चरक संहिता म फल वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद १२३ बिटेन १६३ तक
अनुवाद भाग - ३२६
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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फलवर्ग -
पकीं किशमिस तीस ,जलन , जौर , स्वाश , रक्तपित्त , उरक्षत , क्षय , वातपित्त , उदावर्त , स्वरभेद, मदात्यय, कड़ो मुख , अर खासु शीघ्र दूर करद। यु वृहणी पुष्टिकारक, वृष्य , मधुर, स्निग्ध , ठंडो हूंद। खजूर मधुर ,पुष्टिकारक , शुक्रवर्धक, गुरु , शीतल अर क्षय , चोटलगण , जलन, अर वातपित्त म हितकारी हूंद। अंजीर (बेडु ) तृप्ति दिंदेर , गुरु , विष्टम्मी अर ठंडो हूंद। फालसा , महुआ वातपित्त म हितकारी च। आमड़ा मधुर , पुष्टिकारक , बलकारक , तृप्तिकारक , गुरु , स्निग्ध , कफकारक , ठंडो , वृष्य अर पुटुक म आफरा करदो। ताड़फल व पक्यूं नरियुळ स्निग्ध , वृहण , ठंडो , बलकारी व मधुर हूंद।
कमरख मधुर , अम्लकषाय , विष्टंभि , गुरु , शीतल, पित्तश्लेष्मकारी, स्तम्भक , मुख शोधक हूंद।
खट्टो फाल्सा , द्राक्षा , झाडी क बेर , आड़ू , यी पित्त कफ तै कुपित करदन। इनि बेर व लकुच बि कफ पित्त कुपित करदन।
आलू बुखारा भौत गरम नि हूंदन , मधुर स्वादु , खाणम स्वादिष्ट, भेजा / बुद्धि पुष्टिकारक , शीघ्र पाच्य , हूंद
पारावंत द्वी प्रकारा जन हूंद -मधुर अर अम्ल। मधुर शीतल , अर अम्ल उष्ण गुरु , अरुचि , अग्नि तीब्रता नाश करण वळ हूंद।
गंभारी फल लगभग कमरस फल जन ही हूंद। इनि खट्टा फालसा फल जन शहतूत फल बि हूंद। टंक क फल कषाय , मधुर , वातक , गुरु अर शीतल हूंद। कच्चो कैथ स्वर नाशी , विषनाशी,ामक संग्राहक अर वायकारी च। पाक्युं कैथ , मधुर , अम्लकषाय रस , सुगंधित हूणन रुचिकर हूंद, भरपूर पकण पर दोषनाशी , विषनाशी , संग्राहक व गुरु हूंद। पक्यूं बेल पचणम दुर्जर , दोषकारी , दुर्गंध युक्त ,वायुकारी हूंद। कच्चू बेल स्निग्ध , उष्ण , तीक्ष्ण , अग्निदीपक, कफ वायु नाशी हूंद।
गुठली लगण से पैल कच्चो आम रक्त पित्तकारी पित्तकारी हूंद। पकण पर वायु नाशी , मांश , शुक्र व बल वर्धक हूंद।
पाक्युं फळिंड (जामुन ) कषाय , मधुर रस , गुरु , विष्टम्भी , शीतल, कफ -पित्तनाशी, संग्राही अर वायु कारी हूंद। बेर मधुर स्निग्ध , रेचक , वातपित्तनाशक च। सुक्यूं बेर कफ वात्तनाशक , पित्त कुण अविरोधी च पित्त प्रकोप नि करद।
सेव (सफरचंद ) कषाय , मधुर रस , शीतल , संग्राही च।
नागबला अर करौंदा , कंदूरी , तोंदन , अर धायक फल मधुर कषाय , शीतल , पित्त कफ नाशी च।
पक्यूं कटहल , क्याळा , खिरनी , स्वादु, कषाय , स्निग्ध , गुरु अर स्निग्ध च।
हरफारेवडी कषाय ,अर विशद , सुगंधित हूणन रुचिकर हूंद ,वायुकारी , खैक दुसर फलों म रूचि जगदी।
कदम्ब , शरका , पीलु , केतकी , विककंत , आमलक फल दोषनाशक , अर विषनाशी छन।
इंगुद फल तिक्त ,मधुर , स्निग्ध , उष्ण अर वात -कफनाशी हूंद।
तेन्दु फल कफ -पित्त नाशी , कषाय , मधुर अर लघु हूंद।
औंळा म लूण छोड़ि सौब रस छन , अर स्वेद भेद , कफ वमन रूचि अर पित्त रोग नाशी च, रूखो , स्वादु , कषाय अम्ल, कफ पित्त नाशी हूंद ।
बयड़ (बहेड़ा ) रस रक्त , मांस , मेद जन्य रोगनाशी च, स्वर भेद , कफक उत्क्रेड , पित्त नाशी च ।
खट्टो अनार कषाय , मधुर ,वातनाशी , संग्राही , अग्निदीपक , स्निग्ध अर उष्ण च, अर हृदय कुण रुचिकर ,कफ पित्तक अविरोधी ,(प्रकोपक ना ) फल च । मिठु अनार पित्तनाशी च अर यूमादे खट्टो अनार श्रेष्ठ च।
कपकं संग्राही उष्ण , वात कफ म प्रशस्त च। इमली फल पकण पर लगाबग्गी कोकम जन गुण वळ च पर रेचक च । बिजौरे लिम्बू क केश शूल , अरुचि , बिगँध , मंदाग्नि , मदासय्य , हिक्का , खासू , श्वास , वमन, मल संबंधी रोगोंम व वातकफ जन्य रोगुंम प्रशस्त अर लघु च। एकी छाल गिरी आदि गुरु अर वात प्रकोपक च।
बिन बक्कलक कचूर रोचक अग्निदीपक , सुगन्धित , कफ वात नाशक , श्वास , कीचकी , अर अर्श राम हितकारी च।
नारंगी फल मधुर , कुछ खट्टो , खाणम रुचिकर , पाच्य , वातनाशक अर गुरु च।
बादाम , पिस्ता , अखोड़ , मकुचक , निकोच , गुरु , उष्ण , स्निग्ध , मधुर , शक्तिवर्धक, पुष्टिकारक , वायुनाशी , कफ पित्त वर्धक छन। पियाल बि इनि च पर उष्ण नी।
लसूड़ा क फल कफकारी , मधुर , शीतल अर गुरु च।
अङ्कोटक फल गुरु , कफकारी , बिष्टम्भी अग्निनाशक च।
शमी क फल गुरु , उष्ण , मधुर , शीतल अर बालनाशी च।
करंजक फल बिष्टम्भी व वाट कफ कुण अविरोधी च।
आम्रतक , दंतशठ (लिम्बू खट्टो ) करौंदा अर ऐरावत फल रक्तपित्तनाशी च। वार्ताक वातनाशक, अग्निदीपक , कटुतिक्त रस च। पित्तपापडे फल वायुकारी , कफ पित्त नाशी च।
असिफी फल खट्टा , कफ पित्तनाशी , अर वायुकारी च। पिपुळ , गूलर , पिलखन बड़ यूंक फल पकण म मधुर , वातपित्त नाशी छन।
कच्चा फल कषाय , मधुर , अम्ल , वायकारी , गुरु हूंदन।
मिलावे का फल अग्नि जन (छाला लाण वळ ) , मिलावे की छाल -मज्जा स्वादु , शीतल च। ये अनुसार फल वर्ग क पांचो भाग बि बोल दियाल। १२३- १६३।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३४३ -३४५
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती - जसपुर गढ़वाल ) 2022
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