Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 135019 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यखुलू मि
कख लगि हुली मांजी
कख बिरडी हुली
सबेर घास कु ग्याई
मांजी कख हर्ची हुली
क्वी जाण ना
विं की क्वी पछाण ना
कै डालू छैलु बैठी मांजी
रुन लगि हुली
कख कख खोजों विंथे
विं बाण कख रिंटू
थमेंदु नि जिकोडी धकध्याट
विं से कया बोलूँ मांजी
हल मेर इन छिन
कैथे मि जैकी बोलू
बाबाजी मेर छन मांजी
सात समुदर पार
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मन की पीड़ा थे
मन की पीड़ा थे
मन मा दबै ई दे
हेरि तिळ कन मि थे
ईन दवा ई दे
अपड़ी अंगडी मा
मिथे तू कढे ई दे
अंजुली भोरी कि
ई जुन्याली मां मि सम ई दे
मिळूलू दगड तेर तर
भोरी कि मिल् गठरी जम ई दे
ई आँखि बुझ्न स पैल
ई दुनिया तू मि दिखै ई दे
चुखुला बणन स पैल
मिथे तू इन ना उड़ै ई दे
कड़ी मीठी जन बी हुली
अपड़ा हाथों मिथे पिलै ई दे
मन की पीड़ा थे ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयु,
नन्तिनको टीटाट, सैणी को कचकचाट
ईजा को नौराट, बाबु को बड़बड़ात
मेरी है रे यो चाटमचाट
घर वाला के भूली गयु,
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयु,

गों गाड कि दोस्ती छूटी गई
को छू पडोसी पत न होई
जे के न देखरा एक बार
यस छन म्यार फ्रेंड हज़ार
दिन रात फ्रेंड रेकुएस्ट भेज्न्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

को सैणी को मैस, को बैनी को कैंज
को दाज्यू को भौजी को मामी को मौसी
ठुल नान सब को फ्रेंड कुन्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

खान का पैली, खाना का बाद
दिन भर ऑफिस में घर में आदुक रात
फटाफट लोग इन कर न्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

जेके मन आ लाइक कर दिन्यु
मन भर सबकी फोटो देख्णु
को के के के कुनौ चुपचाप सुन्नुयु
जा मन आई आपण खुट अड्डा दिन्यु
सीध साद आदमी छुयु औरे है गयुं
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

दुई आदमी दगड़ बात न करी
आज “विचार व्यक्त” करन्यु
कभे एक शब्द न लेख्यो
(मेरी हिम्मत देखो )आज कविता लेखन्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"बिछोह"
"बिछोह"

निष्ठा की मैंने की, प्यार किया तुमसे,
तुम्हारे गाँव से,
गाँव मैं बसे सीधे रिश्तों से,
टेढ़े मेढ़े घूमते रास्तों से,
गीली माटी से, कच्चे पक्के घानों से,
हरे चीड़ के झड़े पत्तों से.
कोशी मैं तैरते झड़े अखरोट के दानों से,
प्यार किया मैंने,
बूढ़ी आखों से, नन्हे क़दमों से,
झोडों पर थिरकते वे सुंदर पाओं
और उन पाओं पर खनकती पायलों से,
बुरांस के खिले फूलों की तरह लाल सुर्ख गालों से,
सच, प्यार किया मैंने.
सभी कायम रहे अपनी जगह अपनी रीढ़ पर,
बस, हमारी तुम्हारी दोस्ती ही गुम हो के रह गई,
इस शहर की भीड़ मैं, ना जाने किस मोड़ पर.

(स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा
सेक्टर-९, ८८६-आर.के.पुरम, नई दिल्ली
26.3.2009

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"हळ्या"
"हळ्या"

हळ्या दिदा का मन मा लगिं छ,
हौळ लगाण की झौळ,
कथ्गै मौ कू हौळ लगाण,
ऊठणि छ मन मा बौळ.

बल्दु की जोड़ी हळ्या गौं मा,
खोजिक छन द्वी चार,
सैडा गौं कू हौळ लगान्दा,
मुलाजु या लाचार.

कथ्गै मौ की पुंगड़ी बांजी,
हौळ भी कैन लगाण,
हल्यौं कु अकाळ होयुं छ,
कैन बोण आर बाण.

हल्सुंगी ढ़गड्याण लगिं छ,
पड़नी छन ढळ डामर,
हळ्या दिदा तंगत्याण लग्युं छ,
जन हो ज्युकड़ी मा जर.

हळ्या का मन मा कपट निछ,
मन मा छ हौळ की झौळ,
सुबर ब्याखना हौळ लगैक,
ऊठण लगिं छ बौळ.

हळ्या दिदा सोच्दु छ मन मा,
दग्ड़या मेरा सैरू बाजारू मा,
मैं बंण्यु छौं हळ्या,
गौं वाळौं मैं जु चलि जौलु,
गौं छोड़िक दूर देश,
चुचौं! तब तुम क्या कल्या.

बल्द हर्चिगिन, हळ्या भि हर्चला,
देखण लग्युं छ "जिग्यांसु",
पुंगड़्यौं मा कबरी हौळ लगै थौ,
आज औणा छन आँसू.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(21.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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स्कूली दिन ले कतु भल रहनी
स्कूली दिन ले कतु भल रहनी,

स्कूली दिन ले कतु भल रहनी,
ज्वनिम हमेशा याद रहनी,
कतु ले हम ठूल हजु,
पर उन दिना कभे नि भुलनी,
कनम किताबू बोझ धरी बे,
स्कूली वर्दिम दौड़ लगाने,
हसने, खेलने, बात घटु मजी,
ढुंग ल्फाव्ने क्रिकेत खेलने,
या कभे जन्गाऊ में लुका छिपी खेलने,
पुजी जंछी स्कूल माँ,
स्कूल घंटी ले तब याद धारम बे सुनुछी,
तब हम आपण समय अंदाज लगुछी,
स्कूल छुट्टी ले समय पत नि रहंची,
स्कूल श्यो देखि बे अंदाज लगुछी,
वर्दिम ले उ बखत टाल रहन्छी,
ख्वारम ले भरी भरी तेल लगुन्छी,
न जाने कब हम जवान ह्वेगु,
पुराण दिनु के भूली नि सकुन,
आपण बखत के यादी करिबे ,
आज पर्देशम हरे सा गोयु,

Vivek Patwal

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"फ्योंलि"
फागुण बितिक चैत ऐगि...पहाड़ मां "फ्योंलि" अपणा मैत आयिं होलि. परदेस मां कखन देखण प्यारी फ्योंलि.

"फ्योंलि"

फागुण मैना फ्योंलि फूलिं,
अयिं छ अपणा मैत,
फुलारी वींतै घौर ल्हिजाणि,
लगिगी मैनि चैत.

पय्याँ बिचारू झक्क फुल्युं छ,
हेन्न लग्युं छ फ्योंलि,
पिंगळा रंग मां रंगि फ्योंलि,
लगणी जन ब्योलि.

साख्यौं बिटि प्यारा पहाड़,
औन्दि जान्दि फ्योंलि,
पाख्यौं पिंगळि बणिक बैठि,
लग्दि जन हो ब्योलि.

बिना फ्योंलि का प्यारा पहाड़,
ऐ नि सकदु मौळ्यार,
फुलारी दैळ्यौं मां फ्योंलि चढ़ौन्दि,
ज्व फैलौन्दी छ प्यार.


(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(17.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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द भै, ब्वारी क्य बोन तब !
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी
जन क्वी झंगोरा बीच कौणी, अर् बांदरवा बीच गोणी

तडतडी च नाक व्विंकी इन, जन दाथडे चोंच होंदी
अर् चौन्ठी पर तिल इनु जन क्वी मोटी कौंच होंदी,

हैंस्दी मुखडी विंकी इन दिखेंदी जन्बुले, हो रोंणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

बोल्दी दा इन छुट्दन तैन्का गिच्चा बिटिक बोल
मंडाण मा कखी बजणु हो जन क्वी फुट्यु ढोल

जब देख नलका परै, मुख् ही रान्दि धोणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

सेडी सुर्म्याली आंखी रंदीन तैंकी, गीत क्वी सुणाणी
सोच्दु भी रन्दु कि रैली किलै, खोपडी बबै खजाणी,

जन तव्वा कु थौरु होन्दु, इनी हाथी गौणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

-गोदियाल

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"रामी".....(बलदेव प्रसाद "दीन")

बाटा गोड़ाई क्या तेरो नौ छ,
बोल बौराणी कख तेरु गौं छ.

बटोई जोगी न पूछ मैकु,
केकु पूछ्दी क्या चैंदु त्वैकू.

रौतु की बेटी छौं रामी नौं छ,
सेटु की छौं पाली गौं छ.

मेरा स्वामी न मैं छोड्यों पर,
निर्दयी ह्वैगिन मैंई फर.

ज्यूंरा का घर नि मैकु,
स्वामी विछोह होयुं छ जैंकू.

रामी तीन स्वामी याद ऐगि,
हाथ कुटली छूटण लैगि.

"चल बौराणी छैलु बैठी जौला,
अपणी खैरि वखिमु लौला".

"जा जोगी अपणा बाठ लाग,
मेरा शरील न लगौ आग.

जोगी ह्वैक भी आंखी नि खुली,
छैलु बैठली तेरी दीदी भूली.

बौराणी गाळी नि देणी भौत,
कख रंदु गौं कु सप्रणौ रौत.

जोगिन गौं माँ अलेक लाई,
भूकू छौं भोजन देवा माई.

बुडड़ी माई तैं दया ऐगी,
खेतु सी ब्वारी बुलौण लैगि.

घौर औ ब्वारी तू झट्ट कैक,
घौर मू भूकू छ साधू एक.

सासू जी वैकु बुलाई रौल,
ये जोगी लगिगे आज बौळ.

ये जोगी कु नि पकौंदु रोटी,
गाळी दिन्यन ये खोटी खोटी.

ये पापी जोगी कु आराम निछ,
केकु तैं आई हमारा बीच.

अपणी ब्वारी समझोऊ माई,
भूकू छौं भात बणावा जाई.

रामी रूसाड़ु सुल्गौण लैगि,
स्वामी की याद तैं औण लैगि.

माळु का पात मा धरि भात,
मैं तेरा भात नि लंदु हाथ.

रामी की स्वामी की थाळी मांज,
भात दे रोटी मैं खौलू आज.

खांदी छैं जोगी त खाई ल्हेदि,
नि खान्दू जोगी त जाई ल्हेदि.

बतेरा जोगी झोलियों ल्ह्यीक,
रोजाना घूमिक नि पौन्दा भीक.

जोगिन आख़िर भेद खोली,
बुढड़ी माई से यनु बोली.

मैं छौं माता तुमारु जायो,
आज नौ साल से घर आयो.

बेटा को माता भेटण लैगि,
रामी का मन दुविधा ह्वैगी.

सेयुं का सेर अब बीजी गैगी,
गात को खारू अब धोण लैगि.

पतिवर्ता नारी विस्मय ह्वैगी,
स्वामी का चरणु मा पड़ी गैगी.

वर्सू की खुद लगीं छ रामी,
आंख्यों की रोई नि सकी थामी।

 

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