अच्छा लगता है कोई देख ले मुस्कराके तो अच्छा लगता है, कोई पूछ ले रूककर हाल तुम्हारा तो अच्छा लगता है. बस की भीड़-भाड़ में जब कोई किसी बहिन बेटी को सताता है, हिचकोलों का बहाना कर उन पर चढ़ा आता है, बस में बैठे सभी अंधों पर मुस्कराता है, . तभी कोई बाँकुरा निकल के आता है, दो मार उसे नीचे की राह बताता है, .तो अच्छा लगता है. लाठी लिए सड़क पार करने को कोई बूढा जब-जब आगे जा तब-तब पीछे आता है, इधर-उधर से आंधी बन दौड़ रहे यम वाहनों को रोकने को विफल हाथ उठाता है, तभी वो निकल के आती है, बीच सड़क पर खड़ी.हो स्वर्नाद कर गाड़ियाँ रूकवाती है बेंत पकड़ बाबा की सड़क पार करा चुपके से. निकल जाती है, तो अच्छा लगता है. तपती दोपहरी मैं, पानी के लिए बिलखते, छाँव के लिए तरसते पटरी पर गिरे बूढ़े को तमास्दीनों के बीच से उठा और मुहं से निकलती झाग को मिटा,पानी पिला, उसे जब कोई अस्पताल पहुँचाता है तो अच्छा लगता है संसद के पटल पर, नक्कारों की तूती से जरा हटके, लीक से हट कर, राजनीती से उठकर, दूर देश के उस कोने में रहने वाले, उस साधारण आदमी की पीड़ा पर, जब कोई युवा सांसद देश का ध्यान दिलाता है, तो सचमुच बड़ा अच्छा लगता है, सचमुच कहाँ है वह व्यवहार, इंसान का इंसानियत से प्यार; वो दोस्ती, वो त्याग, वो आत्मीयता, अपने देश के लिए वो सोच ; बस जब कहीं तेरे शहर में नजर आता है, तो सचमुच अच्छा लगता है, अच्छा लगता है, हैंना ? (स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, रामाक्रिशनापुरम,
नई दिल्ली -११००६६.