Mahendra Thakurathi
August 30 at 5:09pm
द्वि हात बिणाई छाजि रैछ त्यरा,
ओ माता सरस्वती तेरि जैजैकारा।
एक हात पुस्तक एक हात जपमाला,
हंसै कि सवारी तेरि जैजैकारा......।।
क्वै कूनी वाग्देवी क्वै कूनी शतरूपा,
कतुक नौं छन हे जननी त्यरा.....।
भारती, वाणी, वीणावादिनी छै,
हंसवाहिनी, वागेश्वरी, शारदा.....।।
काणों कें साण बणूनै कि शक्ति छै,
साहित्य, संगीत, कला कि देवि छै।
करँछै सबूँक दिलों में उज्याव,
अज्ञानैक अन्यार बै मुक्ति दिछै।।
सदबुद्धि, सन्मति दिबे मनखि कणी,
खोलँछै कपाई गुरु रूप बणी......।
पशु जास मनखी कणि ज्ञान दिबे,
धरँछै वीक नौं सारी दुनीं मणी.....।।
कालिदास, वरदज्यूक आँखी खोली,
उनूकें बणाई महाज्ञानी त्वीले........।
बोपदेवज्यू कि मंदबुद्धि हरी,
खोली ज्ञानैक द्वार हे माता त्वीले....।।
आपणा बिणाई तार झनझनै बे,
भारत भूमि बै अज्ञान भजै दे.....।
मनखीक भितेर शक्ति कें जगैदे,
मुलुकम अमन-चैन तु फैलैदे.....।।