Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76548 times)

Vinod Jethuri

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यादें
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें
स्कुल के दिन, कैसे गुजारे!
रह गये है अब बस यादें!!


कास येसा जो कभी हो जाये
बचपन के दिन लौट के आये
मुडकर फिर हम स्कुल जायें!
फिर ना कभी आती ओ यादें!!
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें

यांदो मे यादे है समायें
बचपन के ओ खेल तमासे
घन्टी स्कुल कि बज जायें!
देर से हम फिर स्कुल आयें!!
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें 


जमी कुर्सि और छ्त है तारें
गुरुजी धुप सेक के पाठ पढायें
लडे-झगडे और पढे-पढायें
यही तो है बचपन कि यादें
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें...


कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें...


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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर विनोद भेजी....

बहुत सुंदर रचनाये है आप की! लगे रहो भाई.. आशा हमारे सारे सदस्यों को पसंद आयी होंगी आपकी कविताये!

जय भारत .. जय उत्तराखंड

सत्यदेव सिंह नेगी

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मेहता जी खूब कहा आपने विनोद भाई ने रचना नहीं पूरी कताब दे मारी है
ऐसा लगता है मानो मामूली खांसी आने पर मरीज को अस्पताल में भारती कर दिया हो 
हेहेहे विनोद भाई लगे रहो मगर आहिस्ता आहिस्ता
(मजाक कर रहा हूँ जेठुरी साहब बुरा न मानियेगा )

अति सुंदर विनोद भेजी....

बहुत सुंदर रचनाये है आप की! लगे रहो भाई.. आशा हमारे सारे सदस्यों को पसंद आयी होंगी आपकी कविताये!

जय भारत .. जय उत्तराखंड


Vinod Jethuri

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बहुत बहुत धन्यबाद मेहता भैजी और सत्यदेव भाई जी
सत्यदेव भाई जी ये सब कविताये मेरे ब्लाग मे थी बस वंहा से कोपी पेस्ट कर दिया..


सत्यदेव सिंह नेगी

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बढ़िया विनोद जी बड़े दिन बाद आपसे यु बातें हो पा रही हैं  अच्छा लग रहा है
बहुत बहुत धन्यबाद मेहता भैजी और सत्यदेव भाई जी
सत्यदेव भाई जी ये सब कविताये मेरे ब्लाग मे थी बस वंहा से कोपी पेस्ट कर दिया..



सत्यदेव सिंह नेगी

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विनोद जी आप साहित्य के  हो मंजे हुए रत्न   
देखे हैं मैंने आपके लेख मेरा भी है कुछ प्रयत्न 
 
बाँट दो कुछ इधर भी हैं निहारते हम नित राह   
बन जाएँ हम भी कुछ लायक हमें भी है कुछ चाह   
 
मांगल  के दो कुछ समाचार कैसी है उसकी नय्या 
दो चार मंगल इधर भी दो गुनगुना बहुत मन है भय्या 

दीपक पनेरू

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बहुत सुंदर भाव है, विनोद जेठुरी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको, पोर्टल के साथ अपने दिल के जज्बात बाटने के लिए, आशा करता हूँ आप अपनी लेखनी के जौहर से अपने जज्बात इसी तरह बाटते रहेगे, एक बार फिर से धन्यवाद

यादें
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें
स्कुल के दिन, कैसे गुजारे!
रह गये है अब बस यादें!!
 
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दीपक पनेरू

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बचपन
 
  मीठी हंसी की प्यारी पाठशाला,
पल पल दोस्तों से लड़ जाना,

छुट्टी हो जो दौड़ लगाकर,

सबसे आगे घर को जाना,


माँ लोरियों से कुछ कहती,

दादी सुनाती कविता अति प्यारी,

कभी बाघ शेर की लड़ाई,

कभी कुत्ते बिल्ली की यारी,


ओ बाबूजी का डांट लगाकर,

वही माँ का फिर से मानना,

वही बहन का दद्दा कहकर,

गुस्से को मुझसे दूर भगाना,



वही बस्ते के बोझ तले जो,

दबकर तन थक जाता था,

कभी नहीं जाऊंगा स्कूल,

बार बार मन में आता था,


पढने की ना अहमियत को समझा,

ये सब बचपन की नादानी थी,

खेल कुंद ही प्यारा था तब,

साथियों की टोली अज्ञानी थी,


छोटी छोटी बातों पर भी,

ओ आँखों का भर जाना,

प्यारी भोली आँखों पर से,

बहता मोतियों का खजाना,


कितना मासूम ओ बचपन,

कैसे भूलूँ सुहाने को,

लिखते सोचते ऑंखें भर आयी,

फिर वही मोती छलकाने को.

रचना दीपक पनेरू
दिनाक १७-०८-२०१०

मेरी सारी रचनाये और मेरे अनुभव http://deepakpaneruyaden.blogspot.com/2010/09/blog-post_21.html इस लिंक पर भी पड़े जा सकते है.

सर्वाधिकार सुरक्षित @deepakpaneruyaden.blogspot.com, and merapahad.com पर
 
 

सत्यदेव सिंह नेगी

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नसीब है आपका
कि हुए आप हैं जवां

बचपन से हुए दूर
जागें हैं बड़े अरमां

मै भी सोचूं कब छूटे डोर
बांधूं मै भी समां
 
वजह इस न मिली तरक्की
सका न कुछ भी कमा

खेले तो धोनी सचिन भी
और छू गए आसमां

देखे जमाना कितने पढ़े
शाहरुख़ और सल्मां

कोइ बनाये दबंग कोई
माई नेम इज खां

सोचूं क्यों बचपन पर लादते
सब अपना बर्त्मां

सच में हैं डरें या चलाते हैं
कविता कि दुकां

लगे हैं बेचने सभी बाजार है लगा
बिके जो भी बिक सका

भर गया पेट न भर सकी नीयत
देख ले परमात्मा 

सब यहीं धर जायेंगे इक दिन
सबका होता खात्मा

बच्चे में ही है ईश्वर चंचल
निर्मल मधुर सच्ची आत्मा

बचपन में ही है सच्चा जीवन
सच कहते थे महात्मा
 

सत्यदेव सिंह नेगी

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कवि सम्मलेन के खिलाडी
क्या पहुच गए कोमन्वेल्थ
या दैवीय आपदा ग्रस्त पहाड़
जाके फस गए बिगड़ी हेल्थ

करो कुछ और तमाशा यारो
संवार दो इस बाटिका को पुनः
प्रतिभागी न सही जज बनके पधारो
बुलाये तुम्हे तुम्हारा सत्य

 

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