Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94647 times)

दीपक पनेरू

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सावन की बूंदों से

रिमझिम रिमझिम वर्षा से,
जब तन मन भीगा जाता है,
राग अलग सा आता है मन मे,
और गीत नया बन जाता है I

कोशिश करता कोई शब्दों की,
कोई मन में ही गुनगुनाता है,
कोई लिए कलम और लिख डाले सब,
कोई भूल सा जाता है I

सावन का मन-भावन मौसम,
हर तन भीगा जाता है,
झींगुर, मेढक करते शोरगुल,
जो सावन गीत कहलाता है I

हरियाली से मन खुश होता,
तन को मिलती शीत बयार,
ख़ुशी ऐसी मिलती सबको,
जैसे मिल गया हो बिछड़ा यार I

गाड-गधेरे, नौले-धारे सब,
पानी से भर जाते है,
नदिया करती कल-कल,
और पंछी सुर में गाते है I

"सावन की बूंदों" का रस,
तन पर जब पड़ जाता है,
रोम -रोम खिल जाता है सबका,
स्वर्ग यही मिल जाता है I
दीपक पनेरू
मथेला सदन, तुलसी नगर,
पॉलीशीट, हल्द्वानी I
[/color][/size]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Execllent Deepak JI.

A very good poem..

सावन की बूंदों से

रिमझिम रिमझिम वर्षा से,
जब तन मन भीगा जाता है,
राग अलग सा आता है मन मे,
और गीत नया बन जाता है I

कोशिश करता कोई शब्दों की,
कोई मन में ही गुनगुनाता है,
कोई लिए कलम और लिख डाले सब,
कोई भूल सा जाता है I

सावन का मन-भावन मौसम,
हर तन भीगा जाता है,
झींगुर, मेढक करते शोरगुल,
जो सावन गीत कहलाता है I

हरियाली से मन खुश होता,
तन को मिलती शीत बयार,
ख़ुशी ऐसी मिलती सबको,
जैसे मिल गया हो बिछड़ा यार I

गाड-गधेरे, नौले-धारे सब,
पानी से भर जाते है,
नदिया करती कल-कल,
और पंछी सुर में गाते है I

"सावन की बूंदों" का रस,
तन पर जब पड़ जाता है,
रोम -रोम खिल जाता है सबका,
स्वर्ग यही मिल जाता है I
दीपक पनेरू
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दीपक पनेरू

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दोस्त कहें या भगवान

तुम्ही जीवन की पथ पथदर्शक,
तुम्ही हो जीने का आधार,
तुम्हारी छाया ही जीवन में,
बन गयी जीने का आसार.

मात पिता के प्यार का अहसास,
तुमने ही कराया है,
हे दोस्त मेरा जीवन अब तुम पर ही,
न्यौछावर होने आया है.

मैं काम, क्रोधी, लोभी ओ आलशी,
परिचायक इनका कहलाता था,
तुमने ही मेरे जीवन को इन तत्वों से,
अंधकार मुक्त कराया है.

चाँद के विलोम तुम सूरज जैसे,
पश्छिम कहें तो पूरब जैसे,
जिन पर तुम्हारी छाया है,
उन्होंने हर सुख पाया है.

सुख दुःख के साथी तुम हो,
तुम हो हर गुण का आधार,
तुमने ही इस मूरख को,
अतुलित दिया है प्यार.

प्रभु जैसे ही रूप में, मैं आपको,
ही देखते आया हूँ,
स्वीकार करो मेरी इस "दोस्ती" को,
मैं झोली फैलाकर लाया हूँ.

दीपक पनेरू
मथेला सदन, तुलशी नगर,
पॉलीशीट, हल्द्वानी.

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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दीपक जी बहुत खूब, अच्छी कवितायें लिखते हैं आप कृपया लिखते रहिये

दीपक पनेरू

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Thnak You Pandey ji aap itne achhe waqta hai aur itni achhi rachnaye karte aapka ye comments mere liye bahumulya hai......


Pawan Pahari/पवन पहाडी

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दोस्तों मैं कोई कवि तो हूँ नहीं, पर आप लोगो से प्रेरित होकर मेरा मन भी कविता करने लगा और मैंने सोचा की क्यों न मैं भी इस सावन के मौसम पर एक प्रयाश  करूँ.     
 
बारिश की बूँदें गिरने लगी,
मेरा ब्याकुल मन झूम उठा,
सोचा क्या ये सावन का सन्देश है,
या किसी के इंतजार मैं आखें छलक उठी,
  पहले तो कभी ऐसा न हुआ,
  मन इतना ब्याकुल न हुआ, 
क्या ये उसी सावन का सन्देश है,
  जिसका मुझे वर्षों से इंतज़ार था,
मेरी आँखे जिसके इंतज़ार मैं सूख गयी, 
सब कुछ वीरान सा हो गया,
  जिन्दगी बेरंग हो गई, 
पर इन बारिश की बूंदों से,
दिल मैं एक आस  जग गई, 
एक आवाज़ दिल से आई, 
ये वही सावन है, 
जो इस वीरान सी जिंदगी को रंगीन कर देगा,
इन सूनी आँखों मैं सपने भर देगा, 
चारो तरफ हरयाली ही हरयाली होगी, 
और इस जिंदगी का सूनापन खत्म होगा, 
अब मैं जान चुका हूँ ,
यही सावन है, 
यही सावन है, 
यही सावन है.

दीपक पनेरू

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चलता जा "राही "

पैर थके या तन जले,
तुझे तो चलते जाना है,
नयी पीढ़ी के लिए एक,
नया इतिहास लिखते जाना है.

तू दूर चला चल एक नजर,
जो तुझको देखे वही बोले,
तू कौन है और कहा है जाना,
ना कभी यह तो राज खोले.

बटरोही तू  बन जा पहचान,
ये धरा साथ तेरा निभायेगी,
होगा जब तू प्यासा इस सफ़र मैं,
आसमां से अमृत बरसायेगी.

मेहनत कर ऐसी चलने की,
जैसे चींटी करती मरने तक,
तू चलता जा बस चलता जा,
अंतिम साँस रहने तक.

"राही" तेरा काम है चलना,
जो थका वह हरा कहलाता है,
मैं क्या सारा जग ये जाने,
हारना तुझे नहीं आता है.

तेरे जख्मों को देखकर,
हर पत्थर दिल ये बोलेगा,
मैं भी तेरे साथ चलूँ,
और सारा जग संग हो-लेगा.

तू चलता जा बस चलता जा.

दीपक पनेरू
मथेला सदन, तुलसी  नगर,
पॉलीशीट, हल्द्वानी.

दीपक पनेरू

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Very Nice Poem Sir bahut Hi Achhe shabd bhav hai apke wah........ati sunder kripaya likhte rahiye sir.........


 
बारिश की बूँदें गिरने लगी,
मेरा ब्याकुल मन झूम उठा,
सोचा क्या ये सावन का सन्देश है,
या किसी के इंतजार मैं आखें छलक उठी,
  पहले तो कभी ऐसा न हुआ,
  मन इतना ब्याकुल न हुआ, 
क्या ये उसी सावन का सन्देश है,
  जिसका मुझे वर्षों से इंतज़ार था,
मेरी आँखे जिसके इंतज़ार मैं सूख गयी, 
सब कुछ वीरान सा हो गया,
  जिन्दगी बेरंग हो गई, 
पर इन बारिश की बूंदों से,
दिल मैं एक आस  जग गई, 
एक आवाज़ दिल से आई, 
ये वही सावन है, 
जो इस वीरान सी जिंदगी को रंगीन कर देगा,
इन सूनी आँखों मैं सपने भर देगा, 
चारो तरफ हरयाली ही हरयाली होगी, 
और इस जिंदगी का सूनापन खत्म होगा, 
अब मैं जान चुका हूँ ,
यही सावन है, 
यही सावन है, 
यही सावन है.
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत ही सुंदर कविताये है हमारे दीपक भाई के लिखे हुए ! अति सुंदर दीपक जी.



 

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