Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94630 times)

दीपक पनेरू

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दीपक पनेरू

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  •    
    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
    आपके कलम को क्या सूझी,
    मैं कहू आपसे बार-बार,
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
    आज आपको गुरु है माना,
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

     

सत्यदेव सिंह नेगी

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दीपक जी आपका जबाब नहीं, आप लाजबाब हैं ।
हम तो समझे थे आपको खिचड़ी, पर आप तो कबाब हैं ।
आपकी कविता हमारे भेजे में उतर गयी ।
पर ये महरी कविता के पर क़तर गयी।
हमरे लफ्ज पसंद न आयें तो गरमा न इएगा।
गुस्से में ही सही तो चार शेर फरमा इयेगा
जय हो
जय उत्तराखंड
जय भारत

  •    
    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
    आपके कलम को क्या सूझी,
    मैं कहू आपसे बार-बार,
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
    आज आपको गुरु है माना,
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

     

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
    आपके कलम को क्या सूझी,
    मैं कहू आपसे बार-बार,
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
    आज आपको गुरु है माना,
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

     
अनुज तुम्हारी कलम धरा पर
एक मशाल बन कर आयी है
हम भी कुछ सीखें इनसे
ये शब्द ह्रदय में उतर आये हैं
एकलब्य बनकर ज्ञान शाधा है
मुझे प्रतिमा मात्र बनाया है
शुभ कामनायें देते हैं दोस्त
कलम ऐसे ही चलती रहे
नाम रोशन करे तुम्हारा
मनोरंजन हमें मिलता रहे 
   

सत्यदेव सिंह नेगी

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     इस कवि पर कृपया तरस खाएं ।   तुम भि आवा मी भि औ
तुम भि बुलावा मी भि बुलौ
द्वी चार तुमारा द्वी चार म्यारा
कुछा ये पुन्गड़ कुछ वे स्यारा
जनि भि हो हमल ई करण
ये प्रोग्राम थै त सफल करण
आज वेकि बारि च भोल मेरी
यख नि हुंदी हेरा फेरी
कल्पना जी हमारी शान छी   अज्काल पर बीमार छी      भोल वू भि आला      ऐकेकी स्टेज समलला   

दीपक पनेरू

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नेगी जी आप तो कलम का,
इस्तेमाल करना जानते है,
गुरु तो हम दयाल जी को मान चुके,
आपको बड़ा भाई मानते है,

मैं शायर नहीं जो शेर करू,
बस कलम का हूँ पुजारी,
यही पर समाप्त करता हूँ,
चलो सुनें अब आपकी बारी,


दीपक जी आपका जबाब नहीं, आप लाजबाब हैं ।
हम तो समझे थे आपको खिचड़ी, पर आप तो कबाब हैं ।
आपकी कविता हमारे भेजे में उतर गयी ।
पर ये महरी कविता के पर क़तर गयी।
हमरे लफ्ज पसंद न आयें तो गरमा न इएगा।
गुस्से में ही सही तो चार शेर फरमा इयेगा
जय हो
जय उत्तराखंड
जय भारत

  •    
    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
    आपके कलम को क्या सूझी,
    मैं कहू आपसे बार-बार,
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
    आज आपको गुरु है माना,
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

     

दीपक पनेरू

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आपके हुनर का मैं कायल,
सारे पोर्टल को अब ज्ञात हुआ,
कहा एकलब्य कहा मैं,
मैं अनुज आपको थात कहा.

प्रतिमा चमकती है धोने से,
आपने ने सूरज का रूप है पाया,
क्या कहू इस छोटे मुह से,
शायद फिर ज्ञानेश्वर लौट आया.


  •    
    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
    आपके कलम को क्या सूझी,
    मैं कहू आपसे बार-बार,
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
    आज आपको गुरु है माना,
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

     
अनुज तुम्हारी कलम धरा पर
एक मशाल बन कर आयी है
हम भी कुछ सीखें इनसे
ये शब्द ह्रदय में उतर आये हैं
एकलब्य बनकर ज्ञान शाधा है
मुझे प्रतिमा मात्र बनाया है
शुभ कामनायें देते हैं दोस्त
कलम ऐसे ही चलती रहे
नाम रोशन करे तुम्हारा
मनोरंजन हमें मिलता रहे 
   

सत्यदेव सिंह नेगी

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दीपक जी दीपक जी कलम हमारी अभी नई है
इस्तेमाल नहीं अभी टेस्टिंग की गयी है
आप हमें भाई कहे बहुत बड़ी उपाधि दिए
हम खुस कम मायूस जियादा हुए
अब छोटे से ही ज्ञान लेंगे ये वचन दिए देते हैं
तुम दयाल जी को हम तुम्हे गुरु किये देते हैं
जो दयाल जी से मिले उसे हमें भी देते रहना   
मिल बाँट खाएं गुरु चेले इतना हमें है कहना


नेगी जी आप तो कलम का,
इस्तेमाल करना जानते है,
गुरु तो हम दयाल जी को मान चुके,
आपको बड़ा भाई मानते है,

मैं शायर नहीं जो शेर करू,
बस कलम का हूँ पुजारी,
यही पर समाप्त करता हूँ,
चलो सुनें अब आपकी बारी,


दीपक जी आपका जबाब नहीं, आप लाजबाब हैं ।
हम तो समझे थे आपको खिचड़ी, पर आप तो कबाब हैं ।
आपकी कविता हमारे भेजे में उतर गयी ।
पर ये महरी कविता के पर क़तर गयी।
हमरे लफ्ज पसंद न आयें तो गरमा न इएगा।
गुस्से में ही सही तो चार शेर फरमा इयेगा
जय हो
जय उत्तराखंड
जय भारत

 
  •      
    श्री दयाल पाण्डे जी को मेरी ओर से एक छोटी  सी भैट
       
    आपने अपने मस्तक पटल से,
      खोले है सबके  द्वार पाण्डे जी,
      दोस्त को तुमने  भाई कहा,
      और भाई को तुमने  यार पाण्डे जी,
     
      आपकी सोच कोमना  वेल्थ से,
      दिल्ली की तह तक जा पहुची,
     
    "कुंडलियाँ और "महगाई" भी,
     
    आपके कलम को क्या सूझी,
       
    मैं कहू आपसे बार-बार,
     
    "दयाल जी" आपसे ऐसे लिखते जाना,
     
    मैं तो कलम का चिर प्रतिद्वंदी,
     
    आज आपको गुरु है माना,
       
    बस लिखते जाना, बस लिखते जाना

दीपक पनेरू

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हाजिर जवाबी में तो आपका,
कोई सानी दूर तक नहीं दिखता है,
आपने हमको गुरु कहा,
क्या खूबी संग सम्मान भी बिकता है?
मायूस नहीं मैं आपको ,
दिल से खुश करना चाहूँगा,
कुछ समय तो मुझ नादान को आप,
मैं खुद आपसे मिलने आऊंगा.
हाँ ज्ञान दयाल जी से मिले जो ,
मैं आपको अवगत कराऊंगा,
अगर आप पहले पा गए उनसे जो,
फिर यही मैं आपसे चाहूँगा......

दीपक जी दीपक जी कलम हमारी अभी नई है
इस्तेमाल नहीं अभी टेस्टिंग की गयी है
आप हमें भाई कहे बहुत बड़ी उपाधि दिए
हम खुस कम मायूस जियादा हुए
अब छोटे से ही ज्ञान लेंगे ये वचन दिए देते हैं
तुम दयाल जी को हम तुम्हे गुरु किये देते हैं
जो दयाल जी से मिले उसे हमें भी देते रहना   
मिल बाँट खाएं गुरु चेले इतना हमें है कहना

सत्यदेव सिंह नेगी

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इसे न समझिये आप हमारी हाजिर जबाबी
संकोच हया में हमें दिखाती है बहुत खराबी
झुक कर जो भि मिले उठा लिया करते हैं
उठाये में भूल हो तो सुधार लिया करते हैं
वजह न बने हम किसी की बेबसी की मालिक
तेरे दर पे हरदम वजह बेवजह सर टिकाया करते हैं
न हो इस सर पर हमें अभिमान
इसीलिए अक्सर हम स्कूल चले जाया करते हैं

हाजिर जवाबी में तो आपका,
कोई सानी दूर तक नहीं दिखता है,
आपने हमको गुरु कहा,
क्या खूबी संग सम्मान भी बिकता है?
मायूस नहीं मैं आपको ,
दिल से खुश करना चाहूँगा,
कुछ समय तो मुझ नादान को आप,
मैं खुद आपसे मिलने आऊंगा.
हाँ ज्ञान दयाल जी से मिले जो ,
मैं आपको अवगत कराऊंगा,
अगर आप पहले पा गए उनसे जो,
फिर यही मैं आपसे चाहूँगा......

दीपक जी दीपक जी कलम हमारी अभी नई है
इस्तेमाल नहीं अभी टेस्टिंग की गयी है
आप हमें भाई कहे बहुत बड़ी उपाधि दिए
हम खुस कम मायूस जियादा हुए
अब छोटे से ही ज्ञान लेंगे ये वचन दिए देते हैं
तुम दयाल जी को हम तुम्हे गुरु किये देते हैं
जो दयाल जी से मिले उसे हमें भी देते रहना   
मिल बाँट खाएं गुरु चेले इतना हमें है कहना

 

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