Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448174 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वो चला जा राहा !!!

किस ने दी आवाज
श्याद दिल ने कुछ काहा
आवाज लगायी किसने
देख दुर वो कौन चाला
किसने दी आवाज .........

चला जा राहा क्षीतज की और
जहँ धरती असमान मील़ा
कौन बोला रहा है वंहा उसे
क्यों इस तरंह वो चला
किसने दी आवाज .........

उबाड खाबड़ पथ है वो
ना कोई मंजील के निशाँ
लेकर लक्ष्य वो विश्वास का
करने वो करने हासील चला
किस ने दी आवाज .........

चलता चला है अनंत से वो
कर्म पथ पर वो आगे बड़ा
कर्मठ कर्मयोगी पथक पथीक
वो देखो वो चला वो देखो वो चला
किस ने दी आवाज .........

किस ने दी आवाज
श्याद दिल ने कुछ काहा
आवाज लगायी किसने
देख दुर वो कौन चाला
किस ने दी आवाज .........


बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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धय्याई लगाके ....

गों गोठ्यार जी उधार
सैंती पाली नुनों जी उढ़यार
खेती बाडी जी उकाल
बंजा पुंगडा जी बंसयां घार
गों गोठ्यार जी उधार ...............

उंदारुँ का जी गेल्या मेरा
कैगै जी मनख्यूं थै बीमार
सीदु सादु जी गढ़देश मेरू
कैगे जी माया को उमाला
गों गोठ्यार जी उधार ...............

बुराँस प्योंली जी आज
मोल्यार व्हैकी जी गै रोल्यार
ढोंगा होग्या जी पोटगी का आज
चूल्हों मा जी णी जगदी आगा
गों गोठ्यार जी उधार ...............

बारमास जी बारा बाट
को आलो जी भटकी की आज
धय्याई लगा के दे जी रैबार
छुटगै जी आज घरबार
गों गोठ्यार जी उधार ...............

गों गोठ्यार जी उधार
सैंती पाली नुनों जी उढ़यार
खेती बाडी जी उकाल
बंजा पुंगडा जी बंसयां घार
गों गोठ्यार जी उधार ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"मुस्कुराना मेरा "

दर्द को छुपा मुस्कुराना पडा
अपनों की खुशी के लिये मुस्कुराना पडा!!
रहके दूर दूर मुस्कुराना पडा
देख उजाड़ गुलशन मुस्कुराना पडा !!

पहड़ो को गम दे मुस्कुराना पडा
यादों को तज कर मुस्कुराना पडा !!
आपनो को छोड़ कर मुस्कुराना पडा
आपनो को दर्द दे मुस्कुराना पडा !!

आपनी खुशी के लिये मुस्कुराना पडा
अपने परिवार के लिये मुस्कुराना पडा !!
दुखी तन मेरा फिर भी मुस्कुराना पडा
इस जीवन पथ पर मुस्कुराना पडा !!

मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुस्कुराना पडा
अकेला लड़ता रहा पर मुस्कुराना पडा !!
क्या रंग लायेगा मेरा मुस्कुराना मेरा
या पागल कहलायेगा ये मुस्कुराना मेरा !!

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"एक अनजाना सखी "

कविता महसुस होती है
शब्दों के अंदर खोती है !!

कविता नये आयाम खडा करती है
समाज मै मिसाल पैदा करती है !!

कविता गुबंद खड़ा करती है
हीमालया चोटी से वो बतियाती है !!

कविता दर्द तार छेड़ देती
सुख झंकार मन छु लेती है !!

कविता जीवन सार छुपा है
दीन और दिल का हाल छुपा है !!

कविता सबको बेनकाब करती है
धुंधले दर्पण मै निखार पैदा करती है

कविता भुले को राह देखती है
दिल को समाधान पैदा करती है

कविता सकुन चैन बग्यारी है
विश्व की वो अनजाना सखी है

कविता महसुस होती है
शब्दों के अंदर खोती है !!

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"बडुली"

डंडा कंडा की बडुली
बाटा घारा की बडुली !!
एक बाता की बडुली
कंण लागी ऐ बडुली !!

कंण बडुली लगी च
कु भ्ग्याँण याद कंणुच !!
कैंकी खोयी खोयों होलो
को मीथे बुलाणु वहालो !!
कंण बडुली लगी च ...............

देख मनखी की प्यास
कैगे जीकोडी ऐ उदास !!
याद कणी वहली वा
सोंजाडया लेकी एक घास !!
कंण बडुली लगी च ...............

बस ब्याली की बातच
बडुली लगी परबत च !!
गढ़ कुडा कुडा मा छाई
बडुली सबैर शाम च !!
कंण बडुली लगी च ...............

डंडा कंडा की बडुली
बाटा घारा की बडुली !!
एक बाता की बडुली
कंण लागी ऐ बडुली !!

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सरू गढ़ मा

देखा कंण टुंडा बाणुचा
युओ बुढया बस फुंड बाणुचा
थैली दारू की लुकै लुकै की
कण कूल्हण बैठयूँ चा
देख शराबा की धेल फैल
ठेकदारों की यख चहेल पैल...............

सरकार लाणी बल यख रेल
छुट ग्याई जवानों कब की रेल
भागी भागी ना निकली यूँकी तेल
पांच बरसा को च ऐ छुटी मेल
देख नेतओं की धेल फैल
नेतओं की यख चहेल पैल...............

दीदी भुलीयुं का आरसा
खाणाकुंण ऐ गढ़ तरसा
जीकोड़ी रैगै यख तंसु
अँखोंयों रैगै बल आँसुं
बेटी बव्वारी विपदा खैरी
अपरूल यख कभी णी जाणी ................

देखा कंण टुंडा बाणुचा
युओ बुढया बस फुंड बाणुचा
थैली दारू की लुकै लुकै की
कण कूल्हण बैठयूँ चा
देख शराबा की धेल फैल
ठेकदारों की यख चहेल पैल...............

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वो आगोश

आगोश मै वो आती है
दिल को चैन सकूँन मिल जाता है
दर्द ना जाने कंहा छुप जाता है
दिल मंद मंद मुस्कुराता है
जब आगोश मै वो आती है ...................

छोटी बातों पर रूठ जाती
इस दिल को वो तडपती है
कीसी बहाने पास आती है
दिल फिर झुम जाता है
जब आगोश मै वो आती है ...................

साथ जब वो रहती है वो
वकत ना जाने कैसे कट जाता है
अकेले मै वो लम्हा याद आ जाता है
इस दिल को रुलाता है
जब आगोश मै वो आती है ...................

वो मेरी संगनी सात परदों की
हर दर्पण मै वो खिल जाती है
आपना वादा निभाने वो देखो
हर जीवन मै वो मील जाती है
जब आगोश मै वो आती है ...................

आगोश मै वो आती है
दिल को चैन सकूँन मिल जाता है
दर्द ना जाने कंहा छुप जाता है
दिल मंद मंद मुस्कुराता है
जब आगोश मै वो आती है ...................

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हे विधात
 
 हे विधात..2 कंण
 भग्या बणयुच
 खैरी  विपदा  मेरी
 अब बाट हेणुच ........
 
 ढुंगा ढुंगा तोड़ा तोडीकी
 माटा मी सरणुच
 सड़की तिरी बैठीकी
 ध्याडी रोटी खाणुच
 अब बाट हेणुच ........
 
 दोई घसा खाणाकों
 प्याज और मर्चों को
 चटणी वा थिछुणी
 गीचोड़ी मा ल्गाणु च 
 अब बाट हेणुच ........
 
 गीचोड़ी की दोई रेघा
 अख्न्युं भठेक बहणीच 
 उमली ऐ गरीबी की
 पोट्गी  सीलणी च 
 अब बाट हेणुच ........
 
 हे विधात..2 कंण
 भग्या बणयुच
 खैरी  विपदा  मेरी
 अब बाट हेणुच ........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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पेट्रोल

हर एक इंसान सटक होआ है
आगा से ज्याद पेट्रोल भड़का होआ
अब तो बस होआ
मेरे पीछे पड़े सबके सब
मामला संसद नेतओं के बीच लटक होआ है

टमाटर आलु सा मेरा हाल है
अब मै उछालता हों बीच बाजार है
छु राहों ऊँचा आसमान हों
गरीबों से छुटा मेरा साथ है

नेतओं की बोली मै बोलने लगा हों
आटे चावल का भवा सर चड़ने लगा है
दिल हर उसका अब टूटने लगा है
सपना कोसों दुर भागने लगा है

पेट्रोल के नाम से आती है रोढ
हर एक को मै पीछे छोड़ आगे दौड
पेट मै कब्ज सा अब बहने लगा है
दर्द मेरा आँखों से कहने लगा है

पेट्रोल पेट्रोल शोर हर और क्यों
मेरे नाम के पीछे मची होडा क्यों
बार बार उछालता मेर दाम क्यों
नेता क्यों नही देते मुझे आराम क्यों

हर एक इंसान सटक होआ है
आगा से ज्याद पेट्रोल भड़का होआ
अब तो बस होआ
मेरे पीछे पड़े सबके सब
मामला संसद नेतओं के बीच लटक होआ है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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व्यस्थता

दुनिया की व्यस्थता देख
अपने पर मै चौंक
रिश्ता जो आज कल का
देखो कंहा अब खोया

समय को पकड़ना चाह
साथ अपनों का छुट
बारी बारी देखो वो धागा
अब पीछे कंहा छुट

सुबह रात मै फर्क है
ना जाने क्या ऐ दर्द है
क्यों ?दौड राहा हों मै इस तरह
जाने इसका क्या मर्ज है

सब बिखरे बिखरे लगे
अपने आप मै टुकडे लगे
कटे अपने अपने मन से
व्यस्थता घिरे अपने तन से

दुनिया की व्यस्थता देख
अपने पर मै चौंक
रिश्ता जो आज कल का
देखो कंहा अब खोया

बालकृष्ण डी ध्यानी
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