Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94586 times)

दीपक पनेरू

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राजे जी आप नेगी जी के शब्दों को,
दिल से न लगाया करो इस आशा से,
ओ भी खूब परिचित होंगे शायद,
इस दोस्ती कि परिभाषा से,

हिमालय जैसे ये दोस्ती आपकी,
प्रभु करे सदा बनी रहे,
दोस्तों पर बरसे अमृत कि तरह,
दुश्मनों पर ये तलवार जैसी तानी रहे,

बातों में आप न आना किसी कि,
ये दिल से मैं कह जाता हूँ,
आप रहो जुगलबंदी मैं शामिल,
मैं घर जाकर कल आता हूँ......

दीपक पनेरू
16 -08 -2010

माना की शाम हो चली और तारे भी लगे टिमटिमाने पर तनहा जी मैं और नेगी जी आप की बातो में नहीं आने वाले !!   कोशिशें लाख कर लो , हम को भिड़ा न पाओगे हिमालय जैसी अटल यारी को यूं डिगा न पाओगे !!     
क्या तीर चलाया राजे जी, तुमने नेगी जी के शब्दो पर.
इंतजार करो थोडी देर, अभी जल्दी देगे वो तुमहै उत्तर.
तनहा इंसान 16-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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शाम सुहानी अजब निराली,गद-गद हो जाता है मन.
मेरा गांव, मेरा पहाड़, मेरा जीवन, मेरा तन और मन.
कहता है कुछ समहे-समहे सुभ संध्या मेरे उपवन


तनहा इंसान 16-08-2010

सत्यदेव सिंह नेगी

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याद आती है मेरे पहाड़ की मुझे तो हर रोज   
कठिन है वहां का जीवन फिर पर न लगे बोझ   
ठंडक हमेशा साथ निभाती न  कोइ कसरत उकल उन्धार   
सभी सगे साथी सभी अपने वहां कोइ इस धार कोइ उस धार   
अब तो गाँव गाँव सुन्दर सड़क भी आ गयी है निकट   
बूढ़े बीमारों की सेवा में करें उन्हें घुमाओ  सरपट   
फोन लगाओ जीप मांगो जब भी हो कहीं जाने का मन   
गाँव जाते रहो घुमो पहाडों पर न कोई अब अड़चन

सत्यदेव सिंह नेगी

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शुप्रभात है मेरा सभी कवियों को रहा बाट मै जोह
आओ फैलाओ प्रकाश कहा हो लेरहा मै सबकी टोह
राजे जी दीपक जी सुन्दर जी अति वीर
चलो मिलते हैं कभी लेलूं मै तुम सबकी तस्वीर

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                      "मेरा बचपन मेरी यांदै"

बचपन का जीवन ऐसा होता था, खुशियो का खजाना होता था,
चंदा मामा को पाने की चाहत. मन तितली का दिवाना होता था.

पता न होता सुबह का कुछ भी, न झुरपुट का ठिकाना होता था.
थकते हुवे स्कुल से आना, बस्ता फैंक, खेलने का मै दिवाना था.
 
अम्मा की कहानी लगती थी न्यारी, परियो की कहानी सुनाती थी.
बारिश मे किलकारीयां मारते भिगना, हर मौसम सुहाना लगता था.

हर पल-पल मै साथी होते थे, हर रिस्ता निभाना होता था.
गलती पर पापा की डांट, माता जी, का मनाना होता था.
 
बचपन मे गम की गिनती न आती थी, न जख्मो का पैमाना होता था.
रोने की आवाज, पल-पल होती थी, हंसने का बहाना, कोई न होता था.

अब नही रहा वो बचपन मेरा, जिसमे खुशियों का लगता, मेला था.
मिठी-मिठी यादै है, प्यारे वतन की, जिसकी मिट्रटी मे मै खेला था.

तनहा इंसान 16-08-2010


सत्यदेव सिंह नेगी

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सुंदरजी बचपन आपका रहा होगा हम तो अभी भी बच्चे हैं
उम्र की न लो टोह काम करम अर्जन में कच्चे हैं
शंका  और समस्या देख जो देखे पूरब पश्चिम
समझ लीजिये गया नहीं बचपन उसका पर जवानी अग्रिम
सारा  पहाड़ अभी है बच्चा न मास्टर कोई  हैं कहीं एक्का दुक्का
न समझो इस कविता को सामग्री ये है मौके पर चौका

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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सुरत मेरी क्यो कैद करते हो, सुरत खाली मेरी मुरत है.
मै तो हुआ तनहा इंसान, हमारी किसको, जरूरत है.

तनहा इसान 17-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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मै न समझु कविता को समाग्री, ये भावनाओ का झोलझाल है.
उम्र के साथ तनहा हो जाये बुढा, तो समझो सब, गोलमाल है.

तनहा इसान 17-08-2010

दीपक पनेरू

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कृपया इस सामग्री को कॉपी करने का प्रयास न करें, ये कविता श्री अमित शर्मा जी के कविता संग्रह "इन्तजार" से ली गयी है

    जो तैश में कर दे तर्रार,
        वो है इंतज़ार!

गर आने वाल हो महबूब...
        तो सुहाता है इंतज़ार!!

तन्हाई में भी अक्स उसी का,
        दिखलाता है इंतज़ार।

क्या होगा जब मिलेगी नज़र,
        सोचवाता है इंतज़ार।

पहला जुमला प्यार का
        कहलाता है इंतज़ार।

क्या रंग पहना होगा उसने,
        झलक दिखलाता है इंतज़ार।

किस इत्र का भाग्य जागा होगा आज,
        ये महकाता है इंतज़ार।

लबों की भीगी नमी का अहसास,
        कराता है इंतज़ार।

हो पल भर का विलम्ब उसके आने में,
        ...तो डराता है इंतज़ार।

रुस्वाई से बेवफ़ाई तक का मंज़र,
        दिखलाता है इंतज़ार।

वो ना मिली तो दोजख़ का शगल,
        महसूस कराता है इंतज़ार।

पर जब वो आती है,
        हर शुबह काफूर कराता है इंतज़ार।

उसके आने पर जो उठी है महक,
        उसका हकदार है इंतज़ार।

बार-बार जो होता है मोहब्बत का इक़रार
        उसके पीछे भी है वो लम्बा इंतज़ार।

इंतज़ार के इस काफिए में
        जो छिपा है वो है प्यार!

इंतज़ार की बेचैनी जो मिटा दे
        वो है प्यार!

इंतज़ार के इम्तेहान को सिखा दे
        वो है प्यार!

इंतज़ार का भी इंतज़ार करा दे
        वो है प्यार!

इंतज़ार से भी मोहब्बत करा दे
        वो है प्यार!

इंतज़ार में जीना सिखा दे
        वो है प्यार!

Raje Singh Karakoti

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 एक शेर तनहा जी की शान मे !! अर्ज़ किया है,   
 मैं न जानू की कौन हूँ मैं,
लोग कहते है सबसे जुदा हूँ मैं,
मैने तो प्यार सबसे किया,
पर न जाने कितनो ने धोखा दिया।

चलते चलते कितने ही अच्छे मिले,
जिनने बहुत प्यार दिया,
पर कुछ लोग समझ ना सके,
फिर भी मैने सबसे प्यार किया।

दोस्तो के खुशी से ही खुशी है,
तेरे गम से हम दुखी है,
तुम हंसो तो खुश हो जाऊंगा,
तेरे आँखो मे आँसु हो तो मनाऊंगा।

मेरे सपने बहुत बढे़ है,
पर अकेले है हम, अकेले है,
फिर भी चलता रहऊंगा,
मजिंल को पाकर रहऊंगा।

ये दुनिया बदल जाये पर कितनी भी,
पर मै न बदलऊंगा,
जो बदल गये वो दोस्त थे मेरे,
पर कोई ना पास है मेरे।

प्यार होता तो क्या बात होती,
कोई तो होगी कहीं न कहीं,
शायद तुम से अच्छी या,
कोई नहीं नही इस दुनिया मे तुम्हारे जैसी।

आसमान को देखा है मैने, मुझे जाना वहाँ है,
जमीन पर चलना नही, मुझे जाना वहाँ है,
पता है गिरकर टुट जाऊंगा, फिर उठने का विश्वास है
मै अलग बनकर दिखालाऊंगा।

पता नही ये रास्ते ले जाये कहाँ,
न जाने खत्म हो जाये, किस पल कहाँ,
फिर भी तुम सब के दिलो मे जिंदा रहऊंगा,
यादो मे सब की, याद आता रहऊंगा।
   
 
सुरत मेरी क्यो कैद करते हो, सुरत खाली मेरी मुरत है.
मै तो हुआ तनहा इंसान, हमारी किसको, जरूरत है.

तनहा इसान 17-08-2010

 

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