Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448341 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भारत गुमराह

रुखी सुखी खाते हैं
कभी भूखे रह जाते है
पानी पीकर जीते
कभी प्यासे सो जाते हैं

हरबार १५ अगस्त को
हम भी तिरंगा लहलहते हैं
माँ का गुणगान गाते हैं
दर्द अपना भूल जाते हैं

आजादी की 66वीं वर्ष गांठ
हमारे घर नहीं अनाज
बलिदानों,बलिदानी पर
हमारा भी सीना तानता आज

भ्रष्ट तन्त्र भ्रष्ट राज
गुलाम तो भारत है आज
कंहा से लाओं मै वो खून
गांधी भगत क्रांती आज

जैसा भी है देना होगा साथ
बरबाद जवानी हो रही आज
कूड़े में शराब में आवारगी के साथ
मेरा भारत गुमराह आज

रुखी सुखी खाते हैं
कभी भूखे रह जाते है
पानी पीकर जीते
कभी प्यासे सो जाते हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
August 8
हाँसणु खिद खिद खिदणु जीवन च

एक बार नुना ने बाबा जी थे पूछी बाबा जी अक बात बतवा बाबा जी बोल बेटा राम

नुना : बाबा जी अपरा सब टक्का कागद का रुप्युँ मा गांधीजी सदा हंसदा रैंदी रूणा की तस्वीर किले नी
बाबा जी : धत तेरी की इत्गा भी नी जणदूँ तू कै कामा की तेर पढाई सुणा गांधीजी अगर रुला कागदा टक्का भिजला की ना समज ग्याई हो हो हो ..............

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
 
शुभ प्रभात उताराखंड !!

सुबहा का पिटारा ले
आज फिर आया सूरज साथ
उठ गये हो तो प्रणाम ध्यानी की
सोये हो तो अब ओर कर लो आराम
जागे जल्दी जो प्रभु पाया जल्दी
सोया रहा वो सपनों मे खोया रहा ...............

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मन प्रीत तन प्रीत
 
 प्रीत बड़ी बाँवरी
 प्रात साँझ साँवरी
 राधा मीराँ सुख पीड़ा
 दुःख काटे ना कटे गीता
 प्रीत बड़ी बाँवरी ................
 
 अनुभव आलोकित
 अवतरीत भू लोक गोलीत
 प्रेम रस से पूर्ण उत्पेरीत 
 भरपूर वियोग विछेदीत
 प्रात साँझ साँवरी.................
 
 संचय रूप समर्पित
 त्याग रूप मूरत मुरीत
 मूर्ती वीणा संग वादीत
 विष मन तन छालित
 राधा मीराँ सुख पीड़ा ...............
 
 आवेग से विमोडीत
 तन निर्मल कल कल कल्वीत
 अवलोकीत पेड़ पुष्प गुछीत
 समधुर सुंदर रास पेरीत 
 दुःख काटे ना कटे गीता...............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथFriday
हिमाला हिला ...?
 
 पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
 अब अपना मुख खोल रहा है
 
 विनाश लीला की क्या थी पीड़ा
 क्यों बही थी इस बहावा संग माँ गंगा
 
 कहते हैं सब की बादल फटा था
 क्या पापों का वंहा घड़ा भरा था
 
 कटवा कटी बहावा मे बही वो धरा
 जिस पर पांडवों ने कभी पग था धरा
 
 तहस नहस का तांडव शिवधरा पर
 गंगा बही दिल के क्यों कटवा पर
 
 आँखों से निकली दिल को रुला रुलाकर
 देवभूमी खोयी अपनों को तिलांजली तज कर
 
 एक इशार है उस पथ के वो पथीक
 जो उजाड़ा होआ और भटका होआ है आज सात्विक 
 
 बस करो छेडना इस प्रकृती से आदम
 श्रण में ही निकलेगा अब तेरा दम   
 
 पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
 अब अपना मुख खोल रहा है
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Friday

हिमाला हिला ...?

पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
अब अपना मुख खोल रहा है

विनाश लीला की क्या थी पीड़ा
क्यों बही थी इस बहावा संग माँ गंगा

कहते हैं सब की बादल फटा था
क्या पापों का वंहा घड़ा भरा था

कटवा कटी बहावा मे बही वो धरा
जिस पर पांडवों ने कभी पग था धरा

तहस नहस का तांडव शिवधरा पर
गंगा बही दिल के क्यों कटवा पर

आँखों से निकली दिल को रुला रुलाकर
देवभूमी खोयी अपनों को तिलांजली तज कर

एक इशार है उस पथ के वो पथीक
जो उजाड़ा होआ और भटका होआ है आज सात्विक

बस करो छेडना इस प्रकृती से आदम
श्रण में ही निकलेगा अब तेरा दम

पहाड़ों का दर्द बोल रहा है
अब अपना मुख खोल रहा है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथFriday
छुछी
 
 छुछी छोडी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 अब कब आण परती वहालो 
 गढ़ देश मेरु 
 छुछी छोडी की जाणू   
 गढ़ देश मेरु ...२
 
 पीड़ा लेकी पीड़ा छुडीकी जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 खुद देकी खुद लेकी जाणू 
 गढ़ देश मेरु
 छुछी छोडी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 
 बुरांस फुल्ल्यार लेकी,बुरांस मोल्ल्यार लेकी जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 उकाला बाटा जाणू,उन्दारू बाटू जाणू 
 गढ़ देश मेरु
 छुछी छोडी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 
 
 हिमाला धैये लगाणु मीथे बुलाणु 
 गढ़ देश मेरु ...२
 मी सुणी की अनसुणी किले करी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु
 छुछी छोडी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 
 खैरी का दीण खैरी का राता 
 गढ़ देश मेरु ...२
 छुछी छे तेरु साथ,मी यकुली आज 
 गढ़ देश मेरु
 छुछी छोडी की जाणू 
 गढ़ देश मेरु ...२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ किर्मुला सी राँगा
 
 मेरु गढ़देश बरखा बारा मैना को
 खैरी विपदा की सरी बारा मैना को
 
 बरखा झरली जीकोडी तरसली 
 रूणी वहाली डंडी कंणडी मेरी वा 
 छोडीकी आंयुं सरला प्यारी को 
 मनख्यूं न्यार बहाणी वहाली वा
 
 मेरु गढ़देश बरखा बारा मैना को
 खैरी विपदा की सरी बारा मैना को
 
 रीटा रीटा कूड़ा रीटा डारा को
 भैर बैठ्युं कुकरा बिरला सारा को
 कु दोउडी आणु आल छाला पल छाला को
 निर्दैयी बरसणी तकखा टुक डाला को   
 
 मेरु गढ़देश बरखा बारा मैना को
 खैरी विपदा की सरी बारा मैना को
 
 पलायाण बरखा रुकणी णी थमणी 
 मेरु खंडा को हे विधात उत्तराखंड को
 बोग्याकी लैगयाई माया ऐ खंडा को
 लालच का किर्मुला सी राँगा लगीच देखा
 
 मेरु गढ़देश बरखा बारा मैना को
 खैरी विपदा की सरी बारा मैना को
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with Vipin Panwar and 48 others.

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ सवेरे की शुरवात ......
 
 देख साँस अटकी
 घोटालों में आत्म भटकी
 यू पी ऐ सरकार सट्की है
 कोल,पॉवर उड़न यात्र लेकर
 थल जल नभ पर लटकी है
 सरकार मेरी घोटालों की 
 देख साँस अटकी......

 

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