"माँ"
तेरे तन की मैली माटी,
लगे जीवन की सोंधी खुशबु,
माँ तेरे अहसानों का,
व्याखान मैं कैसे कर दू,
तू जीवन दाता है,
तेरे से सीखा हर एक ज्ञान,
मेरे लिए तू जग हारी,
लोग क्या कहे इससे अंजान,
तेरी महानता का माँ,
ये जग क्या औरो को बताएगा,
जिसको हमने भगवान कहा,
ओ भी तेरी महानता कहा जान पायेगा.
तू जननीं, दुःख की गठरी,
क्या कहकर इतना उठाती है,
तेरे लिए कर दूं जीवन अर्पित,
ये भी नहीं कुछ काफी है,
जब मैं रोया रात रात भर,
तुने भी अपनी नींद गवाई माँ,
कैसे मैं दू तुमको वापस ओ दिन ,
तेरे लिए कुछ भी कर जाऊं माँ.
अपनी कृपा प्यारी बोली से,
तू आशीर्बाद सदा देती रहना,
तेरे अहसानों का कोई मोल नहीं,
बस मुझे है इतना कहना,
मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ इजुली वे.......
दीपक पनेरू
ड़ालकंडिया, ओखलकांडा,
नैनीताल.