Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448056 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घाव मेरे

अनगनीत घाव मेरे
दामन पर अब रोज लगे
एक एक कर सब
अपने मुझको छोड़ चले
अनगनीत घाव मेरे .........

पहाड़ आज खोया
आपना कोई आज रोया
खोज ने निकला कोई कंही
बस अपना साया छोड़ा
अनगनीत घाव मेरे .........

चलते कदम उस पर
आपस मै अब अपने से कहे
कितने गये और कितने जायेंगे
इस धरा से यूँ टूटकर
अनगनीत घाव मेरे .........

व्यथीथ्त होआ हों मै
छलीत होआ हो अपनों से ही
गलानी से गलीत होआ हों मै
पल्यान की इन गलीयुं से
अनगनीत घाव मेरे .........

खंड ना बन सका
अब अपने खंड वासीयों का
पहाड़ अब छोड़ राहा हों
दर्द खुद अब झेल राहा हों
अनगनीत घाव मेरे .........

अनगनीत घाव मेरे
दामन पर अब रोज लगे
एक एक कर सब
अपने मुझ को छोड़ चले
अनगनीत घाव मेरे .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"आखिरी पडवा"

एक को लेकर बैठा मै दो आ गया
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया.....................

अब मुझ को इस तरह रोज बुखार आ गया
महगाई देखकर एक एक ऐ विचार आ गया
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

वो ही मुफ्ता आया अब तक साथ साथ मेरा
बाकी अब सब बिल के साथ उधार आ गया
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

पसीने संग बहाया था कभी पसीना मैने भी
सोचा था सब अपना है अब वो पराया हो गया
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

एक एक कर जोड़ा था मैने ऐ कभी घरोंदा
अब देखो उस मै पतझड़ सा बाहार छागया है
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

उजाड़ मै बसा अब मेरा तन मन और धन
दिपका जला है घर पर वो अँधेरा खोज रहा है
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

उम्र की आखिरी पड़ाव की पीड़ा वो ही जाने
जिस ने जींदगी बस मेरी तरहां स्वाह कर दिया है
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया ..........................

एक को लेकर बैठा मै दो आ गया
उम्र का आखिरी देखो पडवा आ गया.....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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घाव मेरे

अनगनीत घाव मेरे
दामन पर अब रोज लगे
एक एक कर सब
अपने मुझको छोड़ चले
अनगनीत घाव मेरे .........

पहाड़ आज खोया
आपना कोई आज रोया
खोज ने निकला कोई कंही
बस अपना साया छोड़ा
अनगनीत घाव मेरे .........

चलते कदम उस पर
आपस मै अब अपने से कहे
कितने गये और कितने जायेंगे
इस धरा से यूँ टूटकर
अनगनीत घाव मेरे .........

व्यथीथ्त होआ हों मै
छलीत होआ हो अपनों से ही
गलानी से गलीत होआ हों मै
पल्यान की इन गलीयुं से
अनगनीत घाव मेरे .........

खंड ना बन सका
अब अपने खंड वासीयों का
पहाड़ अब छोड़ राहा हों
दर्द खुद अब झेल राहा हों
अनगनीत घाव मेरे .........

अनगनीत घाव मेरे
दामन पर अब रोज लगे
एक एक कर सब
अपने मुझ को छोड़ चले
अनगनीत घाव मेरे .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी17 hours ago On your profile · Remove
खामोश निगाह
 
 शांत सरल निश्चल
 विरल भाव से निहार रही
 ऐ खामोश निगाह
 कीसकी राह ताक रही है
 
 अतंर वेदाना का बांध
 संभाले चक्षु उनका स्थान
 प्रीत स्नेह का वो धाम
 हम करें क्योँ उन्हें बदनाम
 
 स्थील मुरत विलक्ष्ण आभा
 चंद्र करोलीत है उसकी वो कांता
 घुंघट मै छुपी वो बदली
 अब तो हंस दे वो पगली
 
 देखे जा रही स्थिर मार्ग
 अवरुद्ध है अब हर वो द्वार
 जिस संग ब्याह वो ब्याही
 इन्तजार की अब घड़ी आयी
 
 शांत सरल निश्चल
 विरल भाव से निहार रही
 ऐ खामोश निगाह
 कीसकी राह ताक रही है
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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घाव मेरे
 
 अनगनीत घाव मेरे
 दामन पर अब रोज लगे
 एक एक कर सब
 अपने मुझको छोड़ चले
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 पहाड़ आज खोया
 आपना कोई आज रोया
 खोज ने निकला कोई कंही
 बस अपना साया छोड़ा
 अनगनीत घाव मेरे .........
 
 चलते  कदम उस पर
 आपस मै अब अपने से कहे 
 कितने गये और कितने जायेंगे
 इस धरा से यूँ  टूटकर
 अनगनीत घाव मेरे .........
 
 व्यथीथ्त होआ हों मै
 छलीत होआ हो अपनों से ही
 गलानी से गलीत होआ हों मै
 पल्यान की इन गलीयुं  से
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 खंड ना बन सका
 अब अपने खंड वासीयों का
 पहाड़ अब छोड़ राहा  हों
 दर्द खुद अब झेल राहा हों
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 अनगनीत घाव मेरे
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 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देख कंण
 
 देख कंण जलणा
 धुं धुं  कै की पैटण छीण
 जंगलात म्यार  देवभुमी  का
 म्यारा  उत्तराखंड का
 
 कंण राख  होणा छीण
 वनसंपदा नस्ट होण छीण
 खेल  खेल्णु  को यख
 विपदा सैणु को यख
 जंगलात म्यार  देवभुमी  का
 म्यारा  उत्तराखंड का
 
 धोयेन्ड़ो धोयेन्ड़ो होंयुंच
 सरकार क्ख्क सीयंच
 बातणी ऐ बरसा की नेता दीदा
 हर बरसा ईणी पैटणु चा
 जंगलात म्यार  देवभुमी  का
 म्यारा  उत्तराखंड का
 
 देख मनखी दुःखणी
 व्यथा यकुली वा गणणी
 शरीर दगडी जलणाणी
 डाली मेरा गढ़देशा की
 जंगलात म्यार  देवभुमी  का
 म्यारा  उत्तराखंड का
 
 देख कंण जलणा
 धुं धुं  कै की पैटण छीण
 जंगलात म्यार  देवभुमी  का
 म्यारा  उत्तराखंड का
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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"को ऐ बाटा"

सड़की का मोड़...मोड़ ऐ
को बैठ वो छोर ...छोर ऐ

लग्यां मी सरू ....सरू ऐ
को आलू पैलू घरु ..घरु ऐ

देख लाग्यां बाटा....बाटा ऐ
देखेण छन सब छंटा....छंटा ऐ

खाली पड़ा कुडा ....कुडा ऐ
बस घरा नना बुढा ...बुढ ऐ

यकुली मी सरी ...सरीयुं मा
डंडा कंडा अब बेटी .. बेटी ब्वारीयुं

घसा कुल्हा की कुलाह घसा की
छूयीं लगी लगी छूयीं गढ़देश की

समण णी बैठ बैठ णी समण
ध्यै लगाण कै लगाण ध्यै कै

किन्गोड़ कफाल की डाली ...डाली ऐ
छुटी गै छुटी गै मेर बाली ...बाली ऐ

बारामासा की बारा बाता...बाता ऐ
कब वहाली स्वामी तेरी मेरी ...मुल्काता ऐ

बाट हेरणु मी हेरणु बाटा ऐ
ऐगै गाड़ी गाड़ी ऐगै ऐ बाटा ऐ

सड़की का मोड़...मोड़ ऐ
को बैठ वो छोर ...छोर ऐ

लग्यां मी सरू ....सरू ऐ
को आलू पैलू घरु ..घरु ऐ

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खामोश निगाह

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कीसकी राह ताक रही है

अतंर वेदाना का बांध
संभाले चक्षु उनका स्थान
प्रीत स्नेह का वो धाम
हम करें क्योँ उन्हें बदनाम

स्थील मुरत विलक्ष्ण आभा
चंद्र करोलीत है उसकी वो कांता
घुंघट मै छुपी वो बदली
अब तो हंस दे वो पगली

देखे जा रही स्थिर मार्ग
अवरुद्ध है अब हर वो द्वार
जिस संग ब्याह वो ब्याही
इन्तजार की अब घड़ी आयी

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खोया

नादाँन है वो
अपने आप से अन्जान है
बेखबर जिंदगी वंहा
देख कितना आराम है
नादाँन है वो ...............

खुनी पंजा बांहाँ फैलाये
अक्समात आ टाकराये
खोया विचारों मै कंह तो
देख संसार यंह छुट जाये
नादाँन है वो ...............

आंख झुठ स्वप्न सजाये
नया नया ख़वाब दिखाये
मन तन संग हिचकोले खाये
देख भवसागर छुटा जाये
नादाँन है वो ...............

संभाल जा जीवन
गम बस गहरायेगा
आज तेरा कल मेरा
देख ऐ पल आये
नादाँन है वो ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"बिरड़ा बिसरा बाटा "

क्या याद छंन तुम्ह थै
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
देख बुलाणा छीण तुम्ह थै
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

कथा ऐ लगणा छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
उकालु उन्दरू व्यथा छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

थकी बैठ तैं डाली छला
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
कबैर चडु माथा कबैर घसैर भायां
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

खुद ऐकी रुलाण छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
मनखी भीतर बुलाणा छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

गढ़ की पाछाण छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
देख छूयीं लगणा छीण
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

क्या याद छंन तुम्ह थै
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा
देख बुलाणा छीण तुम्ह थै
ऐ बिरड़ा बिसरा बाटा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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