घर लौटा
थकाहारा सा वो घर लौटा
दिनभर कस्टकारा घर लौटा
मंद पग की गति से घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा
चिंता की लकीर बिखेरे
माथें पर तन तनी सा घर लौटा
अपने मै ही लगा रहा वह
मस्तिस्क विचारों भरा घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा
कल और आजा के फैरे
मै इस तरहा जकड़ा सा घर लौटा
सुबह शाम रात इन पहरों मै
आटे रोटी दाल मै दला घर लौटा
एक मजदुर आपने घर लौटा
क्या? वो संपूर्ण घर लौटा
या वो आधा आधा सा घर लौटा
किस्मत गरीबी का मार
वो एक एक मजदुर घर लौटा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत