मेहता ज्यु,
म्यर विचार छू कि गौं पनात नानतिन आपुणी बोली सेखी जानी, पर शहरों में नानतिना का लिजिया बड़ी दिक्कत छू हो महाराज। अब अंग्रेजी लै जरुरी भै और हिन्दी लै बुलाणी भै। यौ कारण नान आपुणी बोली नी बुलै सकन किलैकि नान लैत तबै सीकाल जब उनार ईज-बाब उनर दगड़ बुलाल। शहरो मेंत चाहे दिल्ली हो या नैनीताल काक-काकी अंकल-आंटी हैगे, और फ़िर भाषा सीकीं लै कसिक होमवर्क लैत भै।
पर यैक लीजी मै-बाबुं कै ज्यादा मेहनत करण पड़ेली, नतर हमरी भाषा-बोली खतम हुण में टैम नी लागो। मैं सोचणु यै का लिजिया सुचना तकनीकी हमरी मदद कर सकै। यौ सब कसिक सम्भव हौल यौत बुद्धिजीवी लोग ज्यादा भलिक समझै सक्नी। पर हमार नौजवान जो अपणी बोली नी जाणन, वो लोग जरुर पहाड़ी भाषा सीकणाक लीजी त्यार छन, बस जरुरत छू उनुकैं उनरी भाषा से परिचित करोणैकी।