क्ये करण भय द्वि रोटि सवाल नी हुंची तो यां गरमी में सड़ण खातिर को यां आंछी। अपण घर अपण मां याद तब एंछ जब हमन कें क्वे कष्ट हुंच, क्वे दुख तकलीफ हुंछ, गरमी - सरदी हुंछ, हम हजारों लाखों की भीड़ में भी यकल रहनूं, अपण मुलुक याद तब एंछ जब हमूकें याद आनी वांकी ठंडी हवा, ठंडो पाणी, लाल-काल काफल, हिसालू, किलमोड़ा, काचा आम और काचा तिमिला। अपण घर याद तब ऐंछ जब ए.सी. कूलर होते हुए भी अचानक लाइट नहै जें और सब बेकार। तब याद आनी ऊं आम अखरोट पेड़ जनर छाया मुंण हमुल तमाम गर्मी काटिछ।
तो मेहता ज्यू हिटो तुम लै हिटो और हमल हिटनू
आखिर द्वि दिन त ठंड पाणी और ठंड काफल खाणक मिलिल।
आपक
डा . मोहन बहुगुणा.