दिदाओ... प्रणाम...
आज फिर आपकी सेवा में एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।
रचना का शीर्षक है ----- "दीदी - जीजा की जंग "
दगड्यों मेरी यह रचना महान साहित्यकार, तथा मेरे गिच्चुबोले जीजा श्री डी.डी.सुन्दरियाळ जी को समर्पित है।
दीदी - जीजा की जंग
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एक हमारे जीजाजी , दीदीजी के संग ।
जीजाजी की नाक पे, दीदीजी के नंग ।।
जीजा जुवा खेल कै आया घर की ठौर ।
दीदी की नजरें बढी़ं, तुरत चप्पल की ओर ।।
घर में पहुंचे जीजाजी, दीदी मांगे हिसाब ।
जीजा चुप ह्वै बैठिये, कुछ ना देत जबाब ।।
दीदीजी के सामने , जीजाजी की टंट ।
जैसे गुरा को देखकै , चिलगट होवै संट ।।
किचन में जीजा करे, भांडौं का खिबडा़ट ।
दीदी देखे सीरियल , जीजा करे छिबडा़ट ।।
बाथरूम में जीजाजी, पव्वा पीने जांय ।
फौरन उसके बाद में , लासण प्याज चपाय ।।
दीदीजी के पास में, जीजाजी का पास ।
दीदी सूंघे गिच्चु को, जीजा रोके साँस ।।
बेलण दीदी घुमाय कै , ऐसो कियो बबाल ।
जीजाजी के कपाळ में, अल्लू दिये निकाळ ।।
दीदीजी के हाथ में , डी.डी. टी. का पम्प ।
जीजाजी लेते रहें , उप्पन जैसे जम्प ।।
जीजाजी के चुप्फे को, ऐसे देत रिटाय ।
जैसे डलेबर मोड़ पे, हैंडल देत घुमाय ।।
बात न माने जीजाजी , ऐसो करत उपाय ।
जैसे कुरंगुुळु मोळ का, बुज्या दियो चुटाय ।।
ज्यों ज्यों दीदी नजर की, टिकट्वंटी छड़काय ।
झौड़ू जैसे जीजा का खड़घुंजा ह्वै जाय ।।
जीजा अद्दाराति मा , भ्याळुंद मरने जाय ।
भैर अंधेरा देख कै, टौर्च मांगने आय ।।
दाँत तोड़ने दीदीजी , जीजाजी फर जाँय ।
खळम निखोळे जीजाजी, नकली दांत लुकाय ।।
कुछ दिन कुट्टी हो चली, कुछ दिन बात न होय ।
जीजा अपने हाल पे , ढाडू जैसा रोय ।।
Copyright. Harish Juyal Kutaj