Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94644 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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दीपक जी आपने बहुत सुन्दर कविता लिखी है +१ कर्म आपके लिए.

धन्यवाद सर अगर करमा का हक़दार हूँ तो प्लीज मुझे जरुर करमा दीजियेगा.

दीपक पनेरू

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"मैं ठगा सा रह गया "


हाँ सोचा तो होगा मैंने भी की तुम,
आते तो जीवन मे,
कुछ नए पाठ लिख जाते,
कुछ नयी कहानिया बन जाती.
पर ऐसा हो ना सका,

ये मतलबी दुनिया और तुम,
कुछ नया न तुमसे पाया,
मैं सोचता रह गया,
जब ये ख़त तुम्हारा आया.

क़ि तुम मुझे अपना बनाना चाहते हो,
कुछ प्यार जताना चाहते हो,
मैं तो भोला पागल था,
जो झांसे मैं आ गया.

यही एक क्षण था जो,
जीना मुझे सिखा गया,
कुछ सोचा था मैंने भी क़ि,
दिन मैं ही सपने देख लिए.

फिर एक दिन तुम ये,
दुनिया छोड़कर किधर चली,
रहा इन्तजार करते मैं,
कूचे नुक्कड़ गली गली.

बस हुआ एहसास हाँ,
मैं भी ठगा सा रहा गया,
मैंने ज़माने से क़ि थी वफ़ा,
पर जमाना अपने हकीकत कह गया.

हाँ अब "मैं ठगा सा रहा गया",
बस ठगा सा रहा गया.
दीपक पनेरू
डालकंडिया ओखलकांडा,
नैनीताल.

दीपक पनेरू

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"माँ"

तेरे तन की मैली माटी,
लगे जीवन की सोंधी खुशबु,
माँ तेरे अहसानों का,
व्याखान मैं कैसे कर दू,

तू जीवन दाता है,
तेरे से सीखा हर एक ज्ञान,
मेरे लिए तू  जग हारी,
लोग क्या कहे इससे अंजान,

तेरी महानता का माँ,
ये जग क्या औरो को बताएगा,
जिसको हमने भगवान कहा,
ओ भी तेरी महानता कहा जान पायेगा.

तू जननीं, दुःख की गठरी,
क्या कहकर इतना उठाती है,
तेरे लिए कर दूं जीवन अर्पित,
ये भी नहीं कुछ काफी है,

जब मैं रोया रात रात भर,
तुने भी अपनी नींद गवाई माँ,
कैसे मैं दू तुमको वापस ओ दिन ,
तेरे लिए कुछ भी कर जाऊं माँ.

अपनी कृपा प्यारी बोली से,
तू आशीर्बाद सदा देती रहना,
तेरे अहसानों का कोई मोल नहीं,
बस मुझे है इतना कहना,


मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ इजुली वे.......

दीपक पनेरू
ड़ालकंडिया, ओखलकांडा,
नैनीताल.

धनेश कोठारी

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maan ke samman mein duniya ke sabhi shabdon ko bhi prayukt kar liya jay wah bhi kam hain, maan srishati ka sabase sundar ahasas hai.

dramanainital

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bahut badhiyaa baat hai paneru jee.
jaananaa chaho agar sabse keematee shai ko,
lagaa sab daanv par ek maa khareed kar dekho.

"माँ"

तेरे तन की मैली माटी,
लगे जीवन की सोंधी खुशबु,
माँ तेरे अहसानों का,
व्याखान मैं कैसे कर दू,

तू जीवन दाता है,
तेरे से सीखा हर एक ज्ञान,
मेरे लिए तू  जग हारी,
लोग क्या कहे इससे अंजान,

तेरी महानता का माँ,
ये जग क्या औरो को बताएगा,
जिसको हमने भगवान कहा,
ओ भी तेरी महानता कहा जान पायेगा.

तू जननीं, दुःख की गठरी,
क्या कहकर इतना उठाती है,
तेरे लिए कर दूं जीवन अर्पित,
ये भी नहीं कुछ काफी है,

जब मैं रोया रात रात भर,
तुने भी अपनी नींद गवाई माँ,
कैसे मैं दू तुमको वापस ओ दिन ,
तेरे लिए कुछ भी कर जाऊं माँ.

अपनी कृपा प्यारी बोली से,
तू आशीर्बाद सदा देती रहना,
तेरे अहसानों का कोई मोल नहीं,
बस मुझे है इतना कहना,


मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ इजुली वे.......

दीपक पनेरू
ड़ालकंडिया, ओखलकांडा,
नैनीताल.

dramanainital

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दोस्ती ख़त्म.
 
तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म.
 
 
जब भी दाद की आरज़ू में मैंने कोइ शेर पढ़ा ,
तुम और सभी लोगों की तरह खामखाँ हँसते रहे.
 
तुम्हारी ईमानदारी ने तुम्हारा हाजमा खराब किया है,
मेरा ज़रा सा झूठ तुम्हारे पेट में ऐंठन पैदा करता है.
 
तुम मेरे अहं की ज़रा सी भी परवाह नहीं करते हो,
मेरी मदद लेने में तुम्हारी खुद्दारी आड़े आ जाती है.
 
मैं सारा दिन जिन सुडोकू पहेलियों को सुलझाता हूँ,
उन्हें तुम बेदर्दी से वक़्त की बर्बादी करार देते हो.
 
मैं सुभीते के साथ अपने पिता के पैरों पर चलता हूँ,
तुम मुझे खुद के पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हो.
 
जो डिग्रियाँ मेरे बैठक की दीवरों पर शान से सजी हैं,
तुम जानते हो उन्हें मैंने किन तरकीबों से हासिल किया है.
 
मौका आने पर तुमने हमेशा नमकीन की पेशकश की,
असली मद का खर्च हमेशा मेरी ही जेब से हुआ.
 
इसलिये
 
तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म
 


दीपक पनेरू

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धन्यवाद धरम जी और कोठारी जी बस मेरे दिल ने जो सोचा उसे मैंने शब्दों के माध्यम से लिख दिया हां ये मैं जरुर कहना चाहूँगा, माँ का स्थान इस संसार मैं सबसे ऊपर है. aap logo ka sahyog aur utsah milta rahega mujhe ye assha karta hoon..............bus yunhi sath dete rahna..........

दीपक पनेरू

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बदलता समाज

ये युग कितना सफल रहा है,
आज जमाना बदल रहा है.

खेतों मैं खलिहानों में,
मॉडल के परिधानों में,
ये युग कितना सफल रहा है,
आज जमाना बदल रहा है.

यार दोस्त हजार चाहिए,
गाड़ी, बंगला, कार चाहिए,
एक नहीं दो चार चाहिए,
पता नहीं ये क्या चल रहा है,

ये युग कितना सफल रहा है,
आज जमाना बदल रहा है,

माँ-बाप की कदर नहीं है,
भाई-बहन की फिकर नहीं है,
कैसे रिश्ते, कैसे नाते,
पल-पल ये सब बदल रहा है,

ये युग कितना सफल रहा है,
आज जमाना बदल रहा है,

रिश्ते नाते, यारी टूटी,
दोस्त हो गए दूर-दूर,
हकीकत से हुआ सामना,
सपने हो गए चूर-चूर,

बिन आग के ये सब जल रहा है.

ये युग कितना सफल रहा है,
आज जमाना बदल रहा है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दो लाइन -

आज नो होल, भोल जरुर होल
म्यार राज्य भारत में नो १ होल

रेल होली, हवाई जहाज उड़ला
पहाड़ क डान-२ क विकास होल

पहाड़ क जवानी, पहाड़ पानी
पहाड़ क काम जरुर वाली

आज न तो भोल जरुर होल. .

सिर्फ एक परिकल्पना ......



दीपक पनेरू

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वाह मेहता जी मजा आ गया श्रीमान छोटी सी पंक्तियों में आपने सारा दर्द उड़ेल   दिया, जुग जुग जियो आपने मुझे फिर कुछ नया लिखने को मजबूर किया है, जल्दी   ही आपने भाव प्रकट करने की अनुमति चाहूँगा.

 

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