हम तो समझ गए थे पहले ही,
ये जग को मुश्किल है समझाना,
आप पांच में तीन कहते हो,
अब तो पांच में एक का है जमाना,
लाइन लिखी गयी जिस बोली से,
कुछ कुछ याद आ गयी बचपन की,
जब मैडम होती थी लड़की,
अब तो ओ भी हो चली पचपन की,,,,,,
बिलकुल ठीक समझे श्रीमान, मैं भी निम्बू की बात कर रहा हूँ तरबूज की नहीं !
नीबू, वो भी पांच के तीन।
ये कौन से समय की लिखी गयी पंक्तियाँ है श्रीमान
अब तो नीबू पांच रुपये में एक आता है यार
मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।
चावल अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।
माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।
साथी ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय,
पैसा,रेजगारी गहि रहै, पैसा देय थमाय।
पैसा हाथन का मैल है, मत धरो मैल को पास,
कछु मनी माफ़िया ले गये,बाकी सट्टे में साफ़।