बसन्त हर बार की तरह आया,
लेकिन मैने इस बार कुछ और ही पाया,
बुरांस पाया कुछ अनमना और अलसाया।
पूछा मैने, तेरे आने से पहाड़ हो जाता था सुर्ख लाल,
तेरी आभा मन मोह लेती थी सबका,
तेरी पंखुड़ी छू-छूकर महिलायें पूछती,
कब आयेगी भिटौली, कैसा अहि मायका।
लेकिन आज तू ही क्यों है उदास और निराश,
उसने कहा मैं निराश नहीं, हूं हताश,
उत्तराखण्ड बनने के बाद मैं तो राज्य वृक्ष हो गया,
लेकिन इस राज्य को पाने के लिये मेरे रंग से
भी सुर्ख लहू का रंग बहाया था जिन्होंने,
आज देखकर इस प्रदेश की दुर्दशा,
उन लोगों की आत्मायें मेरी पंखुड़ि,
छू-छू कर कहती हैं, पूछती हैं,
हे बुरांश, हमारे बलिदान का यह कैसा प्रतिदान?