Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448341 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हर पथ

हर पथ अंधकार छाया सा है
रवि आज सोया सा है
प्रकाश की किरणों लेकर
कवी राज आज खोया सा है

हर पथ छाया सा है
झूठा सा दिल तेरा सा है
फरेब पथ घेरा सा है
असत्य उदय सवेरा सा है

हर पथ गिरा गिरा है
लहू बईमानी का जो बहा सा है
जो बोया वो फल वो तेरा है
गुन्हा की गलियों का डेरा है

हर पथ छुपा सा है
भ्रष्ट धन ताला पड़ा सा है
लालच मन फंसा सा है
लोकपाल जन फिर टाला सा है

हर पथ विडबना सा है
शीश तेरा फिर भी तना सा है
अपनी कथनी करनी फंसा सा है
मानवा दो चेहरों मे फंसा सा है

हर पथ माया का फंदा सा है
उस पर हर कोई यंहा झुला झुला सा है
भुला भुला वो बस कर्म पथ भुला सा है
देश भक्ती का मुखोटा ओड़ा सा है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
August 8
हाँसणु खिद खिद खिदणु जीवन च

एक बार नुना ने बाबा जी थे पूछी बाबा जी अक बात बतवा बाबा जी बोल बेटा राम

नुना : बाबा जी अपरा सब टक्का कागद का रुप्युँ मा गांधीजी सदा हंसदा रैंदी रूणा की तस्वीर किले नी
बाबा जी : धत तेरी की इत्गा भी नी जणदूँ तू कै कामा की तेर पढाई सुणा गांधीजी अगर रुला कागदा टक्का भिजला की ना समज ग्याई हो हो हो ..............

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
August 7
सचेत कर रही है धरती

बहुँत होआ अब संभल जा
देखले ऐ विनाश लीला
देवी आपदा प्राकृतिक आपदा
सुख के लिये तुने ही तो बुना

जंगल कटे खेती के लिये
खेती बंजा होयी प्रगती के लिये
बंधा बांधे बिजली के लिये
नदी दूषित होई मल के लिये

जंगल रिक्त खेती बांज
नदी लुप्त गँवा होआ वीरान
पेट्रोल ऑयल रेत व्यापार
खनन धरती किया कंगाल

ऐ तो सब तेरा ही काम
ऊँचे ऊँचे ईमारत अब तेरा स्थान
हो जायेगा मकबरा वो तेरा धाम
सचेत कर रही है अब भी धरती

बहुँत होआ अब संभल जा
देखले ऐ विनाश लीला
देवी आपदा प्राकृतिक आपदा
सुख के लिये तुने ही तो बुना

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षी

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
पथ प्रकाशक दीदी मेरी

दीदी मेरी यूँ ही चलती जा
निर्धन का हाथ पकड़
मंजील की आस देती जा
पथ उनका प्रकाशीत करती जा

गुण तेर गाओं
हर पल में इस तरहं ही
पुष्प सुमन संग
दीदी मेरे खिलती जा
पथ उनका प्रकाशीत करती जा

समाज गौरव सम्मान
से सम्मानित मेरी दीदी
तू देशकन्या उत्तराखंड की
उत्तराखंड की सादगी बेखेरती जा
पथ उनका प्रकाशीत करती जा

दो आंखें तेरी मेरी दीदी
हज़ार हो जायेंगी देखना एक दिन
हर आँखों में तू छायेगी
उनकी हंसी तू ही नजर आयेगी
पथ उनका प्रकाशीत करती जा

दीदी मेरी यूँ ही चलती जा
निर्धन का हाथ पकड़
मंजील की आस देती जा
पथ उनका प्रकाशीत करती जा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ पथ प्रकाशक दीदी मेरी
 
 दीदी मेरी यूँ ही चलती जा
 निर्धन का हाथ पकड़
 मंजील की आस देती जा
 पथ उनका प्रकाशीत  करती जा
 
 गुण तेर गाओं
 हर पल में इस तरहं ही
 पुष्प सुमन संग
 दीदी मेरे खिलती जा
 पथ उनका प्रकाशीत  करती जा
 
 समाज गौरव सम्मान
 से  सम्मानित मेरी दीदी 
 तू देशकन्या उत्तराखंड की
 उत्तराखंड की सादगी बेखेरती जा
 पथ उनका प्रकाशीत  करती जा
 
 दो आंखें तेरी मेरी दीदी
 हज़ार हो जायेंगी देखना एक दिन
 हर आँखों में तू छायेगी
 उनकी हंसी तू ही नजर आयेगी
 पथ उनका प्रकाशीत  करती जा
 
 दीदी मेरी यूँ ही चलती जा
 निर्धन का हाथ पकड़
 मंजील की आस देती जा
 पथ उनका प्रकाशीत  करती जा
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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संसद बना अखाडा
 
 देख संसद अखाडा
 एक ओर हाथ है
 दूजी ओर कमल
 दूर खड़ा वंहा देश है ..........
 
 घपलों का राजा
 २ जी का सारा खेल है
 चिदम्बरम कलमाडी
 ओलंपिक का मेल है
 दूर खड़ा वंहा देश है ...........
 
 कोयले में मैल है 
 वो तो बड़े रंग रेज हैं
 साफ सुथरी छवी
 काठ पुतली सेल है
 दूर खड़ा वंहा देश है ...........
 
 अंहिंसा की आहा दबी
 सेनापति भी चुप है 
 वो तो बड़े ही भ्रष्ट हैं
 अनशन बैठे जो अब है
 दूर खड़ा वंहा देश है ...........
 
 दब रहे दबा रहे
 आपनो को ही नचा रहे हैं
 जनता चुप मौन खडी
 मंहगाई कमर तोड़ा खड़ी
 दूर खड़ा वंहा देश है ...........
 
 देख संसद अखाडा
 एक ओर हाथ है
 दूजी ओर कमल
 दूर खड़ा वंहा देश है ..........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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गढ़ यकुली आज

गढ़ यकुली आज
यकुली यख मन पराणा
दोई आंखी कैथै जवागाल
ख्व्जयांदी क्या बचान्दी
गढ़ यकुली आज .............

बैठी वहली बैठी कैकी सारा
आला आला कबीत स्वामी घरा
व्हाला दोई आंखी तब चारा
आंखी भातेक बहाली तबभी गंगा धारा
गढ़ यकुली आज .............

आसा की देखा लागी रंगा
बुरंसा प्युंली घुघूती हिलांस
सब दगडी दगडी दुरा आजा
दो आंसूं जीकोड़ी को पासा
गढ़ यकुली आज .............

छुटी छुटी सी टूटी लागी
ड्यूटी हमरा दगडी रूठी लागी
बोल्दा रैंदा लुणा का रेघा
कूड़ा का कुल्हाण रै गैल्या
गढ़ यकुली आज .............

गढ़ यकुली आज
यकुली यख मन पराणा
दोई आंखी कैथै जवागाल
ख्व्जयांदी क्या बचान्दी
गढ़ यकुली आज .............

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याद ऐगै जी .....

गुअलाँण लागी छा
मी आगुलयाण लाग्युंचा
आंख्युं का अंशुं बरखाण लगी
कब आला जी मेरा, मेरे जी
सरू गढ़वाल बुगाणा लगी जी ....२
मन की गुअलाँण लागी छा ......

परबत बरखा आयी
भग्या हमरा बोगी लेग्याई
कद्ग दिण बीती यख
हाल अब बी यख बेहांल
अब बी बरखा को रूद्र अव्तार
बरकारर जी मेरा .मेरा जी
सरू गढ़वाल बुगाणा लगी जी ....२
मन की गुअलाँण लागी छा ......

डरी डरी जाँणूद सरग गडगाड़णद
चाल चमकी जीकोडी झुरीजाँद
मनखी का बादल झट फाट जांद
उमली उमाल दँणमँण बोगी जांद
ब्याली की छुंयी जी मेरा , मेरा जी
सरू गढ़वाल बुगाणा लगी जी ....२
मन की गुअलाँण लागी छा ......

गुअलाँण लागी छा
मी आगुलयाण लाग्युंचा
आंख्युं का अंशुं बरखाण लगी
कब आला जी मेरा, मेरे जी
सरू गढ़वाल बुगाणा लगी जी ....२
मन की गुअलाँण लागी छा ......

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उठा जाग

उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है
उजाड़ पड़ी राहों को
फूलों से हमे सजाना
उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है ..........

नित निंतरीत कल कल
बहवा की साथ बह जाना
राहों में आये अवरोधों
हटा कर को लक्ष्य पाना है
उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है ..........

फिर अहिंसा की मशाल
हाथों पे ले अपनों से लड़कर
भारत को आजाद बनाना
गरीबों किसानो हक देना
उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है ..........

ना सोया रहा इस तरह
ना खोया रहा आपने लिये
जाग अपने देश के लिये
उस क्रांती के सपने के लिये
उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है ..........

उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है
उजाड़ पड़ी राहों को
फूलों से हमे सजाना
उठो देश के लाल
धरती को स्वर्ग बनना है ..........

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हर शख्स

यंहा हर शख्स
हर पल उदास सा लगा
अपने अक्क्ष के
संग जुदा सा लगा

भीड़ से लड़ता रहा
अकेलापंन खलता रहा
रोजना ऐ चलता रहा
पल पल रोग बढ़ता रहा
अपने अक्क्ष के
संग जुदा सा लगा ................

गुमसुम रहने लगा
कहता वो कुछ आपने से
अब वो चुप रहने लगा
साथ अपना छुटने लगा
अपने अक्क्ष के
संग जुदा सा लगा ................

विलीन सा हो रहा
शून्या से शून्या खो रहा
एक विचारा था वो अब तक
जमीन संग वो लुप्त हो रहा
अपने अक्क्ष के
संग जुदा सा लगा ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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