Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448174 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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माँ गंगा चली स्वर्ग लोक

अब भी लगता है कुछ बदलेगा
पवन सिंधु को क्या अब उसे हर लेगा
गंगा चीख रही है पुकार के
क्या मानव अब उसको तज देगा
या फिर से वो उसको डस लेगा
अब भी लगता है कुछ बदलेगा...............

निर्मल जल धारा मुक्ता था किनार
उतरी थी स्वर्ग से ले शिव जाटा का सहरा
भगीरथ तप ने दिया धरती पर उतारा
उत्तराखंड से जब निकली वो मोक्ष की धारा
पापियों ने निज पाप बहा मैला कर डाला
अब भी लगता है कुछ बदलेगा................

स्वच्छा कर तन जप अपने मन
गंगा को छल होआ दूषित जल
नेता और बाहुबली सब संग दल
भाषण प्रेम बोल गंगा करेंगे निर्मल
ठेखा दे ठेखादरों से ऐंठ बस धन
अब भी लगता है कुछ बदलेगा..............

आस्था को कब तक ठेस लगेगी
कब तक भक्त दिल से बस आहीत होंगें
आंसूं की दो बूंद लुढका कर आगे चल देंगें
या फिर कोई भगीरथ आयेगा यंहा
फिर से माँ गंगा स्वर्ग वो ले जायेगा
अब भी लगता है कुछ बदलेगा..............

अब भी लगता है कुछ बदलेगा
पवन सिंधु को क्या अब उसे हर लेगा
गंगा चीख रही है पुकार के
क्या मानव अब उसको तज देगा
या फिर से वो उसको डस लेगा
अब भी लगता है कुछ बदलेगा...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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कु जाण

मील बोली ठीख बोली
कु जाण कु जाण
जीकोडी दुकन कंण कै खुली
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

सीधी साधी गढ़ बोली
कु जाण कु जाण
कब बाणल गढ़ भाषा
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

उत्तराखंड राज्य बाणीगै
कु जाण कु जाण
राजधानी क्ख्क तू हर्चे
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

डामा को खंड मयारू
कु जाण कु जाण
बिजली तिश बिश व्हगै
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

सरकार तिल पाछाँण
कु जाण कु जाण
अंगठा दे सबगै बेकारा
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

मील बोली ठीख बोली
कु जाण कु जाण
जीकोडी दुकन कंण कै खुली
कु जाण कु जाण
मील बोली ठीख बोली ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बिसरी गैनी
 
 घर दर गों गोठ्यार बिरडी गैनी बिरडी गैनी
 बाटा बाटों दगडी छुंयीं लगणा
 अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी .......
 
 खूंटी हिटे की खूंटी क्ख्क गैनी खूंटी क्ख्क गैनी
 मायादार मायामुल्क छोडी माया लुक गैनी
 अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी .......
 
 पंतैद्र ,कंस्य,कसैरी चांदी की पैजाणी हर्ची गैनी हर्ची गैनी
 कुदू की रोटी कनकरालू घीयु सरगैनी सरगैनी
 अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी .......
 
 मेल मिलाप भैचार रीती रीवाज लुप्त वहैणी लुप्त वहैणी   
 लोभ माया का कडाई सब का सब उबल गैणी   
 अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी .......
 
 घर दर गों गोठ्यार बिरडी गैनी बिरडी गैनी
 बाटा बाटों दगडी छुंयीं लगणा
 अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी .......
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with Kamal Suyal. Photo: बिसरी गैनी घर दर गों गोठ्यार बिरडी गैनी बिरडी गैनी बाटा बाटों दगडी छुंयीं लगणा अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी ....... खूंटी हिटे की खूंटी क्ख्क गैनी खूंटी क्ख्क गैनी मायादार मायामुल्क छोडी माया लुक गैनी अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी ....... पंतैद्र ,कंस्य,कसैरी चांदी की पैजाणी हर्ची गैनी हर्ची गैनी कुदू की रोटी कनकरालू घीयु सरगैनी सरगैनी अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी ....... मेल मिलाप भैचार रीती रीवाज लुप्त वहैणी लुप्त वहैणी लोभ माया का कडाई सब का सब उबल गैणी अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी ....... घर दर गों गोठ्यार बिरडी गैनी बिरडी गैनी बाटा बाटों दगडी छुंयीं लगणा अपरा सैंगुसर बिसरी गैनी बिसरी गैनी ....... बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथ मेरा ब्लोग्स http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत height=4035Like ·  · Share

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जाने किस बात पै

एक पन्ना टूटा शाख से
साथ छुटा अब उस हाथ से
पहड़ों से उड़ता उड़ता गया
जाने किस बात पै

रूठा सा लगता है वो
उड़ा इस तरहं हवा से वो
हवा से भी जुदा सा लगता है वो
अपनों से छुटा वो पत्ता
जाने किस बात पै

साथ था कभी अपनों के
अकेले आज कंहा वो उड़ा चला
खोज रही है अब भी ऐ धरा
जो पन्ना टूटा इस शाख से
जाने किस बात पै

एक पन्ना टूटा शाख से
साथ छुटा अब उस हाथ से
पहड़ों से उड़ता उड़ता गया
जाने किस बात पै

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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प्रवासी उत्तराखंड

मी प्रवासी पहडीयूँ थै
जब मी ऐ बात पूंछदूँ
भै मेरा क्या बात व्हाई
किल तिल ऐ पहडा छुडै

बात बात मा बात गोल व्हैजन्दी
अन्खुमा आंसूं की रेघ ऐजांदी
कंठ जब भुर जांदी गलडू बाटा
जीकोदी सररर फ़ैल जांदी
मी प्रवासी पहडीयूँ थै
जब मी ऐ बात पूंछदूँ......................

जब मन को उमल थामेंदूँ
त्बैर दोई शब्द अब भैर आंदी
हे उत्तरखंड हे मेरा बोयी
मी रैलू क्ख्क भी मरुँण मील यखी आण
मी प्रवासी पहडीयूँ थै
जब मी ऐ बात पूंछदूँ......................

मील जाँणयाली वोंकी पीड़ा
मील पाछायाण आली वोंकी खैरी
भुमी अपरी छुडीकी कु भी खुश नीच
तेरा भागमा बस आंसूं रैन
मी प्रवासी पहडीयूँ थै
जब मी ऐ बात पूंछदूँ......................

मी प्रवासी पहडीयूँ थै
जब मी ऐ बात पूंछदूँ
भै मेरा क्या बात व्हाई
किल तिल ऐ पहडा छुडै

बालकृष्ण डी ध्यानी
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सब सीयँ छंण

अबैर दा गीज्यां छंण सब
अपरा अपरा छुंयीं मा ...२
गढ़देश उत्तराखंड मा दीदा
कैल सोचण सींयां छंण च सब
अपरा अपरा नींदी मा ....२
अबैर दा गीज्यां छंण सब ...............

उत्तराखंड सरकार सीयीं छा
लोक अपरमा गीज्यां छं
कैल ध्यै लगाण कैल जगाण
कैल यख मशाल जलाण
कैल कूड़ा भतैक भैर आण
अबैर दा गीज्यां छंण सब ...............

बंजा पुंगडा थाल बजाण
माशाण गदनीयाँ जागर लगाण
रडदा डंडा अब देख नाचणा
कब जागा होलो हे नरंकार
आपरा बस भुल्हा बाटा हेरणा
अबैर दा गीज्यां छंण सब ...............

देवी सती अब जगी हो
मुछलों मा दमी अब डैर भगा
हे भगवती फिर मशाल पेटा
शहीद क्रांतीकरीयुं भै भैणु
टपराणु जीयु को अब तु मुक्ती दे
गैरसैण राजधानी बाणा..............

अबैर दा गीज्यां छंण सब
अपरा अपरा छुंयीं मा ...२
गढ़देश उत्तराखंड मा दीदा
कैल सोचण सींयां छंण च सब
अपरा अपरा नींदी मा ....२
अबैर दा गीज्यां छंण सब ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बरखा क्ख्क अब लुकीगै

माँ गंगा जी को देश ..२
होंयूँ यख सब तीसा तीसा,माँ गंगा जी को देश
बूंद बूंद को तडप्रणु मन,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
उमली उमाल फ़ैलयूँ,माँ गंगा जी को देश
गरमा की ज्वार फ़ैलयूँ,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
तपरणी स्वर्ग धरती,माँ गंगा जी को देश
बणी अब यख मरुस्थल,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
काला काला बादल हर्ची,माँ गंगा जी को देश
पाणी बाण अब रुपया खर्ची,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
इंद्र देबता दैणु व्हैजा,माँ गंगा जी को देश
तिसलू भूमी गढ़ देशा की ,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
अख्यूं का अंशु भी सुखीगै,माँ गंगा जी को देश
क्या वहाई ऐ बरसी,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
बरखा क्ख्क अब लुकीगै,माँ गंगा जी को देश
म्यार देबता अब रूठीगै,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
म्यार डैम को देशा,माँ गंगा जी को देश
वैकु पाणी क्ख्क चलीगै ,माँ गंगा जी को देश

माँ गंगा जी को देश ..२
होंयूँ यख सब तीसा तीसा,माँ गंगा जी को देश
बूंद बूंद को तडप्रणु मन,माँ गंगा जी को देश

बालकृष्ण डी ध्यानी
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धोंन्येंडू धोंन्येंडू गढ़देश आज

धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा !
जंगलात खाक व्हागेणी वनसंपदा नस्ट व्हागेणी !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

अक्राराल विकराल अग्नी सब ग्रास कैगयाई !
गढ़ का जंगलों थै अब सब सपाट कैगयाई !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

देखद रैंगैनी ऐ आंखी बस हस अपरा आँखों थै!
गीचुडी सीलगैणी बस आहा स्वास निकल सांसुं थै !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

दम घुटी बर्मंड चडी ज्वार चडी आजार फैल्युं घटीयूँ मा!
अब बार दा भी आगा बुझे गढ़ देशा की बेटी ब्वारीयुं णी !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

सरकारी म्ह्तमा बस बल दिखदा ही दिखदा रैग्याई!
सरग दीदा तिल भी णी बल अंशुं चूलें इन घटीयूँ मा !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा !
जंगलात खाक व्हागेणी वनसंपदा नस्ट व्हागेणी !!
धोंन्येंडू धोंन्येंडू होयुंचा कंण ऐ कोयेडू छायुंचा .....

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टी दारू की

बल बरसा पैल मोरी सासू
अब पोडी ऐ अन्खोयाँ मा आंसूं
दँणमण दँणमण छुटीगै रै दीदा
पैल धारा की गै जब ऐ तंसु दीदा
घुटी दारू की घुटी दीदा ....२

गों गोठ्यार मा झपी दीदा
टुंडा वहैकी कुल्हाँण लुकी दीदा ...२
गररर्रर्र दारू दगडी लमडी दीदा
गदनीयुं पडै की मुंडा फूटी दीदा ..२
दँणमण दँणमण छुटीगै रै दीदा
पैल धारा की गै जब ऐ तंसु दीदा
घुटी दारू की घुटी दीदा ....२

बाटा बाजारों मा मारा रिंगा
दारू की थैली का बीज बोत्यां ...२
चाला नुना अब सब खती गयां
ब्यो बरती मा सब झांजी होंयाँ...२
दँणमण दँणमण छुटीगै रै दीदा
पैल धारा की गै जब ऐ तंसु दीदा
घुटी दारू की घुटी दीदा ....२

कंण होईं ये गढ़ा मा दारू दारू
दारू बीना सब वहैगे गैरु
बेटी ब्वारी की विपदा घेरुहो
आपरा लोगों की जमा मारू
दँणमण दँणमण छुटीगै रै दीदा
पैल धारा की गै जब ऐ तंसु दीदा
घुटी दारू की घुटी दीदा ....२

बल बरसा पैल मोरी सासू
अब पोडी ऐ अन्खोयाँ मा आंसूं
दँणमण दँणमण छुटीगै रै दीदा
पैल धारा की गै जब ऐ तंसु दीदा
घुटी दारू की घुटी दीदा ....२

बालकृष्ण डी ध्यानी
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पत्थर से जा उलझा

जिस दिन सर फूटा
तब जाकर पत्थर से पुछा
क्यों आ लगा इस सर पर
ना मीला तुझे कोई दूजा
पत्थर से जा उलझा........

पत्थर इतरा कर
थोड़ा सा सकुचकर अपना मुख खोला
ना बन इतना अब तू भोला
तू ने ही तो पत्थर को तोड़कर
अपना लिये गड्ढा खोदा
पत्थर से जा उलझा...........

टुकड़े होये पत्थरों ने ही
आज तुझे चारों ओर से घेरा
क्या होआ अब जब तुझे
मैंने जरा सा तुझको जा छेड़ा
रहता है तो बना मीनरों मे मेरा
पत्थर से जा उलझा..................

पत्थर ही पत्थर है
जीवन के इस पथ पर
मुश्कील मे है मानव तू
अपनी ही तू करनी पर
सोच जरा अपनी कथनी पर
पत्थर से जा उलझा..................

जिस दिन सर फूटा
तब जाकर पत्थर से पुछा
क्यों आ लगा इस सर पर
ना मीला तुझे कोई दूजा
पत्थर से जा उलझा........


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