Author Topic: पहाड़ की नारी पर कविता : POEM FOR PAHADI WOMEN  (Read 53712 times)

Meena Pandey

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अंगद

तुम पराजित होने देना
पैर से लिपटकर
भोतिक सृष्ठी के उपक्रम!   
पर तुम न पराजित होना
यदि बोझिल परिस्तिथिया
पलायन को करे विवश
तुम मत घबराना
डट जाना
तुम अंगद बन जाना !   

Meena Pandey

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सम्पूर्ण की ओर

जग की धुंध से
हजारो कदम दूर ले जायगा
सम्पूर्ण की ओर तुम्हारा एक कदम!
कोई भी वस्तु
जब होती है पूर्ण
सबसे पहले आवरण छोडती है
शायद उसी के भीतर से
जाता है एक मार्ग
सम्पूर्ण की ओर!

पंकज सिंह महर

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मीना जी बहुत सुन्दर रचनायें हैं, खासतौर पर "अंगद" शीर्षक की कविता पहाड़ के नौजवानों के लिये निश्चत रुप से प्रेरणादायक है।

हेम पन्त

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वाह! वाह! बहुत सुन्दर कविता है...
चंद शब्दों में बडी गहरी बात छुपी है... जैसे गागर में सागर...


ये गर्मिया

ये गर्मिया बोझिल है!
जलते है हाथ, पैर, मन!

हथेली भर पानी से
धोती हूँ उद्विग्न मन
नही मिटती
अकेलेपन की उमस!

बर्फ की सिलिया
सर्द हवा और
भीगी सडको पर 
लोटते तुम!
वो सर्दिया बेशक अच्छी थी !


Risky Pathak

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Achhi Kavita hai...

अंगद

तुम पराजित होने देना
पैर से लिपटकर
भोतिक सृष्ठी के उपक्रम!  
पर तुम न पराजित होना
यदि बोझिल परिस्तिथिया
पलायन को करे विवश
तुम मत घबराना
डट जाना
तुम अंगद बन जाना !   


pushpa rawat

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very good dear meena keep it up

hem

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मैंने मीना जी की कवितायें आज पहली बार पढीं |यह गर्व की बात है कि  इतनी प्रतिभावान कवियत्री फॉरम की सदस्य है | मेरी शुभकामनाएं हैं | आशा है भविष्य में भी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी |

Good poems.  Meena jee kya aap sirf pahad kee Naaree per hee kavitaye likhatee hai?  Kuch pahad ke Fauzi bhaiyon per bhee likha hai kya?  if yes pl. post. Thanx
NAMO NARAYAN

Meena Pandey

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कारगिल के दिन और रात

दुश्मनों के मनसूबे उखाड़ फैकने की बाते
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल के राते

शायद धमाको के बीच याद आती हो खिलखिलाहट
चोंका देने वाली होती होगी हर आहाट
कभी अकेले मे तस्वीर किसी अपने की
याद दिलाती होगी उनके नन्हें नन्हें सपनो की
उस वीराने मे शुकुन देती होंगी घर की यादे
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल की राते !

दुश्मनों के मनसूबे उखाड़ फैकने की बाते
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल के राते !

कभी प्यार कभी चेहरे से  आग बरसती होगी
कभी बंदूक कभी हाथो मे कलम होती होगी
एक नजर डाली होगी उसने सपनो पर अरमानों पर
आंखे तर हो जाती होंगी लिखते हुए ख़त के उत्तर
लड़ते लड़ते ऐसे ही एक दिन रुक गई होंगी सांसे
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल की राते !

(ye kavita maine kargil ki ladai ke samay likhi thi. isiliye  kavita mai utne maturity to nahi thi fir bhi feelings ke level per apko shayad pasand aye)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Great work Meena aap to shuruwaat se bahut badhiya likhti ho.

+1 karma aapko.

 

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