"मेरा बचपन मेरी यांदै"
बचपन का जीवन ऐसा होता था, खुशियो का खजाना होता था,
चंदा मामा को पाने की चाहत. मन तितली का दिवाना होता था.
पता न होता सुबह का कुछ भी, न झुरपुट का ठिकाना होता था.
थकते हुवे स्कुल से आना, बस्ता फैंक, खेलने का मै दिवाना था.
अम्मा की कहानी लगती थी न्यारी, परियो की कहानी सुनाती थी.
बारिश मे किलकारीयां मारते भिगना, हर मौसम सुहाना लगता था.
हर पल-पल मै साथी होते थे, हर रिस्ता निभाना होता था.
गलती पर पापा की डांट, माता जी, का मनाना होता था.
बचपन मे गम की गिनती न आती थी, न जख्मो का पैमाना होता था.
रोने की आवाज, पल-पल होती थी, हंसने का बहाना, कोई न होता था.
अब नही रहा वो बचपन मेरा, जिसमे खुशियों का लगता, मेला था.
मिठी-मिठी यादै है, प्यारे वतन की, जिसकी मिट्रटी मे मै खेला था.
तनहा इंसान 16-08-2010