Vinesh Tewari
November 3 at 10:51pm
'ढुँढते रै जाला'
बरातो मे रामढोल कै
भानकुना बै लागी झोल कै
गोर भैँसुक मोअ कै
फाटी खताङु खोअ कै
ढुँढते रै जाला,
पाथर वाल मकानु कै
कम रेट वाल दुकानु कै
लाखङा जगी आग कै
घरपना लागी साग कै
ढुँढते रै जाला,
ठेकी मे जमी दैः कै
बिना मतलबी भैँ कै
रैत मे डाली रै कै
च्यल जस ज्वै कै
ढुँढते रै जाला,
बुर्जुगू देयी ज्ञान कै
बिना पुतव लागी धान कै
आपूङ संस्कृती परीधान कै
बिना दारू पेयी जवान कै
ढुँढते रै जाला,
दुध की धार कै
मास्टर की मार कै
ईज बौज्यू दुलार कै
फुलो मे फूलार कै
ढुँढते रै जाला,
सच्च प्यार दगङ कै
भाई बैङियोक झगङ कै
सबु दगै टीबी देखङ कै
आमक किस्स कहानी सुङङ कै
ढुँढते रै जाला,
पहाङी गीतु मे धुन कै
मकान बै लागी चुन कै
नौला ठंड पाणी कै
ब्वारीयोक बुत धाङी कै
ढुँढते रै जाला,
लालटेन लैम्फ़ू उजीयाव कै
धान सुकङी बिसाव कै
माटक लीपी चुल कै
गौ घरो मे ठुल कै
ढुँढते रै जाला,
झोङा चाँचरी जस रीत कै
सच्च प्रेमी प्रीत कै
बेडु पाको जस गीत कै
बिना चालाकी जीत कै
ढुँढते रै जाला,
घट्टक पीसी अनाज कै
बरात मे छोलीया नाच कै
बिना दारु पेयी जगरी कै
पाणी भरी ताँमक गगरी कै
ढुँढते रै जाला,
बाट घाटु पैदल हिटङ कै
एक दुसरक दुखः देखङ कै
बिना गाई बातो कै
उ निडर रातो कै
ढुँढते रै जाला,
माँ बैङियूक सम्मान कै
सच्च बुलाङी इन्सान कै
रामी तीलु जस नारी कै
भक्ति भाव वाल पूजारी कै
ढुँढते रै जाला,
उत्तराखंड अभिमान वालो कै
बिना नकल इम्तहान वालो कै
आपङी प्यारी भाषा बोली कै
रंग गीतुक भरी होली कै
ढुँढते रै जाला,
आपूङ बार त्योहारो कै
आपङाक रन्त रैबारो कै
डाली मे घुघूती घुराङ कै
आपस मे पहाङी बुलाङ कै
ढुँढते रै जाला,
बङ बोटु मे घस्यारो कै
हरी भरी क्षयारो कै
नौ पाटे घाघरी कै
घाघरी पै लागी चैन कै
ढुँढते रै जाला,
ब्या बरातो काम काँज कै
चेलीया र्शम लाज कै
बोट बै लागी बाँज कै
ब्योली मिजाज कै
ढुँढते रै जाला,
रणशीग बीनबाज की तान कै
गौ विकास करनी पधान कै
ढोल दमो की आवाज कै
आपूङ रीती रिवाज कै
ढुँढते रै जाला,
हे इष्ट देव आओ
म्यर पहाङ कै बचाओ
देर जो तुम लगाला
ढुँढते रै जाला,
ढुँढते रै जाला. —
ढुँढते रै जाला,