारे में इतना सोच जाती है
अपने से इस तरह वो घुल जाती है
आभासी दुनिया है सारी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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