Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447710 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वो साथ थी ?

बात सुनावों उस बात की
बातों मै छुपे अहसास की
बात सुनावों ........................

अनसुनी सी वो रात थी
आधी अधुरी वो बात थी
बात सुनावों ........................

गुमसुम सी वो नाराज थी
चुपचाप अकेले वो आज थी
बात सुनावों ........................

रोशनी ही बस अब पास थी
अंधेरे मै सहमी आवाज थी
बात सुनावों ........................

चाँद सितारों की वो सहेली
अनसुलझी सी है वो पहेली
बात सुनावों ........................

हर वकत ओ मेरे साथ थी
जन्मों की प्यासी वो प्यास थी
बात सुनावों ........................

बिलकुल अकेली वो शांत थी
सागर की लहरों मै परवाज थी
बात सुनावों ........................

थी मगर कंही वो आज
पर वो मेरे बतों के साथ थी
बात सुनावों ........................

बात सुनावों उस बात की
बातों मै छुपे अहसास की
बात सुनावों ........................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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छुंयीं

छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी
भ्यां भातैक तुक आकाश
बस बहणी छुंयीं की गंगाधार
गढ़देश मा पडे काम को अकला
बस लगी च छुंयीं की बरसात
जख भी देखा वख छुंयीं
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

लेंटार कुडा छुंयीं लगाणी
माया लोभ ओर अहम का
माटा कुडा छुंयीं लगाणी
संस्क्रती माया जपाण का
सबक सब लगया छुंयीं मा
जख भी देखा वख छुंयीं
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

रुल्यों गड्नीयुं भी छुंयीं मा लगी
भुखी पोटी तिशी सब मोरगैणी
किन्गोड़ा हिन्शोंला काफल डाल
सुखी आल छाला पल छाला
बंजा पुन्गाडा उजाड़ा डंडा को
तिशालू सरू आज गढ़देश राजा
वो भी छुंयीं लगाणु तु बुअडी आजा
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

पहाडा कट कटे छुंयीं टुक पुहंची
गडदेश वख बस रीटा व्हैगैनी
जगलात जगल छुंयीं लगाणु
वख को बाघ राज अब गौं ऐकी
अपरी अपरी भुख तिश भुझाणु
बंदरून सूंघरूं की छुंयीं की उतापात
रीटा डंडा अब छुंयीं लगाणु
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

पलयाण छुंयीं लगाणु आज देखा
देहरादूण सरकार किले सैगै आज
चुनुवा व्हैगे अब कब पुरुलु अप्रू वादा
दाणी ब्याठ्ली वा आंखी रास्ता देखणी
कब जागो वहलो गढ़ देश गढ़ नारेणा
गैर सैण भी अब छुंयीं लगाणु
कब पुरु व्हालु क्रांती करीयुं को स्प्नीयुं
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी
भ्यां भातैक तुक आकाश
बस बहणी छुंयीं की गंगाधार
गढ़देश मा पडे काम को अकला
बस लगी च छुंयीं की बरसात
जख भी देखा वख छुंयीं
छुंयीं छुंयीं छुंयीं छुंयीं लगी ...........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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आज मैने

आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली
कल्पना से हाथ तंगी करली
ख्वाबों से दुशमनी करली
अब यथार्थ मै कुछ बेचना चाहा था
रिश्तों के साथ दोस्ती करली
आज मैने
.................................

आँख लग जाये कंही भुल से
काँटों संग हमने दिल्लगी करली
खुश रहते थै कभी कबार हम भी
अब रुसवाई संग मोहब्बत करली
जल रहै हैं तिल तिल कर हम
आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली...............

हकीकत का चलना बड़ा भिन्न है
आज नगद तो कल उधारा है
अजब तंत्र और अजब ऐ विचार है
धन साथ है तो तब ही शिस्ठ्चार
इंसानीयत लुटी बीच बाजार है
आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली................

नीर बहते रहते है अब नैनो से
किस लिये यातःर्थ संग बंदगी करली
इस से अच्छा भले थै हम स्वप्नों मै
कैसे आफत इस सर पर मैने लै ली
तुबा ऐ दुनिया ओर उसकी दरियां
आज मैने
स्वप्न के साथ फिर दोस्ती करली………


बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
बचपन

इंतना बड़ा हो गया
पर बचपना नहीं गया है
कहते है लोग मुझे
तेरा जीवन कंह सो गया
अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ..................

मिलता आनंद मुझको
उनके साथ होने पर
कैसे करूँ परवाह तेरी मै
सब कुछ ऐसे खोने मै
अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ..................

मचलता उनके साथ मै
धडकता है दिल कोने मै
अहसास जागा रहता है
उनके पास पास होने मै
अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ..................

बचपना दिल बहलाता है
तुमको भी तो रुलाता है
याद के पन्ने बसा तन मन
तुम को भी तो बोलाता है
अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ..................

अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ
आपनो से जुदा नहीं होआ
माँ बाप अब भी मेरे हैं
उन जैसा खुदा नहीं होआ
अच्छा है मै बड़ा नहीं होआ..................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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माया को मुंडैरु 
 
 देखैगै की ना  देखै तु
 आता जात ऐ बाटों मा
 गों चोक गोंल्यारों मा
 मेला दुकनी बाजारों  मा
 झंण आज क्या बात वहई............२
 ऐ दोपहरी मा रात छाई 
 देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
 
 तेरी स्वाणी मुखडी देखै ना
 कखक आज तु  लुकी गयाई
 मेरी अन्खुंयां का स्पुनीयाँ
 नींद चैन सब लुछी गयाई
 ऐ मेरी माया कखक छुप ग्याई .........२
 देख दूर डंडों मा बरखा पोडा ग्याई
 देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
 
 तेरे चूडी ना खनकी
 तेर बिंदुली ना चमकी
 तेरु लटुली ना फरकी
 तो आज ना पतंदैर भटकी
 मेर पिताली की कसैरी
 तो कीले भैर ना निकली
 तेरु ख्याल मा आज माया मेरु ...२
 व्हैगे मी थै माया को मुंडैरु 
 देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
 
 देखैगै की ना  देखै तु
 आता जात ऐ बाटों मा
 गों चोक गोंल्यारों मा
 मेला दुकनी बाजारों  मा
 झंण आज क्या बात वहई............२
 ऐ दोपहरी मा रात छाई 
 देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथ7 hours agoबचपन
     
     इंतना बड़ा हो गया
     पर बचपना नहीं गया है
     कहते है लोग मुझे
     तेरा जीवन कंह सो गया
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथ9 hours agoमाया को मुंडैरु 
     
     देखैगै की ना  देखै तु
     आता जात ऐ बाटों मा
     गों चोक गोंल्यारों मा
     मेला दुकनी बाजारों  मा
     झंण आज क्या बात वहई............२
     ऐ दोपहरी मा रात छाई 
     देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
     
     तेरी स्वाणी मुखडी देखै ना
     कखक आज तु  लुकी गयाई
     मेरी अन्खुंयां का स्पुनीयाँ
     नींद चैन सब लुछी गयाई
     ऐ मेरी माया कखक छुप ग्याई .........२
     देख दूर डंडों मा बरखा पोडा ग्याई
     देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
     
     तेरे चूडी ना खनकी
     तेर बिंदुली ना चमकी
     तेरु लटुली ना फरकी
     तो आज ना पतंदैर भटकी
     मेर पिताली की कसैरी
     तो कीले भैर ना निकली
     तेरु ख्याल मा आज माया मेरु ...२
     व्हैगे मी थै माया को मुंडैरु 
     देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
     
     देखैगै की ना  देखै तु
     आता जात ऐ बाटों मा
     गों चोक गोंल्यारों मा
     मेला दुकनी बाजारों  मा
     झंण आज क्या बात वहई............२
     ऐ दोपहरी मा रात छाई 
     देखैगै की तो ना देखै तु  ..........
     
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथ21 hours agoअब संध्या को भेंट होगी अब चला जाता हों मै यों ही वापस आने के लीये तब तक के लिये जय बद्री केदार जय मेरा पहाड़ !!व्Like ·  · Share
  • देव भूमि बद्री-केदार नाथYesterdayबिंग भुलाह
     
     बिंग भुलाह बिंग भुलाह 
     बिंग भुलाह अब बिंग दे गढ़वाली
     माया बोली मेरी अब बोल दे अब गढ़वाली
     गददेश की डोली कोमों गढ़वाल बोली
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथSundayठीख ठाक
     
     आज हर कुडा
     भातैक एक आवाज आणी
     बस रुणी रैंदी सुक सुक केकी
     पुछाण जा जब रैबार कोइ
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  • देव भूमि बद्री-केदार नाथSundayअब मै चलता हों
     दों घड़ी अपनों के लिये भी जी लेता हों !!
     अपना कुछ नहीं बस माया है ध्यानी
     इस मै मेरा परिवार भी समाया है !!
     
     इस  माया  को छोड़ कर मै संध्यां को फिर आऊँगा तब तक के लिये जय बद्री-केदार  आप सबकी रक्षा करैं
     
     इतना स्नेहा का !!!!!
     
     धन्यवाद आपका
     बालकृष्ण डी ध्यानी
     देवभूमि बद्री-केदारनाथLike ·  · Share
  • देव भूमि बद्री-केदार नाथSundayअक्षय तृतीया पर्व से होगी चारधाम यात्रा शुरू
     Story Update : Sunday, April 08, 2012     1:51 AM
     ऋषिकेश। उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा अक्षय तृतीया पर्व से आरंभ होती है। इस साल पावन पर्व के मौके पर 24 अप्रैल को श्री गंगोत्री धाम और श्री यमनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही यात्रा शुरू हो जाएगी। इसके बाद 28 को श्री केदारनाथ धाम और 29 अप्रैल को भगवान श्री बदरीनाथ धाम के कपाट ग्रीष्मकाल में दर्शना...See MoreLike ·  · Share
  • देव भूमि बद्री-केदार नाथSundayचलो अपने आप से
     आज हम  रुबरों हों जायें !!
     दर्पण से कह दों  ध्यानी
     कुछ गुफ्तगु हों जाये !!
     शुभ प्रभात जी !!Like ·  · Share
  • देव भूमि बद्री-केदार नाथSundayमै भैर देशवाला हों
     
     मी पाडी छुं की देशी या कोटद्वार देरदूँण वालों छुं
     यूँ  मा मी को भी नी मी भैरा देश वालों छुं
     सुटू बुट देख म्यारा इंग्लिश टोपी वालों छुं
     देशी नारंगी नी चैनी मीथै विल्याती पीण वालों छुं
     मी पाडी छुं की.........
     
     आता जाता हों मै कभी सैर मै
     तेरु गढ़ देश मा घुमंण वालों
     मै को तो परदेसी बोला रै सब
     मै लंडन जर्मन यूरोप रैनै वाला हों
     मी पाडी छुं की.........
     
     कभी पैदा होवा यंहां पर अब भैर देश वाला हों
     गड्वाली कभी बोलता था मै अब अंग्रेजी बोलने वाला हों
     एक बावरी है यंहा पर दूजी ब्वारी वंहा करने वालों
     पैसा नहीं था  यंहा वहां डोल्लर  यूरो पौंड वाला हों
     मी पाडी छुं की.........
     
     दों रोटी नहीं मिलती वंहा चिकन तंदूरी खाता हों
     कम करता बवार्व्ची वेटर सुरक्षा रक्षक वंहा पर
     पर यंहा मै मैनेजर पोस्ट पै कम करने वाला हों
     दों साल का वीजा है मेरा पर मै तेरा देश ना लौटनै वाला हों
     मी पाडी छुं की.........
     
     
     मी पाडी छुं की देशी या कोटद्वार देरदूँण वालों छुं
     यूँ  मा मी को भी नी मी भैरा देश वालों छुं
     सुटू बुट देख म्यारा इंग्लिश टोपी वालों छुं
     देशी नारंगी नी चैनी मीथै विल्याती पीण वालों छुं
     मी पाडी छुं की.........
     
     बालकृष्ण डी ध्यानी
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आज मैने

आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली
कल्पना से हाथ तंगी करली
ख्वाबों से दुशमनी करली
अब यथार्थ मै कुछ बेचना चाहा था
रिश्तों के साथ दोस्ती करली
आज मैने
.................................

आँख लग जाये कंही भुल से
काँटों संग हमने दिल्लगी करली
खुश रहते थै कभी कबार हम भी
अब रुसवाई संग मोहब्बत करली
जल रहै हैं तिल तिल कर हम
आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली...............

हकीकत का चलना बड़ा भिन्न है
आज नगद तो कल उधारा है
अजब तंत्र और अजब ऐ विचार है
धन साथ है तो तब ही शिस्ठ्चार
इंसानीयत लुटी बीच बाजार है
आज मैने
स्वप्न की दुकान बंद करली................

नीर बहते रहते है अब नैनो से
किस लिये यातःर्थ संग बंदगी करली
इस से अच्छा भले थै हम स्वप्नों मै
कैसे आफत इस सर पर मैने लै ली
तुबा ऐ दुनिया ओर उसकी दरियां
आज मैने
स्वप्न के साथ फिर दोस्ती करली………


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ठीख ठाक

आज हर कुडा
भातैक एक आवाज आणी
बस रुणी रैंदी सुक सुक केकी
पुछाण जा जब रैबार कोइ
बस बुल्दी सब ठीख ठाक
ऐ गड़देश को हाल
बस ठीख ठाक ...............

चुप चाप होली वा
उजाड़ डंडा सजी बैठी होली वा
खैरी विपादा की पीड़ा मा
बंजा पुंगडा पडी वहली वा
यकुली यकुली नारी गढ़देशा की
पुछाण जावा हाल चाल
बस बताणद वा
बस ठीख ठाक ...............

डुबी टेहरी जणी
माया का दुःख मा डुबी वहाली वा
छुडीगै आँखों का लैट
लोड शैडिग चम चमकाण वहली वा
कभी लकलक कैकी
अंशु भैरी पुअडी जाल
तब जाकै को पुछालु
तब भी वा बुलाली
बस ठीख ठाक ...............

कण ऐ ठीख ठाक च
गढ़ देश उत्तराखंड मा
सब भैरा भीतर को णीच पर सब ठीख ठाक
ससारास मैत घर दूण सब बस ठीख ठाक
रीटा गढ़ ठीख ठाक
पलायन समयसा ठीख ठाक
बेटी बावरी ठीख ठाक
दारू की भट्टी सब ठीख ठाक
भुखी पोटी सब ठीख ठाक
अपरी खोटी ठीख ठाक
सरकार झूठी सब ठीख ठाक
चलणु कालू व्यापार सब ठीख ठाक
कण कैकी ठीख ठाक च रै भुल्हा
झट बुअडी की तो ऐजा
तो भी णी आणू सब ठीख ठाक
तब भी तुम बुलला
बस सब ठीख ठाक ...............

आज हर कुडा
भातैक एक आवाज आणी
बस रुणी रैंदी सुक सुक केकी
पुछाण जा जब रैबार कोइ
बस बुल्दी सब ठीख ठाक
ऐ गड़देश को हाल
बस ठीख ठाक ...............

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बिंग भुलाह
 
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह 
 बिंग भुलाह अब बिंग दे गढ़वाली
 माया बोली मेरी अब बोल दे अब गढ़वाली
 गददेश की डोली कोमों गढ़वाल बोली
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
 
 परदेसी भुल्हा मेरु कखक भातैक सीखालो
 मेर बोली गड्वाली बस रैगै तो बोली
 भाषा को तरक्षण लगी देख पहडा मा खोली खोली
 भगवती पहाडा की तो मेरा बोयी अब तो बोल दे
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
 
 सुट-बूट पैणीकी  म्यार भूलह गै वहलो रै भुल
 कंण बुलोला भुल्हा मेरु भुल्हा वहैगे विदेशी
 अब बुलाल गढ़वाली लोग बोलाल वैथै पाडी पाडी
 तुम थै कण लग्लु भुल्हा जब बुलालु अंग्रेजी
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
 
 देख दशा मेरा पहाडा की अब बिंग दे गढ़वाली
 कण कखक लुक्युंछ भुल्हा अब बतादे तु छे पाडी
 किले आणी वहली शर्म की तुछे की गढ़वाली
 कंण खातेगै रै भुलह तो बाणकी तो परदेशी     
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
 
 मया को रंग भुल्हा ये माया को लोभा
 तेर पर चडग्यु मेरा भुलह वैकु प्रलोभ
 कोई णी बचपाई हरी हरी ये माया नोटों की
 हरी का देश मा भी ऐ हरी हरी वहई म्यार भुलह  हरी हरी वहई
 बिंग भुलाह बिंग भुलाह बिंग दे गढ़वाली
 
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मेरी कलम
 
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर
 मेरी कलम बोलती रही
 मेरी भावना
 मेरे पन्नों मै बहती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर .......................
 
 नदी के बहाव सी
 सुख दुःख दो छोर कटती रही
 उमंगों की लहर बनकर
 मेरी कवितों मै उभरती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर ..............................
 
 उन तरंगों को साथ ले
 नये मार्ग पर वो बढती रही
 सागर मै भी समाकर
 वो अपना अस्तित्व बचती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर ..............................
 
 खुशी गम के थपेड़ों के साथ साथ
 किनारे पर आ आकर मचलती रही
 नये मंजिलों के मक़ाम पाने सबको
 साथ ले लेकर आगे वो बढती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर .............................. 
 
 वा हर रोज जंग लडती रही
 कभी रोयी अकेली अकेली
 कभी साथ साथ वो हंसती रही
 अपना दर्द वो छुपाती रही
 ओरों का हौस्ला बढती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर ..............................
 
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर
 मेरी कलम बोलती रही
 मेरी भवना
 मेरे पन्नों मै बहती रही
 मै चुप चाप
 रहता हों मगर .......................
 
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