Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447990 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घर लौटा

थकाहारा सा वो घर लौटा
दिनभर कस्टकारा घर लौटा
मंद पग की गति से घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा

चिंता की लकीर बिखेरे
माथें पर तन तनी सा घर लौटा
अपने मै ही लगा रहा वह
मस्तिस्क विचारों भरा घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा

कल और आजा के फैरे
मै इस तरहा जकड़ा सा घर लौटा
सुबह शाम रात इन पहरों मै
आटे रोटी दाल मै दला घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा

क्या? वो संपूर्ण घर लौटा
या वो आधा आधा सा घर लौटा
किस्मत गरीबी का मार
वो एक एक मजदुर घर लौटा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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तेरा बाण

आज मुख खोलों
मिथ्या कैसे बोलो
अपने आप सै खुद
को कैसै मै जोड़ों
हे उत्तराखंड तेरा बाण

क्ख्क हार्ची गैण
बाटा मेरा परती का
छेलू बैठ्युं डाला
तिमाला का सारा
देख उत्तराखंड तै बिगर

दे दै हक मीथै भी
पुकारा दै मेरु भी नाम
कीले बिरडी गों मी
ऐ बद्री-केदार को धाम
जीकोडी बोल्दी हे उत्तराखंड

अब बिरडी गों तो बिरडी
मेर बाटा मेरा गोंव बोई
पर अब भी रुलंदी रैंदी तो
ऐ जीकोडी का ऐ खोल मा
कंण बिसरू हे उत्तराखंड मी तीथै

मन मंदिर मा बसी रैंदु सदनी
एक बेल णी जंद दूर तो कभी
रूं मी ऐ आल छाल वै पला छला
आंखी रूणी रैंदी मेरु गाला
हे उत्तराखंड सदनी मी तेरु बाण

आज मुख खोलों
मिथ्या कैसे बोलो
अपने आप सै खुद
को कैसै मै जोड़ों
हे उत्तराखंड तेरा बाण

बालकृष्ण डी ध्यानी
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चुस्की आनंद की

ले चुस्की आनंद की
या फिर मारले अपने मन को
या हार ले चिंता यौवन की
लागले डुबकी अब ये तन की
ले चुस्की आनंद की................

नीली चदरी आसमान की
गीली गगरी इस जग की
ठगी गठरी हर जन जन की
मया संग पीटे हर पंत की
ले चुस्की आनंद की................

राम रहीम इस जंग की
जीत हार इस जीवन की
अनेक लक्ष्य भरा मनवा
ना मीली प्रीत मुझे मन की
ले चुस्की आनंद की................

अपनी चिंता को भगा
सत्य का धनुष तो तु उठा
प्रभु रंग मै रंग जा इंतना
आत्म के आनंद को तो जगा
ले चुस्की आनंद की................

ले चुस्की आनंद की
या फिर मारले अपने मन को
या हार ले चिंता यौवन की
लागले डुबकी अब ये तन की
ले चुस्की आनंद की................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दीदी मेरु उत्तराखंड

कण लागदी भलु लगादी ..२
ऐ पाहाडा ऐ मेरा ऐ कामो गढ़वाल ...२
ऐ उत्तराखंड दीदी मेरु उत्तराखंड

देख देख डंडा ऐ उंचा आकाश ऐ गढ़वाल
अरु की डाली ऐ डंडा ऐ गडवाल
घुघूती हिलंसा ऐ आकाश ऐ गढ़वाल

कण लागदी भलु लगादी ..२
ऐ पाहाडा ऐ मेरा ऐ कामो गढ़वाल ...२

हे हिमाल देब्तों को बाश
बगती जंद गंगा बोई ऐ पहाडा गढ़वाल
वाख बस्युं बद्री-केदार धाम ऐ गढ़वाल ऐ हिमाला

कण लागदी भलु लगादी ..२
ऐ पाहाडा ऐ मेरा ऐ कामो गढ़वाल ...२

तेडा मेडा सड़की उकालों उंदुरों का बाट
ऐजा पीजा ठंडा मीठू पाणी मेरा गढ़वाल
मया लागंदा माटी मेरा गड़ा की ऐ गढ़वाल की

कण लागदी भलु लगादी ..२
ऐ पाहाडा ऐ मेरा ऐ कामो गढ़वाल ...२
ऐ उत्तराखंड दीदी मेरु उत्तराखंड

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
याद सातों दी

तिल बी नी जाणी मील भी नी जाणी
झण क्या वहाई बल माया माया लगाणी
तिल बी नी जाणी.......२

अरु की दाणी वा नारंगी की सोली
कण कब बाणली वा मेरी ब्योली
तिल बी नी जाणी.......२

गेंहों चवलों को छुची कंण लगदी स्यारी
क्या वहई प्यारी आज तेरी याद बड़ी आई
तिल बी नी जाणी.......२

बुरंस प्योंली खिला देख वो उंचा डंडा
ऐ आकाश उडदा अपरी प्रीत का घुघूती हीलंसा
तिल बी नी जाणी.......२

तेरी मेरी मया मा ऊँचा निसा डंडा कण झुमैला
आपर दगड़ा दगडी ऐ भी अब गढ़ घुमैला
तिल बी नी जाणी.......२

कंण रंगमत बाण्युच मी ब्योला बणीकी
याद आणी च अब जब मील घोडी चड़ीच
तिल बी नी जाणी.......२

आज बैठ्युंच दूर मी यख गढ़ देश छुडी की
तेरी मया अब भी बिता दीण की मै दगडी छुंयीं लगादी
तिल बी नी जाणी.......२

आंखी भुर भुरीकी यकुली अंशुं बहंदी
ऐ परदेश मा ऐ गढ़ देश उत्तराखंड तेरी याद सातों दी
तिल बी नी जाणी.......२

तिल बी नी जाणी मील भी नी जाणी
झण क्या वहाई बल माया माया लगाणी
तिल बी नी जाणी.......२

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घर लौटा

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एक मजदुर आपने घर लौटा

चिंता की लकीर बिखेरे
माथें पर तन तनी सा घर लौटा
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कल और आजा के फैरे
मै इस तरहा जकड़ा सा घर लौटा
सुबह शाम रात इन पहरों मै
आटे रोटी दाल मै दला घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा

क्या? वो संपूर्ण घर लौटा
या वो आधा आधा सा घर लौटा
किस्मत गरीबी का मार
वो एक एक मजदुर घर लौटा

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प्यास उत्तराखंड

प्यासा मै प्यास मेरा जन्म
प्यासी मेरी धरती प्यास मेरा देश
प्यास मेरा गावों प्यास मेरा उत्तराखंड
प्यासी नदी प्यासी खेता खलियान
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

हर जगह प्यास छायी
माँ गंगा की भुमी पानी मांगें
अपनी जुबान फिर भी ना खुले जी
ना मिले पानी हमको जी
अपनों की दूर कंही प्यास बुझती जी
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

बंधों का देश अब मेरा उत्तराखंड
सुरगों ओर छेदों का उसे लगा ग्रहण
बिजली कै खेल मै छुट गयी अपनी रेल
झुख झुख कर लुट गयी गढ़ को तेल
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

प्रगती की दौड की छ्यों ऐ गढ़ नशा
ठेकदरों णी चोपट कयी ऐ वैव्यस्था
नेतओं की कर कुजरी मा हे देशा मेरा
रेग्यु मै दगडी तो भी उत्तराखंड तिशालो
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

प्यासा मै प्यास मेरा जन्म
प्यासी मेरी धरती प्यास मेरा देश
प्यास मेरा गावों प्यास मेरा उत्तराखंड
प्यासी नदी प्यासी खेता खलियान
प्यासा मै प्यास मेरा जन्म....................

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जब

जब याद किसी की आती है
दो आंखें नम सी हो जाती हैं

पत्तों की आड़ मुस्कुराती है
फुलों संग वो गुद गुदाती

काँटों का दर्द वो छुपती है
हरियाली परिवर्तीत हो जाती है

मुझ से मै अकेले बतलाती है
कंही विरानो वो लै जाती है

इठलाती है इस तरंह से वो
दो बातें मुझ से कह जाती है

सपनो कंही कभी हकीकत मै
आपना स्नेह मुझ पर लुटाती है

हर पल मुझे वो समझती है
प्रकर्ती नई कहानी लगती है

होने का अहसास जगती है
दिल की धडकन धडकती है

जब याद किसी की आती है
दो आंखें नम सी हो जाती हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कट कटे की

जंगलात कट कटे की
क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण
ढ़ौगा रड रडीकी आज
क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण .....

रॉड़ी बॉड़ी गैण ऐ बाटा
रीटा व्हागै मेरु गढ़ आजा
बार मैण बार मैंण ग्याई
बैडो की दाणी पाकी राई .......

लाला माटा की सीडी
लाल बाजार को गजारा
बिता दीण बिता रैण
सब लुकी गै पर्दा आडा .......

बिरडी गै मेरु रीती रिवाज
हर्ची गैनी संस्क्रती आज
तोडी की देब्तों का मंदिर
कंण झोमेली ऐ गढ़ न्य़ार.........

क्ख्क छुपी मेरु भगा
कंण रूठी गै मेरु बाबा
बोई मेरी तेरु ही आशा
हे मेरु जग को विधाता............

जंगलात कट कटे की
क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण
ढ़ौगा रड रडीकी आज
क्ख्क रॉड़ी बॉड़ी गैण .....

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थमी सी

थमी सी ऐ जींदगी
थम थम कर चल रही
पल बीत रहें पल
पर ऐ माध्यम चल रही
थमी सी ऐ जींदगी .........

उसको पकडने की चाहा मै
वो रेत हाथों से छुट रही है
पाना चाहती वो सब कुछ
एक एक कर वो खो रही है
थमी सी ऐ जींदगी .........

हकीकत को वो छोड़ रही है
बस सपनो मै वो खो रही है
लगी बस देखो कुछ पाने मै
क्या पाया उसने दो आने मै
थमी सी ऐ जींदगी .........

गुजर गयी देखो वो रेल
बस वो दो लकीरों का खेल
बस खेला तुने ऐ खेला यंहा
ना समझा जिन्दगी का मेल
थमी सी ऐ जींदगी .........

थमी सी ऐ जींदगी
थम थम कर चल रही
पल बीत रहें पल
पर ऐ माध्यम चल रही
थमी सी ऐ जींदगी .........

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