Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94617 times)

दीपक पनेरू

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ये कौन से समय की लिखी गयी पंक्तियाँ है श्रीमान

अब तो नीबू पांच रुपये में एक आता है यार

मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।


चावल  अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।


माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।


साथी ऐसा चाहिये,  जैसा सूप सुभाय,
पैसा,रेजगारी गहि रहै, पैसा देय थमाय।


पैसा हाथन का मैल है, मत धरो मैल को पास,
कछु मनी माफ़िया ले गये,बाकी सट्टे में साफ़।


 

Raje Singh Karakoti

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बिलकुल  ठीक समझे श्रीमान, मैं भी निम्बू की बात कर रहा हूँ तरबूज की नहीं !
नीबू, वो भी पांच के तीन।
 

ये कौन से समय की लिखी गयी पंक्तियाँ है श्रीमान

अब तो नीबू पांच रुपये में एक आता है यार

मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।


चावल  अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।


माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।


साथी ऐसा चाहिये,  जैसा सूप सुभाय,
पैसा,रेजगारी गहि रहै, पैसा देय थमाय।


पैसा हाथन का मैल है, मत धरो मैल को पास,
कछु मनी माफ़िया ले गये,बाकी सट्टे में साफ़।


 

दीपक पनेरू

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हम तो समझ गए थे पहले ही,
ये जग को मुश्किल है समझाना,
आप पांच में तीन कहते हो,
अब तो पांच में एक का है जमाना,
लाइन लिखी गयी जिस बोली से,
कुछ कुछ याद आ गयी बचपन की,
जब मैडम होती थी लड़की,
अब तो ओ भी हो चली पचपन की,,,,,,


बिलकुल  ठीक समझे श्रीमान, मैं भी निम्बू की बात कर रहा हूँ तरबूज की नहीं !
नीबू, वो भी पांच के तीन।
 

ये कौन से समय की लिखी गयी पंक्तियाँ है श्रीमान

अब तो नीबू पांच रुपये में एक आता है यार

मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन,
आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।


चावल  अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत,
इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।


माल गये थे देखने, सुमुखि सुन्दरी के नैन,
देखि समोसा बीस का, मुंह में घुली कुनैन।


साथी ऐसा चाहिये,  जैसा सूप सुभाय,
पैसा,रेजगारी गहि रहै, पैसा देय थमाय।


पैसा हाथन का मैल है, मत धरो मैल को पास,
कछु मनी माफ़िया ले गये,बाकी सट्टे में साफ़।


 

सत्यदेव सिंह नेगी

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देश और समाज की बात यहाँ हुई   
झंडे को लेकर भी यहाँ वहां हुई   
सबसे बड़ा मेरा देश और उसका झंडा 
न करोगे सम्मान तो पड़ेगा डंडा   
मा और देश के नाम पर मजाक नहीं   
सोचो सिपाही का जो सरहद पर है मजाक नहीं 
सोचो उस मा का जिसका बेटा हमारी आजादी की कीमत रहा चुका 
सर्द ठण्ड पर भी कम बेतन पर भी शांति की बात की कीमत रहा चुका   
आओ हम सब मिल अरे उस जवान की स्तुति   
जय जवान जय जवान करें दें एक प्रस्तुति

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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पचपन की उमर मे वो किसी की अम्मा तो किसी की दादी.
पचपन की उमर मे वो किसी की चाची तो किसी की भाभी.
बचपन क्यो याद दिलाया "दिपक", पल-पल हो जिसमे खुशहाली.
तीस मे आकर भुला था "सुन्दर", तुमने याद जला दी बचपन वाली.

तनहा इंसान 13-08-2010

दीपक पनेरू

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"सुंदर जी" क्या कहू बस, पल ही कुछ ऐसे आ गए,
उतरना था जिनको दिल की दीवारों में,
ओ केवल दिमाग में ही छा गए,
लगा कुरेदने कोई मेरे सूखे हुए जख्मों को,
फिर परबस ही ये शब्द दिल से जुबा,
और जुबा से कलम तक आ गए........

पचपन की उमर मे वो किसी की अम्मा तो किसी की दादी.
पचपन की उमर मे वो किसी की चाची तो किसी की भाभी.
बचपन क्यो याद दिलाया "दिपक", पल-पल हो जिसमे खुशहाली.
तीस मे आकर भुला था "सुन्दर", तुमने याद जला दी बचपन वाली.

तनहा इंसान 13-08-2010

सत्यदेव सिंह नेगी

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मेरे दोस्तों क्या उम्र उम्र लगा रखी है 
अब ये बोलो की क्या तुमने कभी चखी है 
चखी है कभी उम्र की मिठास या नमकीनी 
भूल जाओ नमक को भूल जाओ चीनी 
भौतिक चीजें और रासायनिक प्रभाव 
गिनते जाओ उम्र को तो बदलेगा स्वभाव 
नमकीन मीठी तक ठीक है नहो कुछ और 
मेरी बातों पर न करो अधिक गौर 
बातें तो बातें हैं होती ही रहेंगी 
आज न  खरीदोगे तो कल मिलगी महँगी 
महँगाई कब न थी कौन बताएगा 
तब क्यों नहीं जमा की ये कौन बताएगा

दीपक पनेरू

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जो ये सब दिख रहा है,
और हमारा कलम लिख रहा है,
ये सब उम्र का ही प्रभाव है,
समय के साथ स्वाद बदलना,
मनुष्य का स्वाभाव है,
होगी क्यों ना महगाईं,
गेहू जो सरकार सडा रही है,
पाटी मैं मालिक और गोठ में,
गाय अड़ा रही है,
बेजुमानो होकर सब समझदार है,
हम तो बिना खाए रह ना सके,
पर ये तो ओ भी करने को तैयार है.

मेरे दोस्तों क्या उम्र उम्र लगा रखी है 
अब ये बोलो की क्या तुमने कभी चखी है 
चखी है कभी उम्र की मिठास या नमकीनी 
भूल जाओ नमक को भूल जाओ चीनी 
भौतिक चीजें और रासायनिक प्रभाव 
गिनते जाओ उम्र को तो बदलेगा स्वभाव 
नमकीन मीठी तक ठीक है नहो कुछ और 
मेरी बातों पर न करो अधिक गौर 
बातें तो बातें हैं होती ही रहेंगी 
आज न  खरीदोगे तो कल मिलगी महँगी 
महँगाई कब न थी कौन बताएगा 
तब क्यों नहीं जमा की ये कौन बताएगा

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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"दिपक" अपने सुखे हुवे जख्मो पर,
"दिपक" की लौ मत लगने देना.
जख्म होते है यादो को जलाने के लिए.
यादे होती है जीवन को जीने के लिए.
लगे जब कुरेदने, जख्मे दर्द तुमहै.
मेरी साम ए महफिल मे गा कर देखना.


तनहा इंसान 13-08-2010

दीपक पनेरू

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"सुंदर जी" मैं वाकिफ हूँ,
इन शब्दों की क्या तारीफ करू,
हाँ अब तो कर देता हूँ वादा,
जीऊ यही और यही मरू,
जख्म तो मैं ढककर,
रखने लगा था पास अपने,
पर सोने नहीं देते है मुझे,
ये दिन में दिखने वाले सपने......

"दिपक" अपने सुखे हुवे जख्मो पर,
"दिपक" की लौ मत लगने देना.
जख्म होते है यादो को जलाने के लिए.
यादे होती है जीवन को जीने के लिए.
लगे जब कुरेदने, जख्मे दर्द तुमहै.
मेरी साम ए महफिल मे गा कर देखना.


तनहा इंसान 13-08-2010

 

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