Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 135027 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
6 hrs
कुमाऊँ क्षेत्र की एक होली ....
मत जा हो पिया होरी आई रही , मत जा हो पिया होरी आई रही ..
आई रही ऋतु जाई रही , मत जा हो पिया .....
पाँव पड़ूँगी हाथ जोड़ूँगी
बाँह पकड़ के मनाय रही मत जा हो पिया ....
आगे सजना पीछे सजनी
पाँव में पाँव मिलाय रही , मत जा हो पिया ...
जिनके पिया परदेश बसत हैं
उनकी नारी सोच मरी मत जा हो पिया ....
जिन के पिया नित घर में बसत हैं
उन की नारी रंग भरी मत जा हो पिया ...
मत जा हो पिया होरी आई रही मत जा हो पिया होरा आई रही ...
...... शुभकामनाएं ! ज्ञान पंत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
 
जिम कार्बेट पार्काक् शेर .......
होलि ऐ गे
होलि ऐ गे
चेलि है ज्वान
" इज " है गे ।
बखत् भै
होयिन 'क
रंग ले
फिक भै ।
होयिन् में
पुलिस ज्यादे
मनखी
कम !
रंग ....
नेता बान न्है गियीं बान -- हिस्से में
म्यार् हा्थ त
" इन्द्रैणि " लागी । इन्द्रैणी -- इन्द्रधनुष
होयिन् में
होलार
काम - काज' न में
गिदार और
रिस्यार .....
छियूल
ल्ही बेरि ले
देखां न हुँन । ज्ञान पंत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
February 23 at 8:56am ·
जिम कार्बेट पार्काक् शेर .....
वोट में ले
खोट छ ....
फतोड़
नेता'क है रौ ।
पाँच - पाँच
साल 'क मियाद में
के होवौ
नि होवौ
दुन्नी त .....
" नटींण " लागि रै ।
तु
के नि भये
फिर ले
नेता बँणि गिये !
कै
वोट करुँ
सोचणैं में
रयूँ ।
चु-नाव में
जनता
नाव
डुबि जाणै । ज्ञान पंत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 28 at 11:24pm ·
जिंदगी का रंग अनेक,हिटणु त आराम कभी।
सोचदु मनखी बैठी,रालु इनु वक्त सदनी कभी।
ना ना सोच ना इनु,जग्वाल सुबेरा कैर अभी।
नई मंजिल जग्वाल कनी,बाटु लम्बु च अभी।
ले ले स्वांस फुर्सत की,मिललु इनु कभि कभी।
दूर बाटु बटोई त्वे कु,वक्त मिललु कभि कभी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 28 at 9:15am ·
सौ बिमरयों की च, बणी मि खुड़ी ए दवै एक।
मिलि जुली सुड़कांदा हम,जब भ्वरिंद चिलम एक।
थकान मिटांदी मेरी,सारू च बुढापा म सोड़ एक।
पर टक लगै सुण्या,आदत भि बणदी चिलम एक।
नयु वक्त का दगड़्यो,अब ए बिमारी जड़ अनेक।
वर्जित रैंण भै ए सी,अतकाल म्वरी ए पे कई एक।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
गितारो कु गीत,छै कवियों की कविताआश।
नौन्यालु खुड़ि खेल,पात घस्यर्यो कु घास।
कल्पना प्रेमि की, त्वे जनि बांद की आश।
लगदी लटल्यो त,बणदी चकड़ेतो की फांस।
फंसेदी कोल्हु बीच,बणदी भै स्वाद सी रस।
गुण देखी त्यारा,खुश विदेशी हे फूल बुरांस।

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Darsansingh Rawat
Yesterday at 8:24am ·
उम्र साठ मात की च, जज्बा तीस तैल कु।
कमाल च भै यु,हमरा पहाड़ों की रौनक कु।
खाणु पीणु च ठिक, हां दगड़ु च प्रकृति कु।
कोदा रोटि कपुलु,पाणी बांजा जैड़्यु कु।
उंद उभ आणु जाणु, फल च यु हिटणा कु।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 27 at 5:22am ·
छोडणा जै कला थै,पाणी मान विदेश्यो सी।
ताल भै नि मिल॔दी,कखि भी अपणा ढोल सी।
दौ दिवतो रिझांदी,भला काम बजदी शान सी।
पवित्र वाद्य च हमारू,नौबत लगांदी तान सी।
सिखणु ढोल सागर,पाणु आत्मिक शान्ति सी।
कभि कभि घमकी बतौंद,छौ यखी शान सी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 25 at 9:33am ·

रैंदा गाँव गल्याऊ त, लगांदा कछड़ी हम।
कभि गोरो कु पिछने,त कभि फांग्यो में हम।
बगीचा में बैठी,समस्याओं पर बच्याणा हम।
होली कि गांणी पूरी,जौंला फिरि पहाड़ों हम।
बड़ौला दिन क्या ,हिटुला गल्याऊ बाटो हम।
होलु वी कलबलाट, पंध्यरो की छ्वी में हम।
बाग बट्टा पिट्ठू कंचा, त गुच्छी खेलुला हम।
सरका दौड़ म अगनै, छोड़ी ग्यो पहाड़ हम।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 24 at 10:15am ·
यू ऑख्योन क्या नि देखी,सोलह वर्षी शासन देखी।
मुख्यमंत्रीयो की मनमानी, लगातार होंदु पलायन देखी।
बदलेंदा शासन शासक, मुख्यमंत्री बदलेंदा देखी।
चुनाव पर चुनाव देखी त,दल बदल की बहार देखी।
नि देखी विकास नि देखी,पहाड़ो की बदली दशा नि देखी।
नि देखी रूकदा मनखी,क्वी बौड़ैन्दा पहाड़ों म नि देखी।

 

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