Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448268 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आज कल कोई भी

आज कल कोई भी खड़ा हो जाता है
कमीज फाड़कर सीना तान देता है
देकर दो चार गाली खुद को ही वो खुद से
गुस्सा अपना वो इस तरह तज देता है
आज कल कोई भी

या फिर वो जो गुमसुम घोंट पी लेता है
चुपचाप एक कोने मे बैठा रहता है
खुद को ही खुद से वो कोसता रहता है
अपने ज्ञान चक्षु वो बंद कर लेता है
आज कल कोई भी

या तो वो पत्थर उठाकर अपना लक्ष भेदता है
या वो बुढा अन्न त्याग अनशन पर बैठता है
अहिंसा का वो पथ अब भी अकेला लड़ता है
हिंसा ओर असमर्थ का यंहा पल्ला झड़ता है
आज कल कोई भी

आज कल कोई भी खड़ा हो जाता है
कमीज फाड़कर सीना तान देता है
देकर दो चार गाली खुद को ही वो खुद से
गुस्सा अपना वो इस तरह तज देता है
आज कल कोई भी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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छिद्रों वाली

छिद्रों वाली जिंदगी
समेट कर सब वो ले गयी
खाली खाली ही रहा वो
देर सबेर उस टूटे घड़े की तरह
वो सुराकों वाला घडा .....................

सब बहता ही गया ऐसे की
रोके भी ना कुछ रोका यंह वो जो जा रहा है
पल छुटा यंह बना अब अछुता यंहा
छाता ना मिला कोई दूजा यंहा
वो छिद्रों वाला छाता .....................

चली जा रही हवा ना जाने कंहा
हाथ फैला रहा राहों मै अलीग्न का मै यंह
निकल गयी ना जाने कौन से छिद्र से वो कंहा
पडवा पडवा मै आयी वो इस दर पर अब यंह
वो छिद्रों वाली हवा.........................

मौसम भी आया यंह वो भी गया यंह से
बेकरार रहा मै इस तेरे जंहा मे
लौटा ना अब तू जब तू गया यंहा से
जीवन का वो कोना खोया कंह पे
वो छिद्रों वाला जिंदगी .....................

छिद्रों वाली जिंदगी
समेट कर सब वो ले गयी
खाली खाली ही रहा वो
देर सबेर उस टूटे घड़े की तरह
वो सुराकों वाला घडा .....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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पछाणा आली

अब मील पछाणा आली
नये पुराणु को ऐ खेल चा
बस छुटगै बल छुटगै भुल्हा ध्यानी
नयु जमाणु को रेल चा ............

यकुली यकुली
थ्कुली बाजण
यकुली यकुली
ब्योहा रचाँण
देख कंण सीखा सैर चा
ऐ नयु जमाणु को रेल चा ..............

मीलणी बताण
सब मा छुपाण
बात जो बाणीचा
गढ़ होग्या गैरचा
ऐ नयु जमाणु को रेल चा..............

अब मील पछाणा आली
नये पुराणु को ऐ खेल चा
बस छुटगै बल छुटगै भुल्हा ध्यानी
नयु जमाणु को रेल चा ............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देख यंहा से .....

देख यंहा से तेरा घर दिखता
दूर गाँव में वो देख बसता है
पहाड़ों में बसा तेरा वो दर्पण
टूटा टूटा सा अब क्यों लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव में वो देख बसता है ....................

शहरों में अब बसा लगता है
बंद गलियों में टंगा लगता है
गले में रस्से सा गुंठा लगता है
अपने आप से खिंजा लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................

आता होगा तेरे पास वो चुपके से
हौले से कभी कभी वो भटके से
आँखों से तेरे नीर बह जाते होंगे
वो भी देख तुझ को बुलाते होंगे
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव में वो देख बसता है ....................

गमसुम सा बैठा लगता है अब
अपनों से तो जुदा सा लगता है
बड़े पेड से इस तरह छुटा तो
पत्तों के संग अब उड़ा लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव में वो देख बसता है ....................

खुश है तो इस खुशी के लिये
पर दुखी सा मन तेरा क्यों लगता है
अकेला जब तो रहता है किसी से
क्या तेरा घर तुझे अब भी दिखता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव में वो देख बसता है ....................

देख यंहा से तेरा घर दिखता
दूर गाँव में वो देख बसता है
पहाड़ों में बसा तेरा वो दर्पण
टूटा टूटा सा अब क्यों लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव में वो देख बसता है ....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कंहा ऐसा होता

देखा कंहा ऐसा होता
सुख से कोइ कंहा रोता है
दुःख हो दिल में तो
वो कैसे यंहा हंसता है
देखा कंहा ऐसा होता ...................

सीने मे जलन या पहाड़ जलता है
पहड़ों बस यंहा दर्द बहता है
रुक रुक कर पीछे मोड़ता है
बीता पल उस पर घूरता है
देखा कंहा ऐसा होता ...................

अकेला ही वो देख चलता रहा
बुढी आँखों से बस वो तकता रहा
वीरना पड़ा गुलशन सा रोता रहा
सब कुछ खोया सा उसको लगता रहा
देखा कंहा ऐसा होता ...................

बैठी थी स्वप्न संजाया नैनों में
सजना तेरी ही आस लगाये गहनों में
टूट टूटकर चूर होयी इस तरंह वो
अब आवाज भी नहीं आती रोने की
देखा कंहा ऐसा होता ...................

बच्चों की किलकारी गूंजती है
बाबा की बस गूंज यंहा पर गूंजती है
तरसती रहती वो छुटी सी ऊँगली
बस उस हथेली को ढुंडती है
देखा कंहा ऐसा होता ...................

देखा कंहा ऐसा होता
सुख से कोइ कंहा रोता है
दुःख हो दिल में तो
वो कैसे यंहा हंसता है
देखा कंहा ऐसा होता ...................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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आँखों ने चित्र

उभर उभर कर आँखों ने चित्र उसका बनया
उभर उभर कर मन मे ख़याल उसका ही आया
अंधेरों में बातें की मैंने उससे उजालों मैने उसको खोया पाया

रात मै पलंग पर लेटे लेटे एक टक,पखों के घुमाओ मे घिरा उसको पाया
उन रेखोंओं मे फंसा मै इस तरह नींद चैन बस अब यंहा खोया पाया
करवटों की कहनी बनी अब भूली होयी दास्ताँ मेरी

अकेली वो अकेला मै बीच दरस ओर दर्पण तडप ओर तडपन
अश्रु धारा तेरे नाम पर अर्पण यादों का ऐ चमन बस तेरे बिन
चलते रहे उन राहों को जिनका ना कोई मंजील

धूआँ उड़ा कुछ इस तरंह जीवन का चक्रहवीयु में मै जा फंसा
कोशीश की थी उसको मैंने तोड़ने का बस दिल वंहा पर छुटा
झूठा झूठ कह रहें है सभी मुझे वक्त ने ना दिया मुझको मौका

उभर उभर कर आँखों ने चित्र उसका बनया
उभर उभर कर मन मे ख़याल उसका ही आया
अंधेरों में बातें की मैंने उससे उजालों मैने उसको खोया पाया

बालकृष्ण डी ध्यानी
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टू मच  डैम
 
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी
 बिजली गढ़ की ...२ अब ईण क नेतओं
 देखा कंण  ईणुन अब चुर्याली जी 
 गुनाहगार बाणाया लोक परलोक
 देब्तों की दिशा ध्याणी उज्याड़ली जी 
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी .............
 
 माँ धारी देवी को जगृत स्थान भेली हे देवी
 अब ई धरा मा डैम नामा ण डोल्याली जी
 आस्था की भेंट नारलु डैम बाण फुर्याली जी
 देव भूमी मा अब देबता रूठयाँ रूठयाँ 
 ठेकादारूं की कण मौज माजा कैर्यली जी
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी .............
 
 अपरा जन मनस अपरा अपरा मा ल्ग्याँ
 देब्ताओं का थान मान दान सब लुटी ग्याँ
 रेलगाड़ी माँगा हमुल माल गाडी भेज्यली जी
 देहरदूण थै इण लोगों कूड़ाघर बाणयाली जी
 गैर गैर होग्या गैर अब ना ची यख कोई सैर   
 दाणा भीतर रैग्या बस स्याणा भैर भैर
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी .............
 
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी
 बिजली गढ़ की ...२ अब ईण क नेतओं
 देखा कंण  ईणुन अब चुर्याली जी 
 गुनाहगार बाणाया लोक परलोक
 देब्तों की दिशा ध्याणी उज्याड़ली जी 
 डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी
 टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी .............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' and 47 others. Photo: टू मच  डैम डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी बिजली गढ़ की ...२ अब ईण क नेतओं देखा कंण  ईणुन अब चुर्याली जी गुनाहगार बाणाया लोक परलोक देब्तों की दिशा ध्याणी उज्याड़ली जी डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी ............. माँ धारी देवी को जगृत स्थान भेली हे देवी अब ई धरा मा डैम नामा ण डोल्याली जी आस्था की भेंट नारलु डैम बाण फुर्याली जी देव भूमी मा अब देबता रूठयाँ रूठयाँ ठेकादारूं की कण मौज माजा कैर्यली जी डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी ............. अपरा जन मनस अपरा अपरा मा ल्ग्याँ देब्ताओं का थान मान दान सब लुटी ग्याँ रेलगाड़ी माँगा हमुल माल गाडी भेज्यली जी देहरदूण थै इण लोगों कूड़ाघर बाणयाली जी गैर गैर होग्या गैर अब ना ची यख कोई सैर दाणा भीतर रैग्या बस स्याणा भैर भैर डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी ............. डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी बिजली गढ़ की ...२ अब ईण क नेतओं देखा कंण  ईणुन अब चुर्याली जी गुनाहगार बाणाया लोक परलोक देब्तों की दिशा ध्याणी उज्याड़ली जी डैम डैम बाणकी टू मच  डैम कैराली जी टैम नीच यूँ की पास टैम पास कैराली जी ............. बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथ मेरा ब्लोग्स http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत height=4032Like ·  · Share

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गुलशन

एक मै एक उसका साथ
चलीं जा रही है दूर वो क़दमों की आहट
बस मै ही चला साथ साथ उसके
कर के दिल के गुलशन को यूँ बरर्बाद

खिला था गुल कभी इस गुलशन बाग़
रह गयी बस अब उसकी काँटों की ही याद
पतझड़ वो मातम की झड़ी बरसात
रह रहकर अब भी आती है उसकी याद

गुलशन उसका खिलता मुस्कुराता रहे
खूने खंजर इस दिल को बस चुभता रहे
खराश ना आये उसे कभी मन तन पर
दिल मेर जख्मी हो बार बार गाता रहे

गर छुड दूँ इस तरंह से अकेला ऐ गुलशन
फिर कैसे खिलेगा यंहा प्रेम गुल ऐ चमन
कोई तो मसलेगा मुझे बार बार यंहा ऐसे
एक तो होगा जो मस्तिष्क मुझे सजायेगा

एक मै एक उसका साथ
चलीं जा रही है दूर वो क़दमों की आहट
बस मै ही चला साथ साथ उसके
कर के दिल के गुलशन को यूँ बरर्बाद

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हाथ बडवा दीदा
 
 हाथ बडवा दीदा
 जरा पुण्य त कमवा दीदा
 एक बेटी झुजणी च
 जींदगी दगड लड़णी च   
 बेटी म्यार गढ़ देशा की .............
 
 लोकगायक हीरासिंह राणा
 दीदी की सुपुत्री इरविन हास्पिटल
 छह दिन आईसीयू मा भर्तीच
 टक्का का अभावाच  दीदा
 जींदगी दगड लड़णी च   
 बेटी म्यार गढ़ देशा की ..................
 
 बूंद बूंद से सागर बणलू   
 मददको जब हाथ मीलालू
 फोन त उठावा म्यार भोल्हों
 ०७५०३९४२७८९ अंकत रिंगावा
 जींदगी दगड लड़णी च   
 बेटी म्यार गढ़ देशा की ..................
 
 जुगराज रयां म्यार गढ़देशा
 उंचा रहा सदनी मेरा देब्तों को थाना
 आप्डों को भी आशीष मीलालू
 दीदी तेरी बेटी ठीख होकी घार आली
 बेटी म्यार गढ़ देशा की ..................
 
 हाथ बडवा दीदा
 जरा पुण्य त कमवा दीदा
 एक बेटी झुजणी च
 जींदगी दगड लड़णी च   
 बेटी म्यार गढ़ देशा की .............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ

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वो सपना टूट गया
 
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया
 चाँद को तोड़ा कुछ ऐसे , वो बादलों से घिर गया 
 पवन का झोंका था वो , मुझको वंहा वो ले गया
 खिड़की बजी रात मे कुछ इस तरह , वो सपना टूट गया
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया ..................
 
 दर्द तो होआ टूटने का कुछ इस तरह टूटा
 उदासी,रुक्सत का गमगीन सा वो नग्मा गुंजा
 जुबाँ पर ला उसे गाना चाहा जब चुपके से मैने
 सितार ओर तबला वो मुझ से रूठ गया , वो सपना टूट गया
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया ..................
 
 रूठे होये उस दिल को जब मै मनाने गया
 अकेली थी वो मै चुपके उसके सिरहने तक गया
 अश्क बहाये मैने उसे इस सीने से भी लगया   
 नींद उसकी टूटी ऐसी, ऐ दिल हाथों से छुटा गया ,  वो सपना टूट गया 
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया ..................
 
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया
 चाँद को तोड़ा कुछ ऐसे , वो बादलों से घिर गया 
 पवन का झोंका था वो , मुझको वंहा वो ले गया
 खिड़की बजी रात मे कुछ इस तरह , वो सपना टूट गया
 सब लिख रहे थे , मैने भी लिख दिया ..................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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