Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 212770 times)

devbhumi

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चार आखरों की माया
« Reply #3470 on: January 11, 2023, 06:42:20 PM »
चार आखरों की माया


चार आखरों की माया च
वा बाटो हेरदा.... हेरदा थकि जालि
जिकुड़ी ते बुते ..... बुते ...वा
राति -बै-राति जगै-सुलै -रुवै सरि जालि

पैल भंडया विन धीर देन
वे बाद विन अधीर कैन
क्या क्या छिन-बिन- विन कैन
घर-बार दुनियादारी सबि क्षीण वैन
चार आखरों की माया च ....

बुद्धी बोनी बौल्या रे तू
विल अबि परति कि कबि नि ऐण
विं ते मिलगै औरी गैण
जिकोड़िळ तबै बि विंकी फिकर कैन
चार आखरों की माया च ....

हैरि जाळु अफि से ज्ब
यकूल रै जाळु जग्वाळ कनू
भैर से भीतर देखिले अफि
जंतर मंतर सबि देखि जाळू
चार आखरों की माया च ....

यन उन हताश होळू अफि से तू
अफि अफ मा तू बिरडी जाळू
सूद-बुध ख्वै जाली ते से अफि
चार आखरों की माया तू पै जालि
चार आखरों की माया च

© बालकृष्ण डी. ध्यानी
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devbhumi

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कुछ लिखे पन्ने
« Reply #3471 on: February 28, 2023, 03:57:32 PM »

 कुछ लिखे पन्ने


बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना
किंचित सुख मिलेगा नैनों को
पर उन्हें ना तुम बिसरा देना
बस यूँ ही पढ़ लेना ...

यहाँ वहाँ मिलूंगा बिखरा
हवा संग उड़ता फिरता रहूंगा
वक्त है तो बटोर लेना उन्हें
फिर शायद! इन हात आऊंगा
बस यूँ ही पढ़ लेना ...

फुरसत ना मिलेगी
देख खुद से फिर पछताने भर की
अफ़सोस रहेगा सदियों भर
खुद को खुद से आजमाने भर की
बस यूँ ही पढ़ लेना ...

कुछ लिखे पुराने पन्ने ही थे वो
लगे क्यों वो अपने अपने से
बरसों की धूल झड़ी उन पर से
आतुर खड़े मिले थे मिलने को वो

बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना

© बालकृष्ण डी. ध्यानी
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