मै भी एक पागल हूँ
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ
हँसते सब मुझ पे , मै भी खुद पे हंसता हूँ
देख मुझको वो अपने को ही देखते हैं
सुख दुःख क्या है अपने आप से कहते हैं
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ .................
किसी को नशा इश्क का किसी को दौलत का
ना मीला मुझको खुदा,क्यों बना मै सबसे जुदा
पहचान मेरी मुझसे ही गुम है कैसा ऐ सितम
सितमगर राहों के रही हम में ही है कुछ कम है
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ .................
लहराता ही फिरों बलखाता ही फिरों निकलों
निकलों जंहा से मै बस अब इतराता ही फिरों
देखा मेरा दम ख़म ना निकले तुम्हरा भी दम
ना कर गम ना आसूं गिरा पागल कहके तू भी बोला
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ .................
अंदर झांक अपने तू भी तो अधूरा है
कीस बात का है घमंड तू तो बस भैजे से ही पूरा है
अलग थलग ही सही मै ना कोई मुझसा दूजा है
आंखें छलकती है मेरी दिल बस अपने पर हंसता है
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ .................
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ
हँसते सब मुझ पे , मै भी खुद पे हंसता हूँ
देख मुझको वो अपने को ही देखते हैं
सुख दुःख क्या है अपने आप से कहते हैं
पागलों की नगरी में मै भी एक पागल हूँ .................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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