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चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

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Bhishma Kukreti:

रसों का प्रकार पर चर्चा - १
 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   १ पद   बिटेन ८   तक
  अनुवाद भाग -  २०३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब भद्र काप्यीय अध्याय कु व्याख्यान करला जन कि भगवन आत्रेय बोलि छौ।  १-२। 
आत्रेय , भद्र काप्यीय , शाकुन्तलेय, पूर्वाक्ष , मौदगल्य, हिरण्याक्ष, कौशिक , भरद्वाज , कुमारशिर, वार्योविद , वैदेह महाराज , निमि , महाराज वडिश , श्रेष्ठ ब्रह्विक , कंकायन क वववृद्ध अर जितेन्द्रिय महर्षि चैत्र रथ नामौ सुंदर वन म विहार करणा छा।  तब उख रस द्वारा आहार का निर्णय करण पर चर्चा ह्वे।  ३ -७।
 भद्र काप्यन बोलि - रस एकि च जैतै पाँचों इन्द्रियों का विषयों मदे एक जीबक विषय बुल्दां , यु रस जल से अभिन्न च अर एकि च । 
शाकुंतलेय ब्राह्मणन बोलि - रस द्वी छन एक छेदनीय अर दुसर उपशमनीय।
पूर्वाक्ष मौदगल्य ऋषिन बोलि - रस तीन छन यथा -छेदनीय , उपशमनीय अर अर्थात साधारण। 
हिरण्याक्ष कौशिकन बोलि -रस चार छन।  स्वादु  (प्रिय ) हितकारी , स्वादु अहितकारी , अस्वादु हित अर अस्वादु अहित। 
कुमारशिरा भरद्वाजन बोलि - रस पांच हूंदन।  पृथ्वीका , पाणीका , तेजका , वायुका , आकाशका।
राजर्षि वारयोविदन बोलि - रस छै हूंदन।  गुरु , लघु , शीत , उष्ण , स्निग्ध अर रुक्ष।
वदेह निमिन बोलि - रस सात छन -मधुर , अम्ल , लवण , तिक्त , कटु , कसाव अर क्षार।
धाभार्गव बडिन बोलि - रस आठ छन - मधुर , अम्ल , लवण , तिक्त , कटु , कसाव,  क्षार अर अव्यक्त।
कंकायनन बोलि - गुण , कर्म संस्वाद भेदों से रस अगणित ह्वे जांदन।  ८। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९२  -२९३
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

Bhishma Kukreti:


केवल अर  केवल छै रस

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  काप्यीय  अध्याय   )   पद  ९ 
  अनुवाद भाग -  २०४
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यां  पर पुनर्वसु भगवान आत्रेयन बोलि - रस छै इ हूंदन। यथा - मधुर , अम्ल , लवण , कटु , तिक्त , अर कसाय। यूं छै रसों उतपति स्थान पाणि इ च।  छेदन अर उप शमन यि द्वी कर्म छन।  यूं दुयूं मिलण से साधारण ह्वे जांदन।  स्वादु अर अस्वादु रूचि छन।  हित अर अहित  प्रभाव छन।  पंच महाभूत विकार छन।  यी रसक  आश्रय  स्थान छन अर यि रस नि छन।  गुरु,  लघु , शीत , उष्ण , स्निग्ध , रुक्ष द्रव्यों म आश्रित गुण छन जु प्रकृति (स्वभाव से इ मूंग मधुर तो लघु  ) विकृति (चौंळुं से बणयु खील अर सत्तू बड़ा भारी छन ) विचार (द्रव्यान्तरमेल जनकि मधु अर घीक मेल विष बण जांद  ) , देस (द्वी प्रकारौ जन भूमि व रोगी ), भूमि जनकि श्वेतकपोती विषहरी हूंद तो हिमाला की औषधि बिंडी गुण वळ हूंदन , शरीर देस जन टांगक मांश कंधा मांश से गुरु हूंद , अर समय यूंको भेद से उपजद ।  क्षार। खार रस नी च।  किलैकि क्षरण हूण से भौत सा पदार्थों से उतपन्न हूणो कारण अनेक रस हूण से , कटुक ,लवण आदि रसुं अनुभव हूण से क्षार म स्पर्श अर गंद हूण से यु द्रव्य च, रस नी अर अन्य कारणम भष्म आदि से निर्मित हूण से रस नी  ।  अव्यक्त बि रस नी किलैकि अव्यक्ता त कारणम इ च।  यांक अलावा अनुरसम अव्यक्तिभाव हूंद।  रस क पैथर जो रस हूंद वू अनुरस च।  जनकि -रुक्ष कसायानुरसो मधुर:कफपित्तहा।  यथा अनुरस म अव्यक्ता हूंद।  अर जु बुले गे बल रसों क आश्रय बिंडी हूण से रस असंख्य छन वक्तव्य ठीक नी।  किलैकि एक एक रस यूं आश्रय रुपी भावों मंगन कै एक भाव का आश्रय लेकि विशेष रुप से रौंद।  (जनकि मूंग , चौंळ , दूध , घी म मधुर रस आश्रय अलग अलग हूण पर बि मधुर रस  इकजनि   च। जनकि दूध बगुला , कपास म आश्रय अलग अलग हूण पर बि रंग सफेद इकजनि च।  आश्रय असंख्य छन किन्तु रस छै से भिन्न हूण असंभव च।  अर बुले जावो कि भिन्न भिन्न रसुं मिलण से रस असंख्य छन भी सही वक्तव्य नी च।  किलैकि दगड़म मिलण पर बि यूंक गुरु , लघु , आदि गुण या मधुर आदि स्वभाव असंख्य ह्वे जांदन।  किन्तु इखम बि मधुर आदिक प्रकृति ही त मिल्दन।  अर्थात रस मिलण से रस असंख्य नि ह्वे जांदन।  इलै मिल्यां रसुं करमुं उपदेश बुद्धिमान नि करदन।  इलै प्रत्येक रस का लक्षण अलग अलग हि बुले जाल।   
 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १९३ - २९४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
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Bhishma Kukreti:
  आयुर्वेदिक द्रव्यों लक्षण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  १० 
  अनुवाद भाग -  २०५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एक अगनै आयुर्वेद का उपयोगी द्रव्य भेद पर बुले जाल - इखम ज्वी बि द्रव्यों बारा म बुले जाल सब पंच महाभूत से बण्यां  छन। यी द्वी प्रकारै छन।  चेतना युक्त अर अचेतन।  ये द्रव्यका  जख शब्दादि गुण छन उख गुरु आदि  बीस गुण छन।  द्रव्य क पांच कर्म हूंदन।  यथा -वमन ,विरेचन , शिरोविरेचन , आस्थापन अर अनुवासन।  यूं द्रव्योंम जु पृथ्वीजन्य छन वु  प्रायः गुरु , कर्कश, कठोर, धीमा , स्थिर , अलग -अलग , सांद्र , स्थूल , अर गंद युक्त गुण वळ हूंदन।  यी पार्थिव पदार्थ उपचय संघात , भारीपन , अर स्थिरता करदन।  जलीय पदार्थ तरल , स्निग्ध , शीत , मंद , पिच्छिल , जलीयगुण युक्त हूंदन।  यी द्रव्य नम , स्नेह , बंधन , परस्पर मिलाण वळ , कोमलता , प्रल्हाद शरीर इन्द्रियों तर्पण करण वळ छन।  आग्नेय द्रव्य गरम , तीक्ष्ण , सूक्ष्म , लघु , रखा , विशद , अर अग्निवत हूंदन।  यी द्रव्य जळाण , पकाणा , कांति , प्रकाश , रंग उतपन्न करदन।  वायवीय पदार्थ लघु ,शीत , रुखो , खर , सूक्ष्म , स्पर्श गुण वळ हूंदन।  यी शरीर म ग्लानि , रुखोपन , निर्मलता अर लघुता उतपन्न करदन।  आकाश गुण वळ द्रव्य मृदु , लघु , सूक्ष्म , स्रोतोंम पौंचाण वळ , चिपुळ ,शब्दगुण , वळ हूंदन।  यि सरैल म मृदुता , छिद्राधिक्य अर लघुता उतपन्न करदन। १०।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९५
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद

Bhishma Kukreti:

औषधि द्रव्यों का प्रकार
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  ११   बिटेन  १२  तक
  अनुवाद भाग -  २०६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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उपरोक्त द्वारा जगत म जु बि द्रव्य मिल्दन सौब उपाय , प्रयोजन उद्देश्य से  वूं  तईं औषध समजण चयेंद, अर्थात यि सौब दोष नाशी छन , निरुपयोगी नि छन ।  पार्थिवादि द्रव्य केवल गुरु या खर आदि गुणों से औषध या दोष नष्टि नि बण जांदन किन्तु द्रव्य द्रव्य क प्रभाव से , गुण क प्रभाव से , द्रव्य अर गुण दुयूं प्रभाव से वै वै समयम , वै अधिष्ठानक आसरो   लेकि वै योजना अर प्रयोजन तैं लक्ष्य कौरि जु करे जांद वु कर्म च , जनद्रव्य क प्रभास से दन्ती (जमाल गोटा ) विरेचक च , मणि धारण करण विष दूर करद।  गुणक प्रभाव से -जौरम तिक्त   रस , ठंड म आग।  द्रव्य अर गुणक प्रभावन जनकि -काळो  मृगछाला।  इखम मृगछाला द्रव्य च अर काळो गुण।  यांपर जु काम करदन जनकि शिरोविरेचक द्रव्य शिरोविरेचन करदन जु कर्म च।  जैक द्वारा उष्ण द्वारा शिर विरेचन अर यु वीर्य शक्ति च ।  जख कर्म करे जांद वु अधिकरण च जन शिर ।  जब करे जांद वु 'काल ' च , जन करे जांद वु उपाय च।  अर इनम जु प्राप्त हूंद /सिद्ध हूंद वु फल च।  ११।
रसोंक भेद - यूं छै रसों क  द्रव्य प्रभाव से जनकि हिमाला का दाड़िम अर अंगूर मिठ हूंदन अर हौर जगाक खट्टा।  समय प्रभाव से यथा - कच्चो आम कसैला , कुछ समय बाद खट्टो अर फिर मिट्ठो।  या हेमंत म औषधि मिठी अर बरखाम खट्टी।  इनमा भेद ६३ ह्वे जांदन।  १२।   -
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
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Bhishma Kukreti:
द्वि रस योगिक १५ प्रकारा रस
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद १३ 
  अनुवाद भाग -  २०७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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द्वी रस वळुं पंदरा भेद छन - मधुर अर अम्लक योग से पांच , अम्ल अर लवणक योग से चार , लवण अर कटुक योग से तीन, कटु  अर कषायक योग से द्वी  अर कषाय अर टिकट योग से एक रस बणद।  यथा
१- मधुराम्ल, २- मधुरलवण , ३- मधुरकटु , ४- मधुरतिक्त ,५-  मधुरकषाय ६- अम्ललवण, ७- अम्लकटु ८- अम्लतिक्त ९- अम्लकषाय १०-लवणकटु ११- लवणतिक्त १२- लवणकषाय १३- कटुतिक्त १४- कटुकषाय १५- तिक्तकषाय।  १३। 
 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २९६   
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद

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