Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448612 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Sunday
आम था मै

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

गरीबी रेखा से उठकर
अमीरी की रेखा से दबकर
महंगाई से मै लड़ता ही रहा
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

कल के फ़िक्र मे आज को भूल चुका
जिंदगी दब दबकर मै जी चुका
कल क्या हुआ आज भूल चुका
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

दाल छोड़ा कभी रोटी छोडी
गैस चुल्हा ने कभी दिया धोखा
सैर सपाटे से मैने मुंह मोड़ा
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

टैक्स ने मार कभी लोंन ने मार
कभी सब्जी के बड़ते दाम ने मार
धक्का खाकर ही ऐ जीवन गुजार
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Sunday
आम था मै

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

गरीबी रेखा से उठकर
अमीरी की रेखा से दबकर
महंगाई से मै लड़ता ही रहा
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

कल के फ़िक्र मे आज को भूल चुका
जिंदगी दब दबकर मै जी चुका
कल क्या हुआ आज भूल चुका
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

दाल छोड़ा कभी रोटी छोडी
गैस चुल्हा ने कभी दिया धोखा
सैर सपाटे से मैने मुंह मोड़ा
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

टैक्स ने मार कभी लोंन ने मार
कभी सब्जी के बड़ते दाम ने मार
धक्का खाकर ही ऐ जीवन गुजार
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Saturday
गढ़ बदलणु

गढ़वाल मेरु बदलाण लग्युं
आपरा पराया थै बिसरण लग्युं
भाग भागै की ब्योह कंण छ आज कल
नुणा नुणी सीखैसैर कंण छ आज कल ..२

कैल पढ़ाई कैल.... सीखाई..२
प्रेम की भाषा कैल बिंगाई
दोई नैना... चार कंण छ आज कल
भाग भागै की ब्योह कंण छ आज कल
नुणा नुणी सीखैसैर कंण छ आज कल ..२

गढ़ देश मेरु बदलण लग्युं ..२
प्रेम की बरखा मा बरसण लग्युं
सरूआम प्रेमी बाजार घूमण छ आज कल
भाग भागै की ब्योह कंण छ आज कल
नुणा नुणी सीखैसैर कंण छ आज कल ..२

लोक लाज त्यागी क्ख्क जाणा छ आज कल
रिती रिवाज बड़ों को मान होली जलणा छ आज कल
सैती पाली की बोई बाबा थै किले भुल जाण छ आज कल
भाग भागै की ब्योह कंण छ आज कल
नुणा नुणी सीखैसैर कंण छ आज कल ..२

गढ़वाल मेरु बदलाण लग्युं
आपरा पराया थै बिसरण लग्युं
भाग भागै की ब्योह कंण छ आज कल
नुणा नुणी सीखैसैर कंण छ आज कल ..२

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
 
केले दूर कै

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

ककडी लागुला औ
ककडी का लागुला ..२
लगी छंन ककडी हे हे हे हे ..२
हारी मिरच लूण .....सिलोटा
चोर चोरेकी हे हे हे हे
चोर चोरेकी खाण वहाला
मेर वख दगडया ...२

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

डालीयुं का झम्पा औ
डालीयुं का झम्पा ...२
कंन वहाली मौज वख हे हे हे हे ..२
यकुली यकुली मी यख खुदेरा
गोउड़ ब्ल्द्दों का चराणु हे हे हे हे ..२
रुलों को जींदगाणी
तू किले मै रूशी ..२

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

दिन सुधी ग्याई यख
तेरु याद ही आई यख
तू जी मेरु तू मेरु परणु
केले दूर कै तिल मीथै तैसे
क्या आणी वहली
मेरी याद क्या तीथै
बैठयूँ चों आस लगेकी
कब बोलालो तू मीथै

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
Saturday
फिर वंही

फिर ..फिर वंही
अपनी कही.....रुखा सुखा
तुम्हरी कही.... बस खार पानी
फिर ..फिर मै वंही

फिर ..फिर मै वंही
जैसे चढ़ा वैसे मै ढला
तुम चले...सब चलता गया
फिर ..फिर मै वंही

फिर ..फिर वंही
चुप चाप सा मै रहा यंहा
तुम अपनी कहते चले गये
फिर ..फिर वंही

फिर ..फिर मै वंही
अँधेरे में मै खो सा चला
उजाले में जाकर तुझे क्या मिला
फिर ..फिर वंही

फिर ..फिर मै वंही
तेरी मेरी दास्ताँ दो रहा
एक ही पथ दो गुमराह
फिर ..फिर वंही

फिर ..फिर वंही
अपनी कही.....रुखा सुखा
तुम्हरी कही.... बस खार पानी
फिर ..फिर मै वंही

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मै भी उस पथ पर
 
 कुछ अल्फाज पीछे छुटे पड़े थे किसी के 
 उनको मै सिमटने में लगा हूँ   
 अधूरी थी कुछ कविता गजल लेख
 उस पथ पर मै भी अब चलने लगा हूँ
 कुछ अल्फाज ........
 
 कुछ पडी थी कबाड़ी में
 कुछ घर की चार दिवारी में
 कुछ खाली पन्ना निहार रही थी
 कुछ कलम का मन टटोल रही थी
 कुछ कल्पना संग उड़ना चाह रही थी
 कुछ बंदिशों में बंधी पडी थी
 सब कुछ ना कुछ पूछ रही थी मुझसे
 अंदर ही अंदर कह रही थी मुझको
 कुछ अल्फाज ........
 
 कुछ आज कुछ इतिहास
 कुछ स्नेह कुछ विशवास
 कंही क्रान्ती की आग कंही भूख कंही प्यास
 महंगाई की मार गरीबी की हाहाकार
 चुप बैठे नेता और सरकार
 किसी को तू आगे आना होगा
 हे मेरी कलम बन जा तू तलवार
 अति है अंतर से हुंकार
 कुछ अल्फाज ........
 
 शांत मन समन्दर लहरा
 अंधकार मै ज्योती फैला
 सोये जन को तू अब जगा
 जीने की रहा पर ले जा
 उलझा मन तू अब सुलझा
 व्यर्थ ना ऐ जीवन गंवा
 उठा कलम और कर विचार
 एक नये विश्व की नीव रख
 मंजिल देख रही तेरी रहा
 कुछ अल्फाज ........
 
 कुछ अल्फाज पीछे छुटे पड़े थे किसी के 
 उनको मै सिमटने में लगा हूँ   
 अधूरी थी कुछ कविता गजल लेख
 उस पथ पर मै भी अब चलने लगा हूँ
 कुछ अल्फाज ........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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आम था मै

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

गरीबी रेखा से उठकर
अमीरी की रेखा से दबकर
महंगाई से मै लड़ता ही रहा
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

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जिंदगी दब दबकर मै जी चुका
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आम था इसलिये मै जलता ही रहा

दाल छोड़ा कभी रोटी छोडी
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आम था इसलिये मै जलता ही रहा

टैक्स ने मार कभी लोंन ने मार
कभी सब्जी के बड़ते दाम ने मार
धक्का खाकर ही ऐ जीवन गुजार
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

आम था इसलिये मै जलता ही रहा
कभी कोयले में कभी डीजल में ओर कभी पेट्रोल मे
बड़ते दाम की अग्नी लगती ही रही
आम था इसलिये मै जलता ही रहा

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Sunday
घूंट

घूंट पी मैंने अपने आप में
शराब मुझ पर भड़क गया
प्याला से नफरत की पहले
आखिर तक वो छलकता रहा

घूंट बढ़कर वो कौर गयी
अंदर से मुझे को निचोड़ गयी
ग्रास बना आहर सा उसका
बोतल सर पर तोड़ गयी

घूंट परिमाण दर्द हैरान
मसौदा मेरा अब तैयार था
ढांचा बिलकुल तैयार पड़ा था
शमशान दूर ही खड़ा था

घूंट ने ना दिया आराम
जुबान बोलती रही हराम
खेल घूंट का हुआ तमाम
इस शरीर को मेरा प्रणाम

घूंट पी मैंने अपने आप में
शराब मुझ पर भड़क गया
प्याला से नफरत की पहले
आखिर तक वो छलकता रहा

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Sunday
ऐगे हींवाला

ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा
मौल्यार छेगै त्यूं डालीयूँ मा
ठणडू जडू मी थै लागण लग्युं
बोई गढ़ देश मेरु गराठण लग्युं
ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा......

छेहण लगी कोयेड़ी वार पार
बरखा ण छोडी बस आंसूं की धार
यूँ आसूं थे तू जमैदे हे हिमाल
कदग विपदा झैलेलू मेरु गढ़वाला
ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा......

मेला लागला चरखी घुमला
रंगली पिंगली जेलेबी मा बोई
हम अपरा हरच्यूं थै ख्वाजाला
संण दिशा मा आंखी बस भिजाल
ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा......

छोडी दे विपदा छोडी दे ऐ खैरी
छोडी दे गढ़ देश की ऐ बाट तू
गढ़ खड़ो होणूचा छोड़ साथ तू
कैर ना पीछा अब स्वास लेन दे
ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा......

ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा
मौल्यार छेगै त्यूं डालीयूँ मा
ठणडू जडू मी थै लागण लग्युं
बोई गढ़ देश मेरु गराठण लग्युं
ऐगे हींवाला त्यूं डाणडी यूँ मा......

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
September 22
केले दूर कै

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

ककडी लागुला औ
ककडी का लागुला ..२
लगी छंन ककडी हे हे हे हे ..२
हारी मिरच लूण .....सिलोटा
चोर चोरेकी हे हे हे हे
चोर चोरेकी खाण वहाला
मेर वख दगडया ...२

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

डालीयुं का झम्पा औ
डालीयुं का झम्पा ...२
कंन वहाली मौज वख हे हे हे हे ..२
यकुली यकुली मी यख खुदेरा
गोउड़ ब्ल्द्दों का चराणु हे हे हे हे ..२
रुलों को जींदगाणी
तू किले मै रूशी ..२

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

दिन सुधी ग्याई यख
तेरु याद ही आई यख
तू जी मेरु तू मेरु परणु
केले दूर कै तिल मीथै तैसे
क्या आणी वहली
मेरी याद क्या तीथै
बैठयूँ चों आस लगेकी
कब बोलालो तू मीथै

ऐ मेरा गढ़ देशा
ऐ मेरु गढ़ देशा
किले बण ...२ म्यार बाण तू
अब परदेशा
किले बण म्यार बाण तू
अब परदेशा

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