Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382429 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
September 24 at 4:14pm ·
बरखा च घनाघोर,कूड़ि पुरणि लगी चूण।
जगह ना हम घिनोड़्यो कु,न घार ना बूण।
धन्य भै सरकार खुणि,तार पौंचे गौं का कूण।
बिजली कु भरवस्सु ना,चौमास क्या हयूंद रूण।
बैठणा सज हम घिन्योड़्यू,बणि गे भै समलोण।
सारू लग्या हम भी,गौं कभि त मनख्यून बौड़ण।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
पाड़ अब पाड़ नि रैगि,
तख अब भौंकुछ ह्वेगि,
भैर का कुछ लोग तख,
कनु उत्पात छन मचौणा,
लाटा पाड़ मा जड़ जमौणा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
8/10/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
बेबस हूं आज,
कभी पहाड़ को,
कदमों से नापा था,
थक गया हूं,
अब तो हिम्मत नहीं होती....
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
7/10/17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
October 6 at 10:10pm ·
यूं ऊंचा ऊंचा डांडौ मा,
छैगि मन मा मौळ्यार,
कवि जिग़्यांसू छ्वीं लगौणा,
बामण भैजि दगड़ा हपार....
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिग्यांसू
6/10/17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
October 6 at 7:14am ·
देवभूमि मा.....
दिन दिन भौंकुछ होणु छ,
ज्यु छक्किक रोणु छ,
हम्न पाड़ फर पीठ लगैयालि,
तख भैर वाळौंन जड़ जमैयालि,
सुण्दा होला खबर आप पाड़ की,
पौड़ी, सतपुळि, कोटद्वार मा,
कनु उत्पात मचौणा सी कुकर्मी.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
6/10/17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dr-Anandi Joshi 
 
ऐ गो नजिक दुतियाक त्यार ।
हुन बै गईं च्यूड़ तैयार ।।
खाव में छू ढुङाक उखव ।
सालिक धान खैरौक मुसव ।।
बुड़ी आम भुटन लागि रईं ।
चेलि ब्वारी कुटन लागि रईं ।।
है रै दुहारि दमादम ।
बाजनईं चुड़ छमाछम ।।
नानतिन नजिक बै रईं ।
ढोलि घाण कुटन चै रईं ।।
है रै खाव में कसि बहार ।
ऐ गो नजिक दुतियाक त्यार ।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
October 25 at 7:53am
जिम कार्बेट पार्काक शेर .....
के लाछै
के ल्हीबेरि जालै रे
रनकारा .....
खाल्ली - खाल्ली
किलै
" तौया " ल्ही रौैछै ।
...................
ज्यादे
अतराट
भल नि हुँन ....
चौमासै - गाड़
रौड़
कयी जनेर भै ।
................
सोल सिंगार
करी बाद ले
का्व मूँख
कावै रै ग्यो .....
मैं
सोचणैं में छूँ !
..............
अच्छयान .....
स्यैंणि - बैग में ले
कंप्टीशन है रौ ....
तु ठुल
कि मैं ठुल .....
आजि तय नि है रौ ।
...............
लिपि - घोसी
मूँख .....
कैको ले हौओ ....
झिट घड़ि मैयी
देखां
है जनेर भै ।
..............
जनमबारा - दिन ले
" फू "
करौ बल .....
अंग्रेज राणौ
भल सिखै ग्यो हो
हमन कैं । ज्ञान पंत
के लाछै -- क्या लाए थे , तौया --- परेशान करना , रनकारा --- यहाँ पर शैतान के लिए हे , रौड़ -- नाला , लिपि घोसी --- बनावटी , झिट घड़ि -- जल्दी ही

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Manju Kandpal
1 hr
सुप्रभात सबनकूं ।
भौतै निसास लाग जां जब कभतै आपण घर पन जानु जब ... वाल बाखैयी पाल बाखैयी कूं देखि बेर डाड़ मारनै कूणै ....
कांहु गोन्हाल बुबु आमा , कांहु गोन्हाल भुलि ददा
य बाखैयी मारनै डाड़, बांज् पड़गेयीं म्यार पहाड़।
एक दिन यास् लै छि जब, छाज् बटिक ज्याड़ज धात लगूछि
एक दिन यास् लै छि जब, भकारक क्वाणन आम् भात पकूंछि
एक दिन यास् लै छि जब इज धान गोड़ि बेर ऊंछि
एक दिन भीजि बेर ऊंछि भौजि् , जब रौप लगूछि असाड़।
आब् क्वे न्हां .. य बाखैयी मारनै डाड़ ।
उ दिन लै याद छन जब फूलदेई खेलहुं जाछि
चावल और गुड़क बीच में चवन्नी डबल चांछि
बाखैयी मारनै डाड़ ..कूनै -मैसो तुम जांहु जाछा जाओ
पै कभतै साल में एक फ्यार म्यार् मुखधै लै आओ
भकार तुम कैं चै रौ , धुरिक् पाथर मारनैयी डाड़
बांज् पड़गेयीं म्यर पहाड़ ।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vinesh Tewari
November 3 at 10:51pm
'ढुँढते रै जाला'
बरातो मे रामढोल कै
भानकुना बै लागी झोल कै
गोर भैँसुक मोअ कै
फाटी खताङु खोअ कै
ढुँढते रै जाला,
पाथर वाल मकानु कै
कम रेट वाल दुकानु कै
लाखङा जगी आग कै
घरपना लागी साग कै
ढुँढते रै जाला,
ठेकी मे जमी दैः कै
बिना मतलबी भैँ कै
रैत मे डाली रै कै
च्यल जस ज्वै कै
ढुँढते रै जाला,
बुर्जुगू देयी ज्ञान कै
बिना पुतव लागी धान कै
आपूङ संस्कृती परीधान कै
बिना दारू पेयी जवान कै
ढुँढते रै जाला,
दुध की धार कै
मास्टर की मार कै
ईज बौज्यू दुलार कै
फुलो मे फूलार कै
ढुँढते रै जाला,
सच्च प्यार दगङ कै
भाई बैङियोक झगङ कै
सबु दगै टीबी देखङ कै
आमक किस्स कहानी सुङङ कै
ढुँढते रै जाला,
पहाङी गीतु मे धुन कै
मकान बै लागी चुन कै
नौला ठंड पाणी कै
ब्वारीयोक बुत धाङी कै
ढुँढते रै जाला,
लालटेन लैम्फ़ू उजीयाव कै
धान सुकङी बिसाव कै
माटक लीपी चुल कै
गौ घरो मे ठुल कै
ढुँढते रै जाला,
झोङा चाँचरी जस रीत कै
सच्च प्रेमी प्रीत कै
बेडु पाको जस गीत कै
बिना चालाकी जीत कै
ढुँढते रै जाला,
घट्टक पीसी अनाज कै
बरात मे छोलीया नाच कै
बिना दारु पेयी जगरी कै
पाणी भरी ताँमक गगरी कै
ढुँढते रै जाला,
बाट घाटु पैदल हिटङ कै
एक दुसरक दुखः देखङ कै
बिना गाई बातो कै
उ निडर रातो कै
ढुँढते रै जाला,
माँ बैङियूक सम्मान कै
सच्च बुलाङी इन्सान कै
रामी तीलु जस नारी कै
भक्ति भाव वाल पूजारी कै
ढुँढते रै जाला,
उत्तराखंड अभिमान वालो कै
बिना नकल इम्तहान वालो कै
आपङी प्यारी भाषा बोली कै
रंग गीतुक भरी होली कै
ढुँढते रै जाला,
आपूङ बार त्योहारो कै
आपङाक रन्त रैबारो कै
डाली मे घुघूती घुराङ कै
आपस मे पहाङी बुलाङ कै
ढुँढते रै जाला,
बङ बोटु मे घस्यारो कै
हरी भरी क्षयारो कै
नौ पाटे घाघरी कै
घाघरी पै लागी चैन कै
ढुँढते रै जाला,
ब्या बरातो काम काँज कै
चेलीया र्शम लाज कै
बोट बै लागी बाँज कै
ब्योली मिजाज कै
ढुँढते रै जाला,
रणशीग बीनबाज की तान कै
गौ विकास करनी पधान कै
ढोल दमो की आवाज कै
आपूङ रीती रिवाज कै
ढुँढते रै जाला,
हे इष्ट देव आओ
म्यर पहाङ कै बचाओ
देर जो तुम लगाला
ढुँढते रै जाला,
ढुँढते रै जाला. —
ढुँढते रै जाला,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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‎Surender Rawat‎ 
चार दिनकी जिंदगी छु , खाली परेशान ।
तु छै मेरि मै छु त्यर, बखत बेमान ।।
कानी मजी हाथ धरी, माठु माठु हिट ।
घर कणी भैंस ब्यै रौ, प्युंला दुधक छिट ।।
हिटो स्वामी लागी जूंला माठु माठु बाट ।
घर कणी बनै रयी, मनुवक रव्ट ।।
तल गड़ बुति आंला, रव्ट खै बै धान ।
तब तक मै माजी ल्यूंला, सारै जुठ भान ।।
नानतिना मस्त है री , परदेश पन ।
ब्याखुलि कबै बजार जूंला, खुंला चाहा बन ।।

 

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