Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382429 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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विनोद भगत 'आंगिरस'
 
-नानतिन रुनैरि -
नानतिन रुनैरि ,
ख्यत में जानवार उज्याड खां रई ,
ऊ दूकान में ताश में मस्त हैरी ,
ब्याव कै शराब चै ,
बादम ढाढ़ मारनी ,
हमर गौ में के नि हुन ,
भौतें दुखी छु हौ दाज्यू ,
अब दिल्ली जानु भागि ,
घर बार छोडिबेर ,
दुसरे कि चाकरी करुल ,
अपन घर नि कमें सक ,
जमींदार ह्वेबेर नौकर बन जनु
विनोद भगत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jogasingh Kaira
 
1 डबला तीनें पाइ।
2 पाइ में दै खाय ।
3 टुटी खाटक पाइ।
4 पाइ लगाओ ज्योड़ बटो।
5 कैले पाइ कैले हराय ।
6 वाक्यक आखिर में पाइ औछ।
7 चौपाइ
8 चारपाइ
9 कपाइ
10 छपाइ
'पाइ' शब्द कां कां गलत लीखि रो
सही शब्द के हल वीक जागम ।।
पाई, पाय, पाइ , पायी या कुछ और।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Lalit Rajwad
 
एक पैलाग तो तिग ले हो सीसूड देव, हर पहाड़ीक सबु हबे ठुल गुरु तू छे,
त्यार आघिल भल भल नानतींना पाड़ी मांगनी,
बिगड़ी हबे बिगड़ी नानतिन ले सुधर जानी,
तुमर तो नाम काफी होये काम करहु ते, पढू ते
मी तो आज ले काँप कॉपी जानू बस तुमर नाम ले...
तुम धन्य हो सिसोड देव... पहाड़ी नानतींना लिजी तुमु हबे ठूल गुरु कोई नेहे...
जय जय गुरु सीसोड देव ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
शुभकामना शिक्षकों थै, दिन तुमरू च आज।
समाज व्यक्तित्व बनाणो,भूमिका च बेआवाज।
ब्वे बाब पिछने गुरू अगनै, पुरणु भै यु रिवाज।
बदलेंणु वक्त दगड़ी,ललकार च तुमखणि आज।
मनखी न म्वरि मिटि जाण, नि मिटेन्दु समाज।
चरित्रवान विघार्थी सी,तुमन भलु बनाण समाज।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"जिंदगी"
भादो का भदौड़ा बाण जसि ह्वेगे जिंदगी,
बसग्यळ्या छुयोँ सि अब सुखण लैगे जिंदगी।
खेड़-पात जम्यों छौ जु सौंण-भादो का बरखों म सुखण लैगे,
बस ठंगरा म लटकीं पिंगलिं लगुली सि यखुलि रैगे जिंदगी।।
न हो निराश, बांधी ले आस,
माधो सिंह को वंशज छै,
कमर-कसकै की रख,
तेरी हिकमत बंधण की देर च।
बसग्यळ्या छौया त रूड़ी का,
घामों म भी कदगे फोड़ी दैली तू ,
बस त्वेथें अर्जुन जसि 'गांडीव' धारण करणे देर च।।
.......©®
रमाकान्त ध्यानी"आरके"
ग्राम-गोम, नैनीडांडा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
September 1 at 8:47am ·
तकदु रोज हे विधाता, कनि रचना रचि त्वेन।
बंद द्वार लगी ताली, नि कैरी भै फिकर कैन।
नि सोचि इनु भी होलु,चौक तिबरि बणाई जैन।
तकदु रैंदु बाटु डांड्यो,पठ्ये होलु क्वी त कैन।
बढदी उमरी कु दगड़ी,मन म आश लगई मैन।
कभि ना कभि लेणो सुद,आण भै जरूर कैन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हेर
तुम इतगा आज किलै हैंसण छौ
कै पीड़ा थे तुम यन पिणा छौ
तुम इतगा किलै कि आज हैंसण छौ
कबरी बटिन तिल वै कि बाट हेरि.. २
वै बाटो मां क्दगा दिन भतेक कैल नि मार फेरी
कै पीड़ा थे तुम यन पिणा छौ
तुम इतगा किलै कि आज हैंसण छौ
कख औरृ कन तिल वै थे बल खोजण .. २
जो ईं माया दगड खुद बी हर्चिग्युं छ
कै पीड़ा थे तुम यन पिणा छौ
तुम इतगा किलै कि आज हैंसण छौ
हेर छ बल यख अब तेरु मुकदर .. २
हेर दगडी बल तुम अब बी हिटण जाण छौ
कै पीड़ा थे तुम यन पिणा छौ
तुम इतगा किलै कि आज हैंसण छौ
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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धौ
कख कख जाळी धौ
अग्ने पिछने आळी धौ
बथों स्वास फुलालि धौ
उजाडों थे सजालि धौ
ज्यूको धौंण जगालि धौ
गीत न्यो लगालि धौ
कुजानि कख भते आळी धौ
कुजानि कख जाळी धौ
बिंग लेदी वा मेर धौ
वा ह्वै जाळी अब तेर धौ
कख कख जाळी धौ
अग्ने पिछने आळी धौ
बालकृष्ण डी ध्यानी
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झंण किलैकि इन व्हाई
बारि बारि इन सोच्दु
झंण कया मि यख यखलू खोज्दू
कया चीज हर्चि छ मेरी
कैकि ह्वैली ऐ मां मरजी
खुद मां खुदेणु छौ मि
अफ दगडी ही खुचरेंडु छौ मि
खणिक देख्याली सरि धरती
अब बी खस्ताळ छौ मि
अब बी खोंकाल छौ हम
अब बी हम एक नि ह्वाई
एक बारि मशाल बलिछा बल
ऊ बी देख ब्यर्थ ही ग्याई
बारि बारि इन सोच्दु
झंण कया मि यख यखलू खोज्दू
नि उत्तर मि अब बी राई
झंण किलैकि इन व्हाई
बालकृष्ण डी ध्यानी
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गंगा बुलाये .....
गंगा बुलाये आ रे आ रे आ रे
छोड़ ना जा अब किसी और के सहारे
गंगा बुलाये आ रे आ रे आ रे
मन से मन की बात होगी
सुनो गंगा जी तब हमारे साथ होगी
बहने दो अविरल गंगा को तुम
कल-कल निर्मल उसे रहने दो तुम
भारत का अमूल्य दर्शन है वो
बहने दो पुण्य धारा जीवन रक्षण है वो
हरी के द्वार में वो गोते खाती
सारे पापों को वो बिमुख कर जाती
शिव जटा से उभरी है जो
भागीरथी के किनारे से गुजरी है जो
ऐसे ना उसे लुप्त होने दो तुम
माँ कहते हो तुम माँ उसे मानो तुम
गंगा बुलाये आ रे आ रे आ रे .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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