खीम दा की कविता का लिप्यांतरण
भोर का पनघट
हुआ अंधकार का आधा असर, तारे भी बचे से बस चन्द,
चांद निकल गया तारों के संग, हवा चली थी मद मन्द-मन्द,
खुली रात की खुशी में, चिडि़यों का कोलाहल सा अट्टाहास,
प्रियतम ने किया था प्रिय को, जगाने का यह मधुर प्रयास।
प्रातः की पहली बेला पर, पनिहारी ने उठाई गागर,
पायल की मधुर संगीत, मधु मुस्कान थी, डगर-डगर,
नींद थी अभी आंखों में, पनघट था खबरों का घर,
सूरज, मुख की लाली, सब बेसुध था, सब बेखर,
गुलाब की कोमल पंखुड़ियों में, ओस मोती सा था चमकता,
सपना भोर का अधूरा, अलसाई आंखों में था झलकता,
प्रफ्फुलित मन पंख बने पांव, पानी की सरसराहट देते थाम,
उठाती घूंघट गिरता पानी, पूछती क्यों री क्या है तेरा नाम,
फिर प्रभात ने ली अंगड़ाई, पूरब की ओर नजर दौड़ाई,
सुन्दर है दश्य कितना, भोर की लालिमा बढ़ आई।
खीम सिंह रावत
२९-१०-२००३