कटु रस गुण व लक्षण
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 26 th, छब्बीसवां अध्याय ( भद्र काप्यीय अध्याय ) पद ४० (४ )
अनुवाद भाग - २९९
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
कटु रस मुख शोधन करद , अग्नि बढ़ांद , खायुं भोजन सुकान्द , नाक बिटेन कफ बगांद, आंख्युं म आंसू लांद ,इन्द्रिय उत्तेजित करद ,अलसक , सूजन , उदर्द , स्नेह ,पसीना , क्वेद ,मल नाश करद। कृमियों मारद , मांश की स्थूलता कम करद. खायुं भोजनक रेचन करद , खज्जि मिटांद , व्रण बिठांद , भरद च. जम्युं रक्त तै तुड़द , संधि बंधनों तै छेदन करद ,मार्ग साफ़ करद , कफ शांत करद। रुक्ष , उष्ण व लघु हूंद।
यु रस अधिक मात्राम सेवन ह्वावो तो कटु पुरुषत्व नाश करद। रस अर वीर्य प्रभाव से संज्ञानाश करद। ग्लानि उतपन्न करद। अवतल करद , निर्बल करद , मूर्छित करद , सरैल सुकान्द , अन्धकार लांद , चक्कर लांद , गौळम जलन , ताप ज्वर करद , बल कम करद , तीस उतपन्न करद. वायु अग्नि गुण की अधिकता से चक्कर , मुख हूंठ , म जलन , कंपकंपी , चुभन की दर्द , मेदन जन पीड़ा , खुट -हाथ , पार्श्व , पसली म , पीठम वात विकार ह्वे जांद। ४० (४ ) । .
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३०६ -३०७
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना