Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447602 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फर्क
 
 फर्क कंहा पड़ता है
 ऐ तो होता ही रहता है
 अपने पराये के भेद मै
 दिन तो बस अब यंहा ऐसे ही कटता है
 फर्क ………………….
 
 मै भी अब  इस रंग से
 रंग गया हों कुछ ऐसे
 जो चढ़ होआ है रंग मुझ पर
 अब वो उतरेगा कैसे
 फर्क ………………….
 
 
 दुनिया के इस  आशीयाने मै
 गुंजता है अब ऐ ही नगमा
 अब तु भी तो ऐसे  गुन-गुनयेगा
 आज नहीं तो कल तो भी ये गली आयेगा
 फर्क ………………….
 
 किसी को कुछ नहीं लेना है यंहा
 ना ही कुछ यंहा देना है
 मतलबी हैं सब के सब यंहा
 चेहरे के पीछे छिपा एक चेहरा है
 फर्क ………………….
 
 अंधकार पास बोलायेगा यंहा
 उजाला यंहा से दुर कंही ली जायेगा
 जीवन एक बहती होई नदी है ऐ जग
 पल बाद सागर मै मिल जायेगा
 फर्क ………………….
 
 किसी को किसी फर्क नहीं पड़ता है  यंहा
 सब झोली अपने भरने मै लगें हैं
 चाहे जैसे मिले सीमट लो उसे भुले हैं
 पल बाद ये वक़त गुजराता है
 फर्क ………………….
 
 फर्क कंहा पड़ता है
 ऐ तो होता ही रहता है
 अपने पराये के भेद मै
 दिन तो बस अब यंहा ऐसे ही कटता है
 फर्क ………………….
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with Manish Raturi and 48 others.Unlike ·  · Share

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पनाह
 
 देख रहा खड़ा खड़ा
 अपने सर के बल पड़ा
 देश भी मेरा सोच राह
 कितने घोटालों को दों ओर पनाह
 एक ना खत्म होता दुजा खडा
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 
 सब से मै आहत होआ
 अंत मन मै गर्त होआ
 कोई नहीं खडा मै अकेला ही चला
 सब दुर दुर कोई पास नहीं
 मै यंहा एक तमाशागीन सा खड़ा
 अपने आप से लड़ता होआ
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 
 खाकी मै दोष नजर आता है
 घोटालों का उद्घोष नजर आता है
 उनका खोया होश नजर आता है
 तिजोरी भरे काले नोट नजर आता है
 बीका होआ जमीर सपने सजाता
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 सच्चाई को यंहा अब ठोकर देता है
 अपने मद मै वो  कैसा ऐंठता है
 बस लुटा नै मै सब  के सब लगे हैं
 रोड पति से करोड़ पति बन बैठे है
 कैसा ऐ चक्कर देखा इसने चलाया पर
 अपने को ऐसा लपेटा लगाया है
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 संसद की गरिमा को तुने ही गिरया
 अपने पैरो पर कुल्हाडी खुद गिराया
 क्या करता है सत्र राज्य लोक सभा मै
 दुरदर्शन से सारा जग उसे देखता है
 खाकी मै नेता मेरे ना अब तो जंचता है 
 शवेत रंग मै काला धब्बा नजर आता है
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 कब तक तो पनाह देगा ऐसे कार्य का
 कब तक देश संकोचित सोच सहारे जीयेगा
 अब ना जगा बस सोया का सोया रहा जायेगा
 फिर हाथ ना तेरे यंहा कोई भी ना आयेगा
 सारा धन  बाहरी मुल्कों मै चला जायेगा
 बस हाथ मले तो बस अब पछतायेगा
 तो दुर खड़ा लाचार पडा है  .....................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़ कहाणी

ये जीन्दागाणी मा
तेर मेर कहाणी मा
बगाती जांद बगात
देखा दिशा ध्याणी मा
ये जीन्दागाणी मा..................

कब काटै णी कटदु
काबैर सुरा रर चली जांदा
टुका तै डालीयूँ मा
आंखी की साणी मा
ये जीन्दागाणी मा......................

काबैर झोलू काबैर घाम
कब लगी विपदा कब खैर
सुख दुःख का लाग्यां बेर
चली जालो हो जाली देर
ये जीन्दागाणी मा.........................

कीन्गोड़ा सी दाणी जसी
पंतैद्र को मीठो पाणी जसी
मया दर को माया सखी
अपरू नीच सब परायो सखी
ये जीन्दागाणीमा.............................

ना डैर सब यख गैर
गढ़ देश मा को नीच सब भैर
आण जाणद रैला सब
ओंका ना ससरास च ना मैत
ये जीन्दागाणी मा.........................

किले च उदास केले हैरण
गुपचुप किले बैठी छे तो
तिलै कैकी च लगी आस
बगत जाणु तेज पाणी धार
ये जीन्दागाणी मा.........................

ये जीन्दागाणी मा
तेर मेर कहाणी मा
बगाती जांद बगात
देखा दिशा ध्याणी मा
ये जीन्दागाणी मा..................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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खाक

रिश्तों को खाक होते देखा है
अपनों को राख होते देखा है

इल्ताजयाए इश्क मै बस इतना ही सही है
इस भस्म मै मेरे गुल खिल जाये कंही

परवाज मोहब्बत की तकदीर उड़ा ले गया कोई
इस जिश्म के पिंजर मै ना बचा पाया कोई

मोहब्बत का तराना ना गाये अब कोई
बेवाफ मोहब्बत को रुसवा ना बनाये कोई

दीवारों पर लिखकर बदनाम कर जायेगा कोई
तेरी महफ़िल से तनहा आज चला जयेगा कोई

कोई किसी की शिकायत ना करेगा यंहा
बदनामी की गलफ़त को सिरोंताज करेगा ये जंह

टुटा होवा दिल रोरोकर गायेगा कंही
विरानो मै अकेला अब नजर आयेगा कंही

बद्कीस्मती इस तरहं साज बजायेगी कंही
तनहाई के इस मातम मै शाहनाई बजी हो कंही

रंगीनीयुं को रुक्सत कर जायेगा कोई
पतझड़ मै मुरझा होवा गुल नजर आयेगा कोई

फिरते रहै दरबदर एक मुलकात मै कोई
अफोशोश आज इधर ना गुजरा कोई

नाराज नाराज अब ये मोसम लगता है
खफ़ खफ़ अब हर नजार लगता है

मीलों तक देखो एक उदासी छायी है
सासुं के करीब वो देखो वो चली आयी है

दिये की तरह अब जलना लिखा था
अंधेरो मै ही अब चलना लिखा था

जमीन से दो बांह अंदर घर है मेरा
बेचैन हूँ वंहा भी जंह कब्र है मेरा

रिश्तों को खाक होते देखा
अपनों को राख होते देखा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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उत्तराखंड देशा

ऐजा ऐजा ...२
मेरु गढ़देश मेरु भलो देश
मेरु उत्तराखंड देश.......................

किनगोड़ों कफालों को देशा
घुघूती हिलंसा को देशा
मेरु पहाड़ों को देशा
रीटा सुन पडयूँ गढ़ देशा
मेरु उत्तराखंड देश......................

खैरी विपदों को देशा
तब छुडी गै तो परदेशा
बैठालूं बच्चों दाणु को देशा
मेरु ढुंगुं को देशा
मेरु उत्तराखंड देश..........................

उकाली मा चाडी लगी ठेशा
तब दोऔडी भागी उन्दारों का देश
काँटों चुबी खोटोमा को देश
म्यार बांजा पुंगडों का देश
रीटा होआ मन्ख्यों का देश
मेरु उत्तराखंड देश................................

उजाड़ पडी डंडा कंडा
उजड़ा आज सरू गढ़ देशा
रास्ता देखना छिण देखा अब
अप्रू पितृ इस्ट देबता
म्यारी टूट्या सप्नीयु का देशा
मेरु उत्तराखंड देश.......................

ऐजा ऐजा ...२
मेरु गढ़देश मेरु भलो देश
मेरु उत्तराखंड देश.......................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
सबैरा सबैरा

सबैरा की बात चा
अबरै रात गयाई त्या
बगता की बात चा
कण वहलो क्या वहई
नींद मा छा मी
झट नींदी मेर टूटी
अंधरों उजालो वहाई
सबैरा की बात चा ..........................

गढ़ मा लाली छाई
घ्याप्लो दादा बलदा जोड़ी
हल लेकी पुन्गड़ मा गयाई
शांता बुअडी छनी मा
गओडॉ गीलेण रवाना वहई
मी खट्लू नी छुआडी
सब दैखुदा रहाई
झण क्या बात वहई
सबैरा की बात चा ..........................

अब मी खटलू पड़यों छो
एक कर सब थै देख्दों राहों
पर उठाण की हिम्मत नी वहाई
तब बोईल आवाज दयीई
क्या व्है रै बाबा आज
किले नी उठाणु छे खट्लूं
मील जवाब नी दयाई
बस पडू के पडू रहई
क्या मीथै सवेर सवेर वहई
सबैरा की बात चा ..........................

उठणे को जोर दयाई
कमरी पीड़ा उभरी आई
बोयी कै आवाज दयाई
पर आवाज नी आई
भरमंड मेर पकड़ी ग्याई
शरीर मा तप्त ज्वर
भट्टी चै जलणी
मी बुखार मा छे तपणु
ता ये बात वहई
सबैरा की बात चा ..........................

कोई भी णी च घार
सब गये अपर काम धाणी
आपरा आपरा दिशा धणी मा
मी मुरगयुं रै भुल्हा
अपर अक्कल दाड़ी मा
सेंगुसैं की बाडी मा
अपर रखवाल दरी मा
अपर यखर गाडी मा
सबैरा की बात चा ..........................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Yesterday near Manama, Al Manamah
कखक लगाणी छुयीं मील
रीटा गढ़ रीटा मनख्यूं की
भैर भैर सब अपरा होंयाँ
भीतर कपाट ताल ल्गायाँ
कखक लगाणी छुयीं मील .....................

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अंतिम सत्य
 
 कठिन बड़ी है ऐ रहा
 काटों की अगर हो चाह
 गुल का मोहा बिसरा
 चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा...........................
 
 देख ना तो सुख दुःख
 संसार दो भागों मै बांटा
 इस पाटों मै ना पीस अपने को 
 अपनी नई रहा बना बांधे
 चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा.................................
 
 अहम अंहकार
 कम क्रोध मध् मधसर
 इन सब को अब त्याग
 आजा देव भुमी प्रयाग बांधे
 चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा.................................
 
 माटी के पुतले कैसै तन रहा
 अपने आप पर कैसा बन रहा
 कुछ नहीं है तेरे पास
 फिर भी गजब का विशवास
 इस विशवास प्रभु चरण लगा
  चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा.................................
 
 अंतिम सत्य है तेरा जाना
 उसको तो बना अपना गहना
 जीवन को ना ऐसै तो भटका
 देख टूट ना जाये तेरा मटका
 चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा.................................
 
 कठिन बड़ी है ऐ रहा
 काटों की अगर हो चाह
 गुल का मोहा बिसरा
 चल सत्य की रहा पग मेरे
 चल सत्य की रहा...........................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ8 hours agoऐ क्या वहई ?
 
 कुडा कुडा णी राहांई
 पुंगडा बंजा पड़ग्याई
 गढ़ किले रीटा व्हैग्याई
 गढ़ देश को हाल देबत मेरा
 ऐ क्या वहई ऐ क्या वहई ........................
 
 कदगा दीण कदगा रैण
 दीण अब यख ईणी कटेण
 कखक गैण सांकी को चैण
 तिशालु बाटा बण रूडी गैण
 ऐ क्या वहई ऐ क्या वहई ........................
 
 कट कट कैकी डंडा कंडा
 डाम्बरी सड़की टुक गैनी
 मन की माया रो रो की
 मन माया रहै गै बस अब आदा
 ऐ क्या वहई ऐ क्या वहई ........................
 
 कुडा कुडा णी राहांई
 पुंगडा बंजा पड़ग्याई
 गढ़ किले रीटा व्हैग्याई
 गढ़ देश को हाल देबत मेरा
 ऐ क्या वहई ऐ क्या वहई ........................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड रेल
 
 गढ़ की देख रेख मा
 उजाड़ा डंडीयूँ की रेघ मा
 बंजा पुंगडीयु का देशा मा
 उकालु मा डैर उन्दरु को सैर मा
 हेरदी जांदी वा अन्ख्युं पीड़ा मा
 घुघूती हिलंसा ओंका रेश मा
 दाण बौड्या का ठेस मा
 अंशुं पुंछ्या रूमाला मा
 जावाण भैर परदेश मा
 को नीच अब गढ़वाली भेष मा
 सब सुट बूट का फ़ेरमा
 कंण वहाली वा रेल
 आली ये गढ़ देश मा     
 गढ़ की देख रेख मा
 
 तो दगडीयु उत्तराखंड का रेल मा झुख करता करता संध्या को भिंत वहाली तब यक बाण जय बद्री-केदार सबक भली करयां ॐ 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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