Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94645 times)

dramanainital

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ek kumaoni geet jo record hona baki hai.

              हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
              सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
              वाँ चाओ कैसी है रै बहारा,
              बाट लागि छन यो नौला गध्यारा.
              लाल गाल ठुम्कि चाल.
              लाल गाल ठुम्कि चाल,
              म्यर कूमाऊँ का.
 
              हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
              सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
             
 
             कोयलै कूक और घूघुति पुकारा
             सुरीलि हवा में झूमनि द्योदारा
             सुर-ताल हाय कमाल,
             सुर ताल हाय कमाल,
             म्यर कूमाऊँ का.
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
             हिमाला का पाणी अम्रितै धारा,
             याँ धूप गुनगुनी छू ठन्डी बयारा,
             जो लै आल गीत गाल
             जो लै आल गीत गाल.
             म्यर कूमाऊँ का. 
             
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
 
             बुराँश फ़ुलि रूँ जस लाल अनारा,
             काफ़ला हिसालु की बात छु न्यारा,
             बाल बाल हाय बबाल,
             बाल बाल हाय बबाल.
             म्यर कूमाऊँ का.
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
             म्यर कूमाऊँ का.
             म्यर कूमाऊँ का.

             
 
   
 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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लो फिर आ गयी रिमझिम बरसात,
प्यासी धरती की बुझ सकेगी प्यास
घटाओ ने घेरा यूँ धरा को जैसे
आलिंगन कर रहा हो आकाश
तृप्त हो गयी वसुधरा
प्रफुल्लित मन हो उठा प्रिये
जाग गयी फिर मिलन की आश
फुहारों ने दिल को छुवा है
मन फिर से ब्याकुल हुवा है
कोयल जा सन्देश सुना दे
प्रीतम को इतना बता दे
कि प्रिय अभी ट्राफिक मैं फसा है
कीचड़ में लतपत हुवा है
महानगर में जाम लगा है
तुम खा पी कर सो जाना प्रिये
कब लौटे कुछ पता नहीं है
   

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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 क्या कविता लिखी है यार दाज्यू आपने..

तालिया- तड तड तड तड तड तड तड......

तरस रहे थे हम लोग इस बारिश के लिए...

पर एक बात ये जरुर है की नॉएडा मई क्यों नहीं हो रही है बारिश यहाँ तो धुप से सर फुट जा रहा है ... दिन में ...

लो फिर आ गयी रिमझिम बरसात,
प्यासी धरती की बुझ सकेगी प्यास
घटाओ ने घेरा यूँ धरा को जैसे
आलिंगन कर रहा हो आकाश
तृप्त हो गयी वसुधरा
प्रफुल्लित मन हो उठा प्रिये
जाग गयी फिर मिलन की आश
फुहारों ने दिल को छुवा है
मन फिर से ब्याकुल हुवा है
कोयल जा सन्देश सुना दे
प्रीतम को इतना बता दे
कि प्रिय अभी ट्राफिक मैं फसा है
कीचड़ में लतपत हुवा है
महानगर में जाम लगा है
तुम खा पी कर सो जाना प्रिये
कब लौटे कुछ पता नहीं है
   

Devbhoomi,Uttarakhand

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पाण्डेय जी आपका भी जबाब नहीं,क्या कविता है आपकी इस कविता को पड़कर गाँव की याद आ गयी !

हेम पन्त

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अरे वाह मजा आ गया.. कविता की शुरुआत में ऐसा लगा कि श्रृंगार रस की रोमांटिक कविता बन रही है, लेकिन अन्तिम पंक्तियों में कविता विरह रस का आनन्द दे गई.... शानदार कविता है गुरू...

लो फिर आ गयी रिमझिम बरसात,
प्यासी धरती की बुझ सकेगी प्यास
घटाओ ने घेरा यूँ धरा को जैसे
आलिंगन कर रहा हो आकाश
तृप्त हो गयी वसुधरा
प्रफुल्लित मन हो उठा प्रिये
जाग गयी फिर मिलन की आश
फुहारों ने दिल को छुवा है
मन फिर से ब्याकुल हुवा है
कोयल जा सन्देश सुना दे
प्रीतम को इतना बता दे
कि प्रिय अभी ट्राफिक मैं फसा है
कीचड़ में लतपत हुवा है
महानगर में जाम लगा है
तुम खा पी कर सो जाना प्रिये
कब लौटे कुछ पता नहीं है
   

दीपक पनेरू

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नई किरण
उठो चलो अब देर हो गयी,
दादी बोली पोती से I
ठंडे जल से मुंह धोया और,
पोछा अपनी धोती से II

खाना खाओ माँ बोली,
चलो तैयार अब होना है I
आया सावन लाया खुशहाली,
नई फसल अब बोना है II

दीदी बोली भय्या से,
स्कूल चलो अब जाना है I
वही बोझ भारी बस्ते का,
वही रिक्शे वाला नाना है II

स्कूल पहुँच तब छोटू बोला,
मजा बहुत अब आयेगा I
खेलूँगा नए दोस्तों संग,
ख़ुशी ख़ुशी दिन कट जायेगा II

स्कूलों मैं आई बहारें,
खिली हरियाली खेतों में I
"नई किरन" जब पड़ी पौंधों पर,
लगे चमकने, जैसे पानी रेतों में II

बदला रंग अब सारे घरों का,
मस्ती हो गयी दूर दूर I
ओ खेलने की हसरतें,
ओ नींद की मस्ती चूर चूर II

चलो चलें स्कूल पढ़े अब,
सपने करें पूरे अपने I
हसरतें अपनी सोची समझी,
माँ-बाप के अधूरे सपने II

दीपक पनेरू
एम० ए० एजूकेशन
मथेला सदन, तुलसी नगर,
पॉलीशीट, हल्द्वानी II
[/center][/center][/center]

हेम पन्त

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वाह दीपक भाई अच्छी कविता लिखी है.. कृपया अपनी अन्य कविताएं भी हमारे साथ बांटें... यदि आप कुमाऊंनी-गढवाली में कविताएं लिखते हैं तो उन्हें भी हमारे फोरम में लिख सकते हैं... लिखते रहिये

dramanainital

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नई किरण
उठो चलो अब देर हो गयी,
दादी बोली पोती से I
ठंडे जल से मुंह धोया और,
पोछा अपनी धोती से II

खाना खाओ माँ बोली,
चलो तैयार अब होना है I
आया सावन लाया खुशहाली,
नई फसल अब बोना है II

दीदी बोली भय्या से,
स्कूल चलो अब जाना है I
वही बोझ भारी बस्ते का,
वही रिक्शे वाला नाना है II

स्कूल पहुँच तब छोटू बोला,
मजा बहुत अब आयेगा I
खेलूँगा नए दोस्तों संग,
ख़ुशी ख़ुशी दिन कट जायेगा II

स्कूलों मैं आई बहारें,
खिली हरियाली खेतों में I
"नई किरन" जब पड़ी पौंधों पर,
लगे चमकने, जैसे पानी रेतों में II

बदला रंग अब सारे घरों का,
मस्ती हो गयी दूर दूर I
ओ खेलने की हसरतें,
ओ नींद की मस्ती चूर चूर II

चलो चलें स्कूल पढ़े अब,
सपने करें पूरे अपने I
हसरतें अपनी सोची समझी,
माँ-बाप के अधूरे सपने II

दीपक पनेरू
एम० ए० एजूकेशन
मथेला सदन, तुलसी नगर,
पॉलीशीट, हल्द्वानी II
[/center][/center][/center]

bahut khoob deepak bhai.kripaya likhate rahen post karte rahen.

Ramesh Singh Bora

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                                                  याद   
 
स्मृति पहाड़ की जगी सी रहती हैं
मन मैं एक याद  लगी सी रहती  हैं !
 
बर्फ की दूर पहाड़ो  मैं चादर ढकी सी मिलती  हैं
आधे डानो मैं धुप एक नई आस जगी सी दिखती हैं !
सुबह चिड़िया चू चू करती हैं
दोपहर धुप मैं घुघूती घू घू करती हैं !
सुबह पहली किरण मैं ओस की मोती बिखरती हैं
रात चादनी मैं भी निखरती हैं !
स्मृति पहाड़ की छल हर  पल करती हैं
ठंडी हवा मन शीतल करती हैं !
आँखों मैं हरियाली रहती हैं
मन मैं नदिया बहती हैं !
यादे बुराश सी खिलती हैं
लेकिन अब मुश्किल काफल और हिसोली सी लगती हैं !
स्मृति पहाड़ की जगी सी रहती हैं
मन मैं एक याद  लगी सी रहती  हैं ... मन मैं एक याद  लगी सी रहती  हैं ...
 
 
                                                                     -रमेश सिंह बोरा कौसानी अल्मोड़ा
 

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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हर्ष
यह गीत आपने लिखा है या किसी और ने कवि का नाम भी तो बताओ|

ek kumaoni geet jo record hona baki hai.

              हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
              सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
              वाँ चाओ कैसी है रै बहारा,
              बाट लागि छन यो नौला गध्यारा.
              लाल गाल ठुम्कि चाल.
              लाल गाल ठुम्कि चाल,
              म्यर कूमाऊँ का.
 
              हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
              सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
             
 
             कोयलै कूक और घूघुति पुकारा
             सुरीलि हवा में झूमनि द्योदारा
             सुर-ताल हाय कमाल,
             सुर ताल हाय कमाल,
             म्यर कूमाऊँ का.
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
             हिमाला का पाणी अम्रितै धारा,
             याँ धूप गुनगुनी छू ठन्डी बयारा,
             जो लै आल गीत गाल
             जो लै आल गीत गाल.
             म्यर कूमाऊँ का. 
             
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
 
             बुराँश फ़ुलि रूँ जस लाल अनारा,
             काफ़ला हिसालु की बात छु न्यारा,
             बाल बाल हाय बबाल,
             बाल बाल हाय बबाल.
             म्यर कूमाऊँ का.
 
             हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का,
             सीढीदारा खेत देखो म्यर गौं का.
 
             म्यर कूमाऊँ का.
             म्यर कूमाऊँ का.

             
 
   
 

 

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