Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447990 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"अब भी वो बेकरार है "

किसी को दर्द ना हो
आँखों से आँसुं ना छलके
कोई ना किसी से रूठे
अब ना किसी का दिल टूटे
किसी को.......................

सुखे पत्तों पर पोपल फूंटे
बीज अंकुर धरती भीतर फूटे
आशा अब भी पुकार रही है
जीवन ओस अब हम छुंलें
किसी को.......................

कष्ट तनिक होगा हमको
कैसे हम अपने को खोजें
मानव शरीर सदा त्याग है
इसको हम कैसे अब भुले
किसी को.......................

सत्य है ईश का साथ है
झुठ बस अहम् का भाव है
लोभ लालच की गठरी लै
जाना तुझे कौन से गँवा है
किसी को.......................

संभल जा पथीक अनत के
क्या तेर बस ये ही मार्ग है
चौरासी य़ौनी की ऐ आत्म
अब भी वो क्यों बेकरार है
किसी को.......................

किसी को दर्द ना हो
आँखों से आँसुं ना छलके
कोई ना किसी से रूठे
अब ना किसी का दिल टूटे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"अब भी कुछ बाकी है"

अब भी कुछ बाकी है
दीये संग जल रही बात्ती है
अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
सुख दुःख बस बड भागी है
अब भी कुछ बाकी है ................

हल्की सी लहर वो जीवन की
उमीदों भरी वो झांकी
सागर तट पर बैठा सोच अकेला मै
सुख और दुःख अब विहंगों की भांती है
अब भी कुछ बाकी है ................

रहता है वो कभी कभी
सुँदर स्वप्न को जो मेला है
नीले आकाश तले साथ साथ चलों मै
सुख दुःख ओर इंसान अकेला है
अब भी कुछ बाकी है ................

रोका होआ है वो डांटा होआ है वो
पग पथ पर अडिग होआ है वो
राही राह के मंजील लक्ष्य के
सुख दुःख बीच भवंर फंसा है वो
अब भी कुछ बाकी है ................

अब भी कुछ है वो पल पर घटित है
बुलओं कैसे जो खुद ही प्रवर्तित है
प्रवाह धार मै वह स्वंय प्रवाहीत है
सुख दुःख जो तेरे कर्म भाग संचित है
अब भी कुछ बाकी है ................

अब भी कुछ बाकी है
दीये संग जल रही बात्ती है
अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
सुख दुःख बस बड भागी है
अब भी कुछ बाकी है ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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उत्तराखंड नेग

मैती वाली दीदी ......मैती वाली ऐ
ब्योहा वहाई हरयाली लाई
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ
डंडी कंडी अब डंली जमाली
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

प्रथा मेरा गढ़ा की निराली
ब्योहा मा अब वा दमके देखे
ऐ ब्योला डाली दगड माया लगै
जुतों थे ना अब हमल चुरै
गढ़ देश थै ब्योला अपरू नेग दे
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

म्यार मैता की दीदी भुली
गढ़ देश की म्यार बेटी ब्वारी
ऐ बात आपरा साथ बांध दे
ब्योला ना लागलो एक डाली
तबै बारात ना जली परते
म्यार जंगलात तो खिले ऐ ब्योला
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

धन मेरु उत्ताराखंड धन मेरा उतराखंडी
जैण सोची समजी की ऐ दान
बनोला अपरा ऐ भारत महान
हरीयालू पसरील अब ऐ संसार
देख नात लगाणी ब्योला डाली
ऐ व्हैग्या अब तेरी श्याली ब्योला श्याली
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

मैती वाली दीदी ......मैती वाली ऐ
ब्योहा वहाई हरयाली लाई
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ
डंडी कंडी अब डंली जमाली
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

बालकृष्ण डी ध्यानी
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गढ़ बरखा

घिर घिर की ऐ बरखा
च्खाल पखाल कैगै बरखा
एक सर पडी डंडों पुँर तक
सब चीखलाणु कैगै बरखा
घिर घिर की ऐ बरखा ...................

सबथै घिर भीर कैगै बरखा
भिजलाणु माया दैगै बरखा
हरयालो मन बसेगै बरखा
जीकोडी तिस जगगै बरखा
घिर घिर की ऐ बरखा ...................

कण ऐ तो कण चलगै बरखा
म्यार गढ़ देशा की तो छे बरखा
एक धार पाडीकी ऐ बरखा
कण झट तो रुअडी गै बरखा
घिर घिर की ऐ बरखा ...................

दाणा लोगों थै भरमीगै बरखा
कण मुंडा मारयु ऐ बरखा की बल
इत्गा पुडणा बाण तो किले ऐ बरखा
बस झोला पडी सर चलीगै बरखा
घिर घिर की ऐ बरखा ...................

घिर घिर की ऐ बरखा
च्खाल पखाल कैगै बरखा
एक सर पडी डंडों पुँर तक
सब चीखलाणु कैगै बरखा
घिर घिर की ऐ बरखा ...................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दर्द

एका एक खयाल आ बैठा
दूर बैठे बैठे वो मुस्कुरा बैठा
वंही पास से रुदन स्वर आ बैठा
मैने अपने से युं पुछा बैठा
कौन से रिश्ता के साथ तो बैठा
एका एक खयाल ................

गम और आनंद की परीणीती
मै आज खुद को युं उलझा बैठा
सुख दुःख की सीमा मै आज
खुद को आज मै फंसा बैठा
एका एक खयाल ..............

खुशी मै चेहरा खिला बैठा
दुःख मै अफसोश जता बैठा
आप नो मै कभी मै आ बैठा
कभी परायों को गले लगा बैठा
एका एक खयाल ..............

जश्न मै फीजोल मना बैठा
दर्द मै जब युं करहा बैठा
तब रिश्ता दर्द का बना बैठा
तब उसे अपने से मै लगा बैठा
एका एक खयाल ..............

एका एक खयाल आ बैठा
दूर बैठे बैठे वो मुस्कुरा बैठा
वंही पास से रुदन स्वर आ बैठा
मैने अपने से युं पुछा बैठा
कौन से रिश्ता के साथ तो बैठा
एका एक खयाल ................

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"पोट्गी"

पोट्गी भूखी
जीकोडी चुप
छुपा बुल्दी
रोटालू तोड़दी

पोट्गी
गरीबी का रोग
पाणी को भोग
सदनी का सदनी
जाण तिल फिर भी रैण

पोट्गी
उसाह्यल पड़णी
बाटा हेरणी
सुख का दगडया
दुःख गीणणी

पोट्गी
गार टिप्पणी
ढुंगा ढुंगा सैरणी
आंखी बोलाणी
टिप टिप रोंलों पोडणी

पोट्गी
क्या क्या तो करणी
माया लुटाणी
आबरू लज्जा छुटणी
डाली फंसा लगणी

पोट्गी
पोट्गी ऐ पोट्गी
तेणु ऐ खेल रच्या
गढ़ देश थै भरमाया
मी थै यकुली बनया

पोट्गी
पोट्गी भूखी
जीकोडी चुप
छुपा बुल्दी
रोटालू तोड़दी

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"वो हाथ वो साथ "

जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..२
देखो बारात चली दुर मेरे खवाबों मै
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

दिल का अहसास जगा हाथों से ....२
नजरों ने साथ दिया इन हाथों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

करने चली वो बात इन हाथों से ...२
फिर होगी मुलकात कंही हाथों से
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

छुपे होऐ जजबात जागेंगे हाथों से ...२
जब हल्का स्पर्श मीला इन आँखों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

सांसों मै अब छु रही हो मुझको ..२
हाथों सहरा लै कंधे पै तुम झुल रही हो
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

अजब कशीश है इन हाथों मै ...२
रेखाओं से अब मेरा मुकदर संवरता है
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

याद खनकी है तेरे हाथों की चूड़ी की ...२
बस देना साथ मुझे तेरे इन हाथों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..२
देखो बारात चली दुर मेरे खवाबों मै
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कट कटे की
 
 जंगलात कट कटे की
 क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण
 ढ़ौगा रड रडीकी आज
 क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण .....
 
 रॉड़ी बॉड़ी गैण ऐ बाटा
 रीटा व्हागै मेरु गढ़ आजा
 बार मैण बार मैंण ग्याई
 बैडो की दाणी पाकी राई .......
 
 लाला माटा की सीडी
 लाल बाजार को गजारा
 बिता दीण बिता रैण
 सब लुकी गै पर्दा आडा  .......
 
 बिरडी गै मेरु रीती रिवाज
 हर्ची गैनी संस्क्रती आज
 तोडी की देब्तों का मंदिर
 कंण झोमेली ऐ गढ़ न्य़ार.........
 
 क्ख्क छुपी मेरु भगा
 कंण रूठी गै मेरु बाबा
 बोई मेरी तेरु ही आशा 
 हे मेरु जग को विधाता............
 
 जंगलात कट कटे की
 क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण
 ढ़ौगा रड रडीकी आज
 क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण .....
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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प्यास उत्तराखंड

प्यासा मै प्यास मेरा जन्म
प्यासी मेरी धरती प्यास मेरा देश
प्यास मेरा गावों प्यास मेरा उत्तराखंड
प्यासी नदी प्यासी खेता खलियान
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

हर जगह प्यास छायी
माँ गंगा की भुमी पानी मांगें
अपनी जुबान फिर भी ना खुले जी
ना मिले पानी हमको जी
अपनों की दूर कंही प्यास बुझती जी
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

बंधों का देश अब मेरा उत्तराखंड
सुरगों ओर छेदों का उसे लगा ग्रहण
बिजली कै खेल मै छुट गयी अपनी रेल
झुख झुख कर लुट गयी गढ़ को तेल
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

प्रगती की दौड की छ्यों ऐ गढ़ नशा
ठेकदरों णी चोपट कयी ऐ वैव्यस्था
नेतओं की कर कुजरी मा हे देशा मेरा
रेग्यु मै दगडी तो भी उत्तराखंड तिशालो
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

प्यासा मै प्यास मेरा जन्म
प्यासी मेरी धरती प्यास मेरा देश
प्यास मेरा गावों प्यास मेरा उत्तराखंड
प्यासी नदी प्यासी खेता खलियान
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

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छुंयीं ऐ छोर

छुंयीं ऐ छोर
मेरु विपदा ऐ छोर
मेरु विचार भी ऐ छोर
क्ख्क जाणी वहाली मेर सोच ऐ छोर
उतरखंड ऐ मेरु उत्तराखंड
छोडी की तेर छोर क्ख्क जाण वहाली ऐ छोर
छुंयीं ऐ छोर .....................

बिरडी बिरडी ग्याई कै ओर
मेरु जीकोडी भगा को ऐ सोर
देख रंगा का रंगा लगी केले वै ओर
को बटाणों वहालो हमरु शोर
वहैग्य गढ़वाशी ऐ गढ़ मा केले बोझ
उदाशी हेरदी जीकोडी कूड़ा कूड़ा
उतरखंड ऐ मेरु उत्तराखंड
छोडी की तेर छोर क्ख्क जाण वहाली ऐ छोर
छुंयीं ऐ छोर .....................

बोल्यां मान मेर जीकोडी तु चली कै ओर
को वहोल तेरा तै फुंडा तै सड़की का वो छोर
को बोलणु वहलो को छुंयीं लगाणु वहलो
तै मा मया ऐ जीकोडी सी को सजोणी वहली
मेरु बाटा कीथै तो अब ध्यै लगाण वहाली
को आयी यख परती ये गढ़देश को ऐ छोर
उतरखंड ऐ मेरु उत्तराखंड
छोडी की तेर छोर क्ख्क जाण वहाली ऐ छोर
छुंयीं ऐ छोर ................

छुंयीं ऐ छोर
मेरु विपदा ऐ छोर
मेरु विचार भी ऐ छोर
क्ख्क जाणी वहाली मेर सोच ऐ छोर
उतरखंड ऐ मेरु उत्तराखंड
छोडी की तेर छोर क्ख्क जाण वहाली ऐ छोर
छुंयीं ऐ छोर .....................

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