Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94587 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
मत करो अपने मन को, गम से गमासार,
तनहा मागता है माफी, जोडकर दोनो हाथ,

क्यो सुनना चाहते हो राजे जी, तनहा की लाचारी.
ये तनहा छोड़ जो आया है, अपने प्यारे गांव, पहाड़.


तनहा इंसान 16-08-2010

Raje Singh Karakoti

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 477
  • Karma: +5/-0
नेगी जी सच कहूं तो आप भी नहीं हैं कुछ कम     कविता के इस महासमर के आप हैं छुपे रुस्तम !!     रहते हैं हरदम आप शब्दों के तीर यूं ताने      खाके चोट जिसकी लगे हर कोई बिलबिलाने !!     
सच में रोग है ये प्रेम ये मैंने आज जाना   
दोनों प्रेमियों में है कविता का खजाना   
एक दूजे को हिम्मत दे देख मै नादान सन्न   
लड़ते हो या खेल है ये या ये दोनों का फन 
चलता रहे तुम दोनों का ये फंसना फ़साना   
मुझे भी नित मिलता रहेगा नया अफसाना   
राजे सिंह जी बिच बिच में लगाके ठुमके   
मै भी सोचूं आयटम बॉय है इस क्रिकेट के


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
शब्दो के है तीर नुकिले बहुत, प्यारे सत्यदेव जी.
एक ही शब्द से भेद देते हो, कई शब्द सत्यदेव जी.

कहते है मे हु नौसिखिया कवि, हर बार सत्यदेव जी.
तुम्हारे लुभावने शब्दो से तो, खुश हो जाये इद्र देव भी.

तनहा इंसान 16-08-2010

दीपक पनेरू

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 281
  • Karma: +8/-0

"सुंदर जी" लो में फिर से आ गया,
पहाड़ो कि बात सुन मुझसे न रहा गया,
स्वर्ग कि आशा करे कोई तो,
उसे पता पहाड़ का देना,
घूस खोरी का जमाना है,
फिर भी आप कुछ मत लेना,
आपने कितने भावुक मन से,
इतना प्यार जताया है,
ये दो रोटी और पेट कि मार ने,
हमें पहाड़ से दूर भगाया है.....

लगे रहो बस लगे रहो.....


मत करो अपने मन को, गम से गमासार,
तनहा मागता है माफी, जोडकर दोनो हाथ,

क्यो सुनना चाहते हो राजे जी, तनहा की लाचारी.
ये तनहा छोड़ जो आया है, अपने प्यारे गांव, पहाड़.


तनहा इंसान 16-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
क्या तीर चलाया राजे जी, तुमने नेगी जी के शब्दो पर.
इंतजार करो थोडी देर, अभी जल्दी देगे वो तुमहै उत्तर.
तनहा इंसान 16-08-2010

दीपक पनेरू

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 281
  • Karma: +8/-0
क्या कहने "सत्य देव जी" के,
  ओ तो शब्दों का पिटारा है,
  समुंदर से भी गहरे ओ,
  हम तो समुंदर का किनारा है,
 
  "राजे जी" भी बीच बीच में,
  कुछ नया नया फरमाते है,
  में इनसे कुछ पूछता हूँ,
  क्या दिल कि लिखने में शर्माते है?
 
  दीपक पनेरू
  16 -08 -2010
 
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
पहाड़ सुना है हम सब बिन, दिपक जी,
गांव सुना लगता है, अपनो के बिन.

बीस दिन जब छुट्रटी जाता हु दिपक जी.
याद आ जाते है विताये, वहा पुराने दिन.

तनहा इंसान 16-08-2010

Raje Singh Karakoti

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 477
  • Karma: +5/-0
माना की शाम हो चली और तारे भी लगे टिमटिमाने पर तनहा जी मैं और नेगी जी आप की बातो में नहीं आने वाले !!   कोशिशें लाख कर लो , हम को भिड़ा न पाओगे हिमालय जैसी अटल यारी को यूं डिगा न पाओगे !!     
क्या तीर चलाया राजे जी, तुमने नेगी जी के शब्दो पर.
इंतजार करो थोडी देर, अभी जल्दी देगे वो तुमहै उत्तर.
तनहा इंसान 16-08-2010

सत्यदेव सिंह नेगी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 771
  • Karma: +5/-0

सुंदरजी आपका तरीका पसंद आया   
बच्चे के हाथ से कैसे ब्लेड छुड़ाया   
जानने लगा मै कि क्या है लिखना और क्या नहीं   
आप का सुक्रिया कैसे करूँ अदा पकड़ा सही   
राजे सिंह जी से करू हाथ जोड़ मै बिनती   
मेरी कोइ बुरी तमन्ना नहीं थी   
आजकल खेल का मिजाज ही है कैसा   
मैच भले न हो अच्छा मगर वसूलना है पैसा

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
दिल से बडे ही कठोर हो राजे तुम तो,
अच्छा लगा राजे, तुम्हारा लुभावनापन.

तनहा भी था कठोर, कभी बचपन मे,
पर माँ ने भर दिया "मुझमे" दुलारापन.

तनहा इंसान 16-08-2010

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22