
देव भूमि बद्री-केदार नाथFriday
हिमाला हिला ...?
पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
अब अपना मुख खोल रहा है
विनाश लीला की क्या थी पीड़ा
क्यों बही थी इस बहावा संग माँ गंगा
कहते हैं सब की बादल फटा था
क्या पापों का वंहा घड़ा भरा था
कटवा कटी बहावा मे बही वो धरा
जिस पर पांडवों ने कभी पग था धरा
तहस नहस का तांडव शिवधरा पर
गंगा बही दिल के क्यों कटवा पर
आँखों से निकली दिल को रुला रुलाकर
देवभूमी खोयी अपनों को तिलांजली तज कर
एक इशार है उस पथ के वो पथीक
जो उजाड़ा होआ और भटका होआ है आज सात्विक
बस करो छेडना इस प्रकृती से आदम
श्रण में ही निकलेगा अब तेरा दम
पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
अब अपना मुख खोल रहा है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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