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Garhwali Poems by Virendra Panwar Ji- वीरेन्द्र पंवार जी की लिखी कविताये

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Virendra Panwar:
हे निर्भगी,

  तु कन गीत छै मिसाणी,
 जौं गीतुंन  बिन्सिरी नि देखी,
 जौन  सियां गोरु तका अर्यां मोर नि उगर्याँ,
जौं   नि  सारि  उकाळयूँक  पाणी ,
पंदेर्यु  कि  बाच  बि  नि  बनानी  जू ,
दथ्युं  का  छुणका   बि  नि बिंगणि    जौं  ,
 प ळयेंरूं   तक  नि  पछ्याणी   ,
नि  बींगी  घसेन्यु  का  खुदेड़  गीत ,
बाजूबंद  कि  रस्याँ ,
नि  पछ्याणी थड्या  चौंफला   का  झुमैलो   ,
बार  त्यौवार   कौथिगु   का   मेला ,
जौन   नि  बरती  चर्कड़ी  कादैं ,
 हाथ - खुट्यू  कि  बारामासी  तिड्वाल
जौन नि  देखि  सर्गे  आसमा  तपत्यंदी  सांकि ,
दबद्यंदी  आंखी, नि  बींगी  गोरु  बछरू  कि  भोण ,
जौन   माँ - बैणयूँ की   पीड़ा  बी  नि  बींगी ,
खुद  म़ा  लगदी  बादुकी  पराज  नि  सुवांदी  जौं   ,
 तु धारू -धारू  गीत  गाणी  छै  ,
अर  ल्वे  का  आंसु  बोगाणी  ब्वे ,
ल़ाटा   ऐंची-ऐंच  बुखु सी  नि  उड़ ,धर्तिम  बी  हेर ,
वख  देख  हपार ,कों  चुलंख्युं म़ा  पोंचिगै  सूरज ,
छौंप  सकदी  त  छौंप   वैकि  निवती  तैं ,
 ठेट  समोदर  कि जळद्यूं   म़ा सेल़ेगे   जौन  ,
कर  सकदी  त  महसूस  कर  वीं  सेळी    तै ,
काचा  झ्याड़ों   म़ा  सुद्दी  न  कर  स्याणी ,
इन  हाल  म़ा  न  हो  एक  दिन ,तेरवी  छैल ,
पुछू  त्वे  सि - ल़ाटा    तु  कन  गीत  छें   मिसाणी . .


  वीरेन्द्र  पंवार

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

सौंण भादो

आन्दु होलू
हौयूक थै!
बारा मैना फा गण
तेरी आंख्युं  मा
मिन
सदानि
सौंण भादो ई देखि !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

आस

मन्ख्या हाल देखि
बार बार
निरस्ये जंद सरेल
लगदु की अब कुछ नि हवे सकदो यख
कुछ नि होंण येयर बी
बाजिंदा झणी किले
जुकडिया कै कोणा बटी
उठदी आसे लूँग
कि कखी ना कखी
कबि ण कबि कुछ ण कुछ
जरुर होलु

Bhishma Kukreti:
                        Double Entendre in Poems of Virendra Panwar
                                       
                                 Bhishm Kukreti
 

                   Double entendre or adianoeta is a spoken or written phrase which could be understood two ways. The first meaning of double entendre is simple and second meaning is often with ironic meaning.
  Using double meaning in poems is not exception to Garhwali but is also found in most of languages all over the world.
   Geoffrey Chaucer’s ‘The Canterbury Tales’, Sir Thomas More’s ‘Utopia’, Percy Shelly’s ‘Ozymandais’, Homer’s ‘Odyssey’, are classic examples where poets used many  double entendres.
 The following poem by Percy Shelly is fine example of double entendre:
My name is Ozymandais, king of kings
Look on my works ye Mighty and despair.
Percy has been successful to use word ‘despair’ for simple meaning and ironic meaning too.
    In his book Nineteenth century French Poetry, Christopher Prendergast (1990) details about double entendres used by famous French poet Laforgue.  The founder of ‘Dadaism’ Tristan Tzara also used double entendres in his work.
            In Copla a Spanish poetic form, there are verses with double entendre phrases. Andrew P. Debicki (Spanish Poetry of Twentieth century, 1995) informs the readers that the title of a poem ‘Meriendo algunas tardes (I snack some afternoon)’ is having double meaning. Cecile West Settle and Sylvia Shemo (Contemporary Spanish Poetry, 2005) provide examples of poetries of Rossetti for his using phrases in his (Spanish) poems. 
      A.T.Hatto (Essays on Medieval German and Other Poetry, 2011) provides examples of words  ‘’mein’ and ‘spiegel’ conveying double meaning in song of thirteenth century German folk poet Von Stamhein.
    Zong-qi Cai (How to Read Chinese Poetry, 2008) offers many examples of phrases of double meaning in Chinese poems. Providing an example of double meaning, Zong-qi Cai states that   Du fu’s exploitation of the double entendre of ‘ fenghuo’  is irrefutable.
   Yumiko Hulvey (Female Waka Poets: Love Poetry in the Kokinshu, 2006) provides a couple of examples where the Japanese women poets used phrases of double meaning in the poems as the word ‘aki’ meaning autumn, to tire or ‘to be satiated’.
    Usually, the poets use double meaning words for creating irony in modern Garhwali verses. Lalit Keshwan is very famous for his uses of double entendre in his satirical and humorous poems.   Virendra Panwar a prolific Garhwali poet has used double entendre in many poems as ‘Chunu’,’Katari-Katari’, ‘Jameen’, ‘Bas’, Gaula-Gaula’
चूनू

हमारा गौंकि
टुटण्या स्कूल पर
अच्काल
'चूनू' लगणु छ
अर्
सदानी कि तरौं
'चूनू'
परदानजि लगौणा छन्

In ‘chunu’ poem, the meaning of ‘Chunu’ is simply ‘lime’ and another meaning of ‘Chunu’ is to use corrupt method .to make loss


'जमीन'


वैन् बोली
भैजिन
देश मा
'जमीन' ल्हियालि
मेरा गिच्चा बटी छुट्ग्या
वून
अपणी ' जमीन' किलै छोडि

In the verse ‘Jameen’ the meaning of Jameen is a land, a home land or fundamentals of life
The poems are realistic and having a sharp satire on the culprits or on the people.
 These poems by Virendra Panwar are the best example of using double entendre or adianoeta for creating satirical or humorous poems.

copyright@ Bhishm Kukreti



   
 

Bhishma Kukreti:
          गढवाळीअ वरिष्ठ कवि अर समीक्षक वीरेंद्र पंवार औ  दगड भीष्म कुकरेतीअ  लिखाभेंट

भीषमौ   सवाल : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन  ?
 
पंवारो जबाब-- मिन पहाड़ी जीवन का दुःख सुख अर संघर्ष बहोत्त नजिक बट्टी माँ -बैन्यु
दगड़ा  देख्यां भोग्यंअ  छन्न,इल्लै जबरी बी मी कुछ लिख्दु जादातर  वू
 कविता का रूपमा भैर औंद

 सवाल: आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?सवाल : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन  ?

जबाब--असर गढ़वाली का तकरीब सब्बी वरिस्थ  कब्यु को च,पर मेरी कविता जादातर
 गढ़वाली  का  स्वनामधन्य कवि अबोध बंधु  बहुगुणा अर नरेन्द्रसिंग नेगी से
 प्रभावित छन ! कविता संवेदनो  से जुडी  चीज छ,शैत मीतै कविता भौत  पसंद
छन ! कविता का छेत्र मा औणो  एक कारण ई बी व्हे सक्दो !
सवाल : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखणो  टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?

जबाब--कवी जादा मोल नि, पर एकांतमा लिखनो ज्यू बिंडी करदो ,इल्लै एकांतमा जादा
लिखेंदु बी छ! पर लिखना वास्ता हमेसा एकांत चयेनु  हो ,इन् जरुरी नि !

सवाल: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
 

 जबाब--जादातर पेन से लिखदो ! कम्पुटर मा अब्बी ढब्ब नि आई १मि सुफेद कागज़मा हल बिंडी लिखदो!

सवाल: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवीज करदां ?

जबाब--कबी कबी कविता एक ही बारमा  पूरी व्हेजंद !पर  हर बार इन्नु नि होन्द!कत्गाई बेर ता भौत दें  देखण  पोडदू !

 

सवाल: आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?

जबाब--कविता ल्यखना वास्ता कवी खास प्रसिक्षण नि ले !बस मनमा भाव औंदन अर लिख देंदो !


 सवाल : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?


जबाब--लिखणअ  वास्ता  कुर्सी मेज की जादा जर्वत नि पड़दी ! पर हाँ एकुलांस
लिखणअ  वास्ता बहोत्त माफिक आन्द ! पर इन्नु बी नि च की हर बार लिखणअ
वास्ता एकुलांस ही खोजे जावु  ! क्वी बी रचना  कबि बी अर कखि बी उपज सकदी!

 सवाल: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?

जबाब--बिचार औंदा जांदा रान्दन !पर इन्नामा  भौत  मुस्किल होन्द ! कन्न क्या
 च  ? ! अब मोबाइल ऐगनी ,इल्लै कबी इन्नमा मोबाइल का मेसेजमा टाइप कर
देन्दु !


 सवाल: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?

जबाब-- इन्नी हालतमा स्वीली पीड़ा सी  बहोत्त बुरी  बीतदि ,पर करे क्या सकेंदो! बहोत्त बार वे अया  बिचार तै दुबारा याद कन्नै कोसिस करदो पर याद नि आई ता तबरी बी भौत इ  बुरी बीतदि !


सवाल: क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी  कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /


जबाब--प्रसिक्षण का बारमा सोची छैंच !एक बार सन २००५ मा इस्कूल स्तर पर  हमुन एक बाल
 कवि सम्मलेन शिक्षा विभाग का सहयोग से पौड़ीमा कर्वे छौ !मिन मैसुस करी
 नै पीडी तै कविता  अर खास कैकि गढ़वाली गढ़वाली कवितअ  अर गढ़वाली समाज
 का सांस्कृतिक सरोकार  का बारामा   जानकारी दिए जाणी जरुरी छ ! जबरी तक
अपणा संस्कारू का बारामा पता नि होलू , क्वी  बी सार्थक रचना लिखे नि
सकेन्दन ! लिखेली बी ता वो  साफ़ बनावटी सी लग्दन ! इल्लै नै छ्वाल तै
रचना का वास्ता मूल वातावरण का बारामा बताये जानू जरुरी छ ! वे तै अपणा
 लोक से जुड्नो जरुरी छ !

 सवाल: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च .

जबाब-- भौत असर छ !असलमा जबरी तक हम लिखवार भैरै कविता अर भैरा साहित्य तै नि
 पड़ला तबरी तक हम लिखवार नया ट्रेंड का बारामा कंक्वे जाण सकदा ! समकालीन
लेखन का संपर्कमा रैनू जरुरी छ !
 सवाल: क्वी उदहारण ?

जबाब--मेरी एक कविता फ्यूली अर बुरांस, आन्तुरीमा पहाड़ जनि कविता   मीतै
 भौत  अछि लगदी !इन्नी हौरि  कविता बी छन्


 सवाल : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सुखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?

जबाब--रचनात्मक सूखो तै ख़तम कनम आपन(भीष्म कुकरेती जिन )लिखणो  भौत  प्रेरित करी ,यका वास्ता मी आपो भौत कर्जदार छू !

 सवाल: कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?

जबाब--कविता रीवाइज  कन्नमा इन्नी कवी ख़ास जरुरत ता नि होंद पर एकुलांसमा रचना अछि तरो से लिखे जन्दन ,पर हर बार एकुलांस या भीड़ -भाड़ ही चयेनी हो इन्नु जरुरी नि होंदु


 सवाल-इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद

जबाब--फरक ता पोडदू चा,अछू बी अर बुरो बी. एकुलंसी मनोगति से अपना   काममा फरक नि पोडदू, काम अर कविता या रचनाकर्म तै अलग रखनो जरुरी चा,कामम़ा फरक पोड्ल्लू ता रोजी रोटी कंक्वे चालली !  लूण-तेलों जुगाड़ ता पैली कन्न पोडदू

 सवाल : गढवळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
बिलकुल पोडदू चा  ! मी गढ़वाली म़ा होरी लिख्वार्वी  समालोचना करदो
!इल्लै मी जबरी बी अफु कविता लिख्दौ ता इन्नु ध्यान ता रैंदु चा की
 कविता  या क्वी बी रचना हो मी अछी से अछि  लिखने कोसिस करू ! रचना करदी
 बेर मी सिर्फ एक लिखवार रैन्दो! तबरी ता बस  रचना दिमागमा रैंदी !


सवाल: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां!

जबाब--गैर हिंदी भाषाओ का बारामा  बी  चित्वळ  रैण पड़दो  निथर मालूम बी नि
 होंदु की नया दौर का साहित्य मा क्या ट्रेंड चलन्णु छ !
 सवाल : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?

  जबाब-- कबी कबी इन्टरनेट पर देख्दो !
 सवाल: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
 
 जबाब-- भौत  कुछ नि करदो ,पर कबी अनुवाद की क्वी  किताब वगैरा
मिलगी ता खरीद लेन्दो !

सवाल: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?

जबाब--गढ़वाली की  मेमू मास्टर जयलाल वर्मा की डिक्सनरी  छ ! अंग्रेजी की  छ !
गढ़वाली का  लोक शब्दू को काम  जादातर मि पुराणी किताबु से लेन्दो !
 

 सवाल: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?

  जबाब--  हारमोनियम पर अंगुला चलाई छा, पर बजानो नि आई


सवाल: आप संस्कृत , हिंदी, अंग्रेजी, भारतीय भाषाओँ क, होरी भासों  क कौं कौं   कवितौं क अनुवाद गढवाळी मा करण चैल्या ?

  जबाब--   मेतै दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल भौत  पसंद छन् ,इल्लै छंद आलो तावूँको अनुवाद कण चांदो !
कुकरेती जी इथगा  बढ़िया बढ़िया सवाल पुछणअ वास्ता  आपको भौत भौत धन्यवाद !

Copyright@ Bhishm Kukreti

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