Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94568 times)

Raje Singh Karakoti

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ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,

ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,

कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,

उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,

मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,

उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,

अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,

यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए!

Raje Singh Karakoti

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चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,

पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया,

जाग रही तो मैंने नए काम कर लिए,

ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया,

सूखा पुराना जख्म, नए को जगह मिली,

स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया,

आते न तुम तो क्यों मैं बनाती ये सीढ़ियाँ,

दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया

आँसू-सी माँ की गोद में आकर सिमट गयी,

नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया,

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर,

यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया,

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी,

यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

दीपक पनेरू

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"सत्यदेव जी" से कुछ न कहना,
  व्यंगो के तीर ओ रखते है,
  कहा चलाऊ और समय क्या हो,
  यही तो हर पल तकते है,
  शब्दों का पूरा ज्ञान उन्हें,
  किस पल किसको प्रयोग करें,
  मैं सदा रहता हूँ अनजान,
   तारीफ फोरम के लोग करें,
 

Raje Singh Karakoti

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ये तनहा इतना दुखी और परेशान क्यों है   अपनों के बीच में ही  अनजान  क्यों है तनहा  इतने गम खाए है क्या इसने ज़माने से   कि अपने भी लगने लगे है बेगाने से   गमो मे भी मुस्कुराना सीख ले तनहा   गैरो को भी अपना बनाना सीख ले तनहा   सारे गम तेरे दूर हो जायेंगे तनहा   बेगाने भी तेरे हो जायेंगे तनहा    
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

Raje Singh Karakoti

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ये तनहा इतना दुखी और परेशान क्यों है
  अपनों के बीच में ही  अनजान  क्यों है तनहा
इतने गम खाए है क्या इसने ज़माने से 
कि अपने भी लगने लगे है बेगाने से 
गमो मे भी मुस्कुराना सीख ले तनहा 
गैरो को भी अपना बनाना सीख ले तनहा 
सारे गम तेरे दूर हो जायेंगे तनहा 
बेगाने भी तेरे हो जायेंगे तनहा   
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

Raje Singh Karakoti

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ये तनहा इतना दुखी और परेशान क्यों है
 अपनों के बीच में ही  अनजान  क्यों है तनहा
इतने गम खाए है क्या इसने ज़माने से 
कि अपने भी लगने लगे है बेगाने से 
गमो मे भी मुस्कुराना सीख ले तनहा 
गैरो को भी अपना बनाना सीख ले तनहा 
सारे गम तेरे दूर हो जायेंगे तनहा 
बेगाने भी तेरे हो जायेंगे तनहा   
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010


दीपक पनेरू

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"तन्हा" न तन हा रहा करो,
बस दो दिन कि ये फ़साना है,
आज आप गाओगे फिर,
कल किसी और को गाना है,

बस नाम के जैसा सुंदर काम,
करते जाओ सुबह और शाम,
ख़ुशी ऐसे मिलेगी आपको,
जैसे मिल गए हों चारों धाम....

तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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सावन की रिम-झिम ने, मन भिगो दिया तनहा का.
गौरया की चिडिक़- चिडिक से नजारा बदल गया आंगन का.

तनहा के सभी प्यारे स्नेही मित्रो, मै तनहा हु बस भावो का.
रग-रग मे वो बसा पहाड़, याद दिलाता है आडु,बेडु धिंगारु का.

तनहा इंसान-17-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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आज घर मुझे जल्दी जाना है, विदा लेता हु आप से,
तनहा की महफिल दिवानी, कल आगाज कराउगा आप से.

अलविदा मित्रो कल फिर मिलंगे.
तनहा इंसान-17-08-2010

 

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