सर्वप्रथम मैं आपको हिमालयी सरोकारों की प्रतिनिधि पत्रिका युगवाणी से परिचित कराता हूं, इसकी स्थापना १९४७ में आचार्य गोपेश्वर कोठियाल जी ने की थी, इस पत्रिका की स्पष्टवादिता और निर्भीक पत्रकारिता ने इसे टिहरी राजशाही के दौरान ban करवा दिया था। जिस व्यक्ति के पास यह पत्रिका मिलती थी, उसे सीधे जेल में डाल दिया जाता था।
जहां तक मेरा निजी अनुभव रहा है, सही मायने में उत्तराखण्ड की पीड़ा को समझने और अभिव्यक्त करने का कार्य वर्तमान में सिर्फ युगवाणी ही कर रही है, मेरा तो सभी सदस्यों को सुझाव है कि यदि किसी को करीब से उत्तराखण्ड को जानना है तो वह नियमित रुप से इसे पढे़।
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