Author Topic: Here We will Talk Only in our Language-याँ होलि सिर्फ अपणी भाषा-बोलि में बात  (Read 80766 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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पैलाक हो म्यर सब झनो क

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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अरे आजी नी पड रय हो बफॅ (ह्यै)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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अरे आजकल सब काम पर ब्यस्त छन भलै क।

Bhopal Singh Mehta

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from Mukund Dhoundiyal <ml.dhoundiyal@gmail.com>

संसार का  हर प्राणी अपने समुदाय में रहता है
और उसीमे बड़ा भी होता है  और  अपने को सुरक्षित समझता है   
  उसका  सही विकास भी अपने  समुदाय में  ही होता है
इंसान  भी  अपने अपने समुदाय में  ही पनपते हैं उनके विकास में सहायक  शक्तियां भी समुदाय में  ही विद्यमान होती हैं
और उनकी परस्पर विचार आदान प्रदान करने की एक बोली होती है
जिस के माध्यम से  वो अपने लोगो  से जुड़ा रहता है
 
 
फिर हम उत्तरांचली क्यों नहीं अपने  समुदाय में जुडे रहने   का  और अपणी बोली में बोलने का  अभ्यास नहीं करते 
और क्यों नहीं हम   आपस में अपणी बोली में बुलाते हैं ..

हमारी बोली बहुत ही आसान है प्यारी भी .  पहाड़ों में आज भी ऐसे बहुत से  देशी लोग देखे सकते हैं जो उत्तरांचली
बोलियों को समझ जाते हैं
बल्कि कुछ तो बोल भी लेते हैं   कोटद्वार  नैनीताल ऋषिकेश  हर्दिवर देहरादून में  रहने वाले बहुत से पंजाबी दुकानदारों को मैने लोकल  बोली बोलते देखा है...

एक दिन  जब मै कोट द्वार  में  अपणी गाँव जाने वाली बस  ढून्ढ रहा था   तो एक  दूकान दर  न  मुझे पीछे से पुकारा  "ओ भैजी कख छ जाणा  रोडवेज  कु टिकट घर  यख च हमारा होटल का समणी  आवा आवा पैली  गरम गरम च्या ता  पे जावा
तुमारु टिकट  लीना माँ हम सहायता करिद्युंला
और मै हैरान  था की ये आवाज   दुकानदार अग्रवाल  के मुह से निकली थी जिनका चाय का रेस्तोरांत है

तब मुझे लगा की हमारी अपणी बोली कितनी अच्छी और आसान है   
बहार से  आये भांडे बर्तन  बेचने वाले,   सब्जी बेचने वाले  लोग  यहाँ तक की   देसी परदेसी अध्यापक भी
 भी  हमारी बोली में बोलते  पुकारते  हुए देखे  जा सकते हैं
और कहीं कहीं तो ऐसा लगा मानो वे उत्तराँचल के मूल निवासी हैं

 तो ठीक ही बोला किसी ने  की
"घर कु जोगी जोगडा  और भैर कु जोगी सिद्द " 
अरे  भाई   ...
शुरू  करा अपणी बोली .....
आज  बीटी ...
न  न न  आज  न 
....... बल्कि अब्बी बीटी
 बुलाँ चालाँ  सुरु करा..

शुभ काम का वास्ता महूर्त की जरूरत नि होंदी   ...जब बीटी शुर करा .....
समझा  तब बीटी शुभ महूर्त ह्वेगी   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आपुन भाषा के जिन्द रखान क लीजी, जरुरी छो की ज्यादे-२ आपु लोगो क बीच में अपुन बोली में बात करो और एक यस वातावरण बनाओ जैमे सब लोग आपुन बोली में बात कर सको.

एक लीजी सबसे पैली शुरुवात आपुन घर बटी आपुन नान-तीनो साथ में हुन चे!

Devbhoomi,Uttarakhand

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अपणी भाषा अर अपणी संस्कृति तैं जिन्दा रखना वास्ता हमू लोगो साणी अपणी भाषा मा,अपणी बोली मा बात करीं चैंदी, और अपणा संस्कार कभी भी नि भुल्याँ चैन्दा,हमारी भाषा अर संस्कृति ही अमारी पहचान छ !

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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मेहता ज्यु,
म्यर विचार छू कि गौं पनात नानतिन आपुणी बोली सेखी जानी, पर शहरों में नानतिना का लिजिया बड़ी दिक्कत छू हो महाराज।  अब अंग्रेजी लै जरुरी भै और हिन्दी लै बुलाणी भै।  यौ कारण नान आपुणी बोली नी बुलै सकन किलैकि नान लैत तबै सीकाल जब उनार ईज-बाब उनर दगड़ बुलाल।  शहरो मेंत चाहे दिल्ली हो या नैनीताल काक-काकी अंकल-आंटी हैगे, और फ़िर भाषा सीकीं लै कसिक होमवर्क लैत भै।
पर यैक लीजी मै-बाबुं कै ज्यादा मेहनत करण पड़ेली, नतर हमरी भाषा-बोली खतम हुण में टैम नी लागो।  मैं सोचणु यै का लिजिया सुचना तकनीकी हमरी मदद कर सकै।  यौ सब कसिक सम्भव हौल यौत बुद्धिजीवी लोग ज्यादा भलिक समझै सक्नी।  पर हमार नौजवान जो अपणी बोली नी जाणन, वो लोग जरुर पहाड़ी भाषा सीकणाक लीजी त्यार छन, बस जरुरत छू उनुकैं उनरी भाषा से परिचित करोणैकी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Joshi ji..

Tumar baat dage me poorn dang le sahmat chhiyo..

lekin yeek shuruwaat ghar bati hoon che.

मेहता ज्यु,
म्यर विचार छू कि गौं पनात नानतिन आपुणी बोली सेखी जानी, पर शहरों में नानतिना का लिजिया बड़ी दिक्कत छू हो महाराज।  अब अंग्रेजी लै जरुरी भै और हिन्दी लै बुलाणी भै।  यौ कारण नान आपुणी बोली नी बुलै सकन किलैकि नान लैत तबै सीकाल जब उनार ईज-बाब उनर दगड़ बुलाल।  शहरो मेंत चाहे दिल्ली हो या नैनीताल काक-काकी अंकल-आंटी हैगे, और फ़िर भाषा सीकीं लै कसिक होमवर्क लैत भै।
पर यैक लीजी मै-बाबुं कै ज्यादा मेहनत करण पड़ेली, नतर हमरी भाषा-बोली खतम हुण में टैम नी लागो।  मैं सोचणु यै का लिजिया सुचना तकनीकी हमरी मदद कर सकै।  यौ सब कसिक सम्भव हौल यौत बुद्धिजीवी लोग ज्यादा भलिक समझै सक्नी।  पर हमार नौजवान जो अपणी बोली नी जाणन, वो लोग जरुर पहाड़ी भाषा सीकणाक लीजी त्यार छन, बस जरुरत छू उनुकैं उनरी भाषा से परिचित करोणैकी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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aaj kal Delhi me thund bhaut bad gayee...

Hit mahraj Uttarayni me jaayee una.

Lalit Mohan Pandey

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महाराज ये साल त दिल्ली मै पहाड़को जैसो ठण्ड पड़ी गिछ, भट्ट (सोयाबीन) भुट्टी खानाको मन करन रिछ.
नन्छाना इस मौसम मै, खल्दीन (जेब) भरी बेरी भुट्टीनका भट्ट  राख्या फिर थोडा देर एकका घर, थोडा देर दुसरका घर आग तापिथाया, फिर भूक लागित घर उन्थाया और देली (दरवाजा) मै है आमासे आवाज लान्था "ओ  आमा की पकारैचे, भूक लागिरैछ", आमा कोंथी "बाबु तो लाल कदुवा (कद्दू) पका रखैछ निको मिठो होरिछ, तैस खा"
अब तै, नै आमा रै, न उ  कदुवा रयो, न ही उ घर घर घुमान रायो.
  
Delhi main kadkadi gin ho maharaj thandal, ghar main huna to banja lakadank kwail tapan, yaad uno myar pahad.

 

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