Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 133714 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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म्यारु मुलक (सन 1935 -50 का बीचक कविता )
रचना -- कमल साहित्यालंकार (हरुली , तळाइं , पौड़ी गढ़वाल, 1909 -स्वर्गीय )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती


जनु रम्यळु म्यारु मुलक इनु त कैको नी च
ज्ञान गुरु ब्वंदी दुनिया का बीच।
हथगुळि मा ब्रह्मकमल झमकदो कैलास
रूद्र महादेव जख देवतौं का बास
गंगा जमुना मा मुक्ति घोळिका छुळी च।
हिंवाळी रौल्यूं को पाणी दूध जनो हूंद
डांडिऊँ की चुफळि मथि सर्ग थैं छूंद
चंदन तिलक मनींद गंगा जीको कीच।
ऋतु ऋतु को फेरो यख खिलदा पारिजात
सूना का छै दिन हिंवळया चांदी कि छै रात
कर्म कळा रैंद यख अंगुळयूँ का बीच।

……
.......
बावन तीरथ यख ऋषि मुन्यों का बास
हरर गंगा सरर जमुना ब्वगद आस पास
मुक्ति मिली जांद जैका भाग मा बदीं च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बल लिखण दे मिथे एक कबिता

बल लिखण दे मिथे एक कबिता
बल जमण दे वै थे सरिता

उत्तराखंड मा हुनू सब गुम
खोजंदे कया चो यख बिखरो ग़म

चोरै चोरै कि ले जाणा सब
पूरै पूरै कि सब खै जाणा अब

बेचेकि कि खैगे वो सारू झुंड
देखि ले अब ये च अपरुँ कू गुण

दोई आखर लेखी वै बी हैगे गुम
कबीता मेर पौड़ीगे तू किले सुम

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

मि थे बी बचण दे त्यूं ह्युं की चलूँ चांठी
कण आंदी हुली रस्यांण बोई ते चलूँ गाठी

हर्षण लगे अब मेरु जियूं तर्स्नू अब मेरु हियू
कैन छबी बणई हुली राति मा ऐकि रंगाई हुली

एकदूजा रंग मा सबु का सब यख रंग्या छन
एकदूजा मा मिस्ली की सब रंग पसरया छन

अब इत्गा ही लिक स्कदु मि देणु च विराम अ
कैल बाची ये मेर रचना वैल बी मेर दगड आन

कख मिलालू सरग इनि मि थे तू बतै दे
वै बाटा वै उकाल बोई मि थे तू अब हिटै दे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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द्वि भैनी

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

बगत अब अपरू कथा च लगानू
द्वि आंसूं तेर द्वि मेरा भैनी चुलानू

दिस इनि अला सुधि बित ही जला
सोची रेगे हम द्वि थे कन चार बणला

सौंण- भादों की कन बरखा लगींच
पुरू गढ़वाल मेरु वैमा झिर-झिर भीज्युं च

खुद आंदा जांदा रैंदा बिता सड़की ऊ मोड़
हुम्लु कैथे ध्ये लगान अब जणा कै ओर अ

द्वि भैनी बैठिक छँवि च लगनी
पहाड़े कु ठंडो पानी बगदि जनू

बालकृष्ण डी ध्यानी
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डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब

डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब
अब त दोई खुथा यख और्री दोई खुथा छन वख

टिहरी डैम टिहरी कथा सब लग्ना छन अब
प्रताप नगर यखुली रैगे कब बनलु तेरु डगर

अयं बड़ा बड़ा इंजनियर सब योजना व्हैगे रद्द
दोई लगुला ना टंग पाई सरकार की इनि खत

टक्कों टक्कों टक्कों दगडी खेलण छन सब
देरहादून गैरसैंण कबी त तू हमरी बी सुण

दिल्ली उत्तराखंड पहाड़ों मा ध्ये लग्ना छन सब
ऐ जवा टंगी जवा तुमरो लगुला थे पौड़ीगे जंग

डोबरा चांठी चांठी पुल चांठी गैंन सब
अब त दोई खुथा यख और्री दोई खुथा छन वख

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वै बाटा मांजी ईईईई

वै बाटा मांजी ईईईई
क्ख्क ऊ जणा छन
मि थै बाथे दे मेर बोई जी
जैकी ऊ कया लणा छन
वै बाटा मांजी

दूर देश ऊ जांद लाटा
वै बाटु ने हम थे बांटा
हिट वैमा क्वी नि आंदु
अहम ये जियु भरी जांदू

वै बाटा मांजी ईईईई
मेरा बाबाजी बी ग्या छन
क्दग दिन रति बिती
मि अब तक ऊँ थे ना देकि छे

ये मेरा दूध को छरो
पोट्गी छे जब तब ऊ गैं छन
भैर देश मा ऊ जैकी
टक्कों का थैल भोरणा छन

ऐ मेर मांजी ईईईई
क्या कण हमुल ऊँ टक्कों कू
बचपन मेरु इन सुधि जाणा
बाबा कैरी मिल कैथे ध्ये लगाण न

वै बाटा मांजी ईईईई

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

मेसै बोल्दै
ई जिकोड़ी को भेद खोल्दे
ना ना इनि ना
ना ना वख ना जा
मेर समण आ आ ऐजा
मेसै आँखा जोड़ दे
ये मेर हिंसोला की दाणी जनि तू नार
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

रंग मा त रंग तेरु गौर
हुयंद की ईं चलूं जनि उजाळ
सेब कु रंग च यू लाल
जन तेर द्वि ग्लौड़ी छे लाल
कख भत्ते आयु व्हालु
कैन तै थे इन बनायुं हलु
वै देबता थे मेरु जैकार
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

गद्नि सी बगदी छे तू
हरेल सारी मा जच्दी छे तू
आणि छे तै मा कैकि अनवार
तू ऐई ऐगे यख बनेकी मयल्दी ब्यार
म्यार गढ़ देश की तू छे उल्यार
खत्युं च यख माया साऱ्या गढ़वाल
देखी की तै मेरु जीयु व्हैगे घैल
दे दे छोरी तेरु मीथै पियार

बालकृष्ण डी ध्यानी
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प्रेम मा बिंडी व्यस्त छौं अचकाल

रचना --- हरीश जुयाल

वार -प्वार हुयां छौ अचकल्यूं ।
धार धार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
पुछणा रंदन जात -थात ।
ग्वतराचार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
वोट दीणा खुण अंग्वठाछाप ।
अधिकार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
मिसकौल आणी छन धड़ाधड़ ।
मायादार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
वूंका फंचा बोकिकि "जुयाळ "
रोजगार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
Copyright@ Harish Juyal

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प्रेम मा बिंडी व्यस्त छौं अचकाल

रचना --- हरीश जुयाल

वार -प्वार हुयां छौ अचकल्यूं ।
धार धार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
पुछणा रंदन जात -थात ।
ग्वतराचार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
वोट दीणा खुण अंग्वठाछाप ।
अधिकार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
मिसकौल आणी छन धड़ाधड़ ।
मायादार हुयां छौ अचकल्यूं ।।
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उठा उठा हे गढवीर भायूं
दयाशंकर भट्ट 'बंदी ' (टिहरी गढ़वाल , 1905 -1982 )

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उठा उठा हे गढ़वीर भायूं
कब तैं चुप बणिक रयेला
' बंदी ' समौ कम इन भि दिखेली
जय बीरता का डंका बजौंला
क्वी नी च भाई ! संगी हमारो
खुटौन अपणा खडु होणु होलो
'बंदी ' बणी गे हे वीर बैखो
संसार मा नाम कमौण होलो
ऐ जा पलेता पक्का कसीक
गढ़वाळ को लाज बचौं ल
'बंदी 'भलो प्राण बलि चढ़ौन्ला
संसार मा राड तुर्री बजौंला

 

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