बिंग भुलाह
बिंग भुलाह बिंग भुलाह
बिंग भुलाह अब बिंग दे गढ़वाली
माया बोली मेरी अब बोल दे अब गढ़वाली
गददेश की डोली कोमों गढ़वाल बोली
बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
परदेसी भुल्हा मेरु कखक भातैक सीखालो
मेर बोली गड्वाली बस रैगै तो बोली
भाषा को तरक्षण लगी देख पहडा मा खोली खोली
भगवती पहाडा की तो मेरा बोयी अब तो बोल दे
बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
सुट-बूट पैणीकी म्यार भूलह गै वहलो रै भुल
कंण बुलोला भुल्हा मेरु भुल्हा वहैगे विदेशी
अब बुलाल गढ़वाली लोग बोलाल वैथै पाडी पाडी
तुम थै कण लग्लु भुल्हा जब बुलालु अंग्रेजी
बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
देख दशा मेरा पहाडा की अब बिंग दे गढ़वाली
कण कखक लुक्युंछ भुल्हा अब बतादे तु छे पाडी
किले आणी वहली शर्म की तुछे की गढ़वाली
कंण खातेगै रै भुलह तो बाणकी तो परदेशी
बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
मया को रंग भुल्हा ये माया को लोभा
तेर पर चडग्यु मेरा भुलह वैकु प्रलोभ
कोई णी बचपाई हरी हरी ये माया नोटों की
हरी का देश मा भी ऐ हरी हरी वहई म्यार भुलह हरी हरी वहई
बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with
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