Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 94568 times)

Raje Singh Karakoti

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दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो
रात काली सही कोई गम न करो
एक सितारा बनो जगमगाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
फासले कम करो दिल मिलाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो..   
 
 
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

दीपक पनेरू

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राजे जी आपके शब्दों का जवाब नहीं बहुत अच्छा लिखा है आपने.......

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो
रात काली सही कोई गम न करो
एक सितारा बनो जगमगाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
फासले कम करो दिल मिलाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो..   
 
 
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

Raje Singh Karakoti

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   शुक्रिया दीपक जी इस होसला अफजाई का    बधाई आपको इस सौवी लिखाई का !     
राजे जी आपके शब्दों का जवाब नहीं बहुत अच्छा लिखा है आपने.......

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो
रात काली सही कोई गम न करो
एक सितारा बनो जगमगाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
फासले कम करो दिल मिलाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो..   
 
 
तनहा की मुस्कान दिपक जी,
दिखावे भर के लिए, मात्र है.
गमो का तो पहाड़ है तनहा.
मुस्कान छोड़ आया, गांव मे है,

तनहा इंसान-17-08-2010

Raje Singh Karakoti

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हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है
कभी धूप, कभी छाव, कभी बारिशों के संग देखे है

जैसे जैसे मौसम बदला लोगों के बदलते रंग देखे है

ये उन दिनों की बात है जब हम मायूस हो जाया करते थे
और अपनी मायूसियत का गीत लोगों को सुनाया करते थे

और कभी कभार तो ज़ज्बात मैं आकर आँसू भी बहाया करते थे
और लोग अक्सर हमारे आसुओं को देखकर हमारी हँसी उड़ाया करते थे

"अचानक ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया
और हमने अपनी परेशानियों को बताना ही छोड़ दिया"

अब तो दूसरों की जिंदगी मैं भी उम्मीद का बीज बो देते है
और खुद को कभी अगर रोना भी पड़े तो हस्ते हस्ते रो देते है

Raje Singh Karakoti

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शहर की इस दौड में दौड के करना क्या है?
अगर यही जीना हैं दोस्तों... तो फिर मरना क्या हैं?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िकर हैं......
भूल गये भींगते हुए टहलना क्या हैं.......
सीरियल के सारे किरदारो के हाल हैं मालुम......
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुरसत कहाँ हैं!!!!!!
अब रेत पर नंगे पैर टहलते क्यों नहीं........
१०८ चैनल हैं पर दिल बहलते क्यों नहीं!!!!!!!
इंटरनेट पे सारी दुनिया से तो टच में हैं.......
लेकिन पडोस में कौन रहता हैं जानते तक नहीं!!!!
मोबाईल, लैंडलाईन सब की भरमार हैं.........
लेकिन ज़िगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ हैं!!!!
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद हैं??????
कब जाना था वो शाम का गुजरना क्या हैं!!!!!!!
तो दोस्तो इस शहर की दौड में दौड के करना क्या हैं??????
अगर यही जीना हैं तो फिर मरना क्या हैं!!!!!!!!

Raje Singh Karakoti

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ऐ पतंग उड़ जा तुझे सन्देश मेरा लेकर जाना हँ,
सात समंदर पार हँ कोई, इसे वहां तक पहुँचाना हँ
चाहे कितनी ही बाधाएं बीच राह मैं तुमको आयें,
चाहे कितने चक्रवात भी बीच राह मैं तुम्हे डराए
मत होना तुम विचलित तुमको आगे ही बढ़ते जाना हँ,
सात समंदर पार हँ कोई, इसे वहां तक पहुँचाना हँ
कहना उसे छोर दूजे पर, ऐसे कई लोग रहते हैं,
जो हर पल हर उत्सव के दिन, याद तुम्हें जी भर करते हैं
छत पर बैठ पतंग देखना, याद तुम्हें भी आता होगा,
अपनों संग त्यौहार मनाना, आज भी तुम्हें भाता होगा,
जाने किस दिन तुम नन्हे संग, देश अपने वापिस आओगी
और बैठ कर साथ हमारे, खीच लापसी तुम खाओगी
जब वो तुमको छू लेगी तब, मन खुशियों से भर जायेगा
और मेरा सन्देश मेरी उस अपनी को भी मिल जायेगा


Raje Singh Karakoti

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अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।

मंज़िल को पाना जरुरी भी नहीं ,
मंज़िलो से सदा फासला रखना ।

सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना

सत्यदेव सिंह नेगी

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रहा हूँ आज दिन भर, बी एच ई एल नॉएडा की मीटिंग में
तडपता रहा बिन मित्रों की टोली, लगा रहा ईटिंग में
काम भी है जरुरी यारो, बिन काम कहाँ सब होता है
पर हाँ न हो साथ यारों का, तो  इंसान छुप छुप रोता है
चलो अच्छा भी है कभी कभार, इस तरह होना गुल
दिखी सूरत सांवली सी राजे जी की, मेकअप गया धुल
मेरी किताब हो तुम सारे यार, नहीं बनाता मै कभी नोट्स
कवियों के इस रियलिटी शो में, लेलो तुम मेरे भी भोट
तनहा इन्सान लिखते हैं तनहा, करे तन्हा तुझमुझ को 
भ्रम में हैं राजे पियारे, देखे कभी दीपक कभी खुद को 
इस किताबी दर्द के झांसे में, राजे भी आये आज
चलो अच्छा है नींद टूटी, मिला मेरापहाड़ को नया कविराज

mohan singh bhainsora

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अच्छा लगता है     कोई देख ले मुस्कराके तो अच्छा लगता है,  कोई पूछ ले रूककर हाल तुम्हारा तो    अच्छा लगता है.     बस की भीड़-भाड़ में जब कोई किसी बहिन बेटी को सताता है,  हिचकोलों का बहाना कर उन पर चढ़ा  आता है,  बस में बैठे सभी अंधों पर मुस्कराता है, .  तभी कोई बाँकुरा निकल के आता है,  दो  मार उसे नीचे की राह  बताता है,    .तो अच्छा लगता है.     लाठी लिए सड़क पार करने को  कोई बूढा जब-जब आगे जा तब-तब पीछे आता है,  इधर-उधर से आंधी बन दौड़ रहे  यम   वाहनों को रोकने को विफल हाथ  उठाता है,  तभी वो निकल के आती है,  बीच सड़क पर खड़ी.हो स्वर्नाद कर  गाड़ियाँ रूकवाती है  बेंत पकड़ बाबा की सड़क पार करा चुपके से.  निकल जाती है,   तो अच्छा लगता है.       तपती दोपहरी मैं, पानी के लिए बिलखते, छाँव के लिए तरसते   पटरी पर गिरे बूढ़े   को तमास्दीनों के बीच से उठा  और मुहं से निकलती झाग को मिटा,पानी पिला,  उसे जब कोई अस्पताल पहुँचाता है   तो अच्छा लगता है       संसद के पटल पर, नक्कारों की तूती से जरा हटके,    लीक से हट कर, राजनीती से उठकर,  दूर देश के उस कोने में रहने वाले,  उस साधारण आदमी की पीड़ा पर,  जब कोई युवा सांसद देश का ध्यान दिलाता है,  तो सचमुच बड़ा अच्छा लगता है,     सचमुच कहाँ है वह  व्यवहार,  इंसान का इंसानियत से प्यार;  वो दोस्ती, वो त्याग, वो आत्मीयता,  अपने देश के लिए वो सोच ;  बस जब कहीं तेरे शहर में नजर आता है,  तो सचमुच अच्छा लगता है,  अच्छा लगता है, हैंना ?     (स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, रामाक्रिशनापुरम,
नई दिल्ली -११००६६.   

mohan singh bhainsora

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अच्छा लगता है     कोई देख ले मुस्कराके तो अच्छा लगता है,  कोई पूछ ले रूककर हाल तुम्हारा तो    अच्छा लगता है.     बस की भीड़-भाड़ में जब कोई किसी बहिन बेटी को सताता है,  हिचकोलों का बहाना कर उन पर चढ़ा  आता है,  बस में बैठे सभी अंधों पर मुस्कराता है, .  तभी कोई बाँकुरा निकल के आता है,  दो  मार उसे नीचे की राह  बताता है,    .तो अच्छा लगता है.     लाठी लिए सड़क पार करने को  कोई बूढा जब-जब आगे जा तब-तब पीछे आता है,  इधर-उधर से आंधी बन दौड़ रहे  यम   वाहनों को रोकने को विफल हाथ  उठाता है,  तभी वो निकल के आती है,  बीच सड़क पर खड़ी.हो स्वर्नाद कर  गाड़ियाँ रूकवाती है  बेंत पकड़ बाबा की सड़क पार करा चुपके से.  निकल जाती है,   तो अच्छा लगता है.       तपती दोपहरी मैं, पानी के लिए बिलखते, छाँव के लिए तरसते   पटरी पर गिरे बूढ़े   को तमास्दीनों के बीच से उठा  और मुहं से निकलती झाग को मिटा,पानी पिला,  उसे जब कोई अस्पताल पहुँचाता है   तो अच्छा लगता है       संसद के पटल पर, नक्कारों की तूती से जरा हटके,    लीक से हट कर, राजनीती से उठकर,  दूर देश के उस कोने में रहने वाले,  उस साधारण आदमी की पीड़ा पर,  जब कोई युवा सांसद देश का ध्यान दिलाता है,  तो सचमुच बड़ा अच्छा लगता है,     सचमुच कहाँ है वह  व्यवहार,  इंसान का इंसानियत से प्यार;  वो दोस्ती, वो त्याग, वो आत्मीयता,  अपने देश के लिए वो सोच ;  बस जब कहीं तेरे शहर में नजर आता है,  तो सचमुच अच्छा लगता है,  अच्छा लगता है, हैंना ?     (स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, रामाक्रिशनापुरम,
नई दिल्ली -११००६६.   

 

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