गढ़वन्दना
डा०उमेश चमोला
वीरभूमि! गढ़भूमि! त्वेतैं च परणाम,
नौं जपदू रौ≈ं मी, सबेर अर शाम।
बीरों की त तू च जाया, यन बीर ∫्वेन,
अपडू ल्वे दीनी, त्वेन जबरि धधेन।
वीर माधोसिंह ह्वेन, नौनु भी चढ़ाई,
क∂फूसिंह मरी गैन, मुण्ड नी झुकाई।
तीलू रौतेली सी ह्वेन, बड़भागी नारी,
कत्यूरों की सेना पर, असन्द ए भारी।
हरी भरी डांडी कांठी, हर्यां भर्यां बौण,
रोंतेˇी धरती की, कैमूं छ्वीं लगौण।
रांेतेˇी धरती च या वीरों की त जाया,
आतमा अमर रैली, मिट जाली काया।
तेरा माटा की कसम, अग्वाड़ी ही रौला,
मारी द्यूला, या मरी जौला, ल्वे हम बगौला।
देश प्रेम कू उमाˇ, जिकुड़ी मां ऐगी,
बीर अर सिंह अमरΣΣ बणीगे।
बौडर बटी भ्येजीं, चिट्ठी घौर ऐगी,
अपडु पता नी चली, चिट्ठी घौर ऐगी।
क्वी एक फौजी ज्वान, कू नौं नी अमर,
गढ़भूमि मां अमर, छन घर घर।
लुकरा खुशी का बाना, फौजी जान देन्दा,
शहीद ह्वे नौं अपडू, अमर कै जान्दा।
यू अमर शहीदों तैं, मेरू च परणाम,
नौं जपदूं रौं≈° मी, सबेर अर शाम।