Author Topic: Poem Written on various issues of Uttarakhand- उत्तराखंड पर ये कविताये  (Read 15619 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ग़ज़ल

उमेश चन्द्र सिंह रावत
 

अब बदल्यलीं मिन अपड़ी आ°खी,
त्यार आ°ख्य°ून अब दुन्या थैं द्यखणू° छौं।
घृणा, बैर, ईर्ष्या का कांडा अलझणा छन् जख झगुला पर्,
त्यार सहारा कु ट्यक्वा ले अब वख रस्ता बणाणू छौं।
मि नि लड़दु अब कै से बड़ु आदिम बणंना कू,
हर कैंथै अ°ग्वाˇ बोटि भिटिन्दु अब प्यार फैलाणू° छौं।
भंड्या डैर गौं बाटू° म अन्ध्यरू च बिरिड़ि नि जौ क्वी,
अफु थैं सुलगाणू छौं ज्ञानै फू°कल अब उज्यˇु घुरकाणू° छौं।
म्वरणां की डैर से खरीदणां छन् ग्वाˇा तोप
देशभक्तू° बटि सीखि लेऔं समर्पण अब जीणा आस बटणू° छौं।
धूˇ माटू म भ्वरेकी की भी नि खुजै सकीं परमात्मा वो लोग,
अपर वि वासैं आ°ख्यू मा वे थैं अब पलकों मा सजाणू° छौं।
सुण्यू° म्यारू कि प्यार म छोड़ि दिदीं दुन्या लोग,
कि दुन्या म रˇिणौं छौं अब हर दिल मा प्यार पैटाणू छौं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ग़ज़ल

गिरीश पंत ‘मृणाल’



खौरी का बारा, बिजि ग्याई कविता
लेखिकि, पौढ़ीकि, ‘से’ ग्याई कविता।
माधों का त्याग से रामी का तप तक
जीतूकि प्रीत मा र्वै ग्याई कविता।
∫यू° का हिवाˇ° से, स्वाणा बुग्याˇ्यू° तक
नन्दा का छा°तोली छै ग्याई कविता।
चौछड़ि गाड-गदेरों का पाणि से
गंगा की औत नहे ग्याई कविता।



हौˇ की स्यू° बटि, बा°जि पुगड़ि तक
ढु°गा अर गारा बुकै ग्याई कविता।
आ°ख्यू° मा अंसधरि मनमा यकुलांस
कुजाणि कैकु क्या ख्वै ग्याई कविता।
सूणीकि-भौंणीकि, बींगीकि-जाणीकि
कैन नि गूणी खौˇ्ये ग्याई कविता।
देखिकि हाल मनखी मनख्याˇी का
हैंसी कि रूणी बौˇ्ये ग्याई कविता।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अनुगीत

यशोधर डबराल "गमल्दा"

रौंस रै कि तौंस रै नि जांणि साकु जिन्दगी।
फटीं पुरणि किताब सी नि बांचि साकु जिन्दगी।।
अगास उडण्यां सुपिनु रै पŸा भिंΠया पोड़ी गौं।
फगत यनी चितांणु रौं कि ज्यूंदिं लाश जिन्दगी।।
कबी भरम करम कु रै, भतांग खैनि भाग की।
रौं पिछ्वड़ि लफांग द्वी, नि छौपि साकु जिन्दगी।।
कदम-कदम उजड़िदि रै, बसगल़्या पगार सी।
मीन दूदा Σ बाल़ सी, अड्येकि राखि जिन्दगी।।
द्वी घड्यूंक जींण मां, उमर भर की मौत च।
फिर बी रोज करदू रौं, तेरी तलाश जिन्दगी।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By - Jai Prakash Panwar

मेरा ≈°चा हिमालय
तै शान्त रैंण द्या।।
नि पौंछावा सड़की
पुंगड़ी-कूड़ी नि दब्यौंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि बांधा बगदि गंगा तै
यू° पण्डों का गौं अठ्र-टीरि पांणी मा
नि समौंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दी
तुम्हारी राजधानी
गैरसैण मां
हम चमोली का ढेबरा,
पौड़ी का सलाड़ी,
खास पट्टी का खस्या,
बंगाण का बंगाणी,
जोशीमठ का भोट्या मारछा,
पिथौरागढ़ का तोलछा,
गंगाड़ का गंगाड़ी
जौनसार का जौनसारी
जौनपुर का जौनपुरी,
कुंमौ का कुंमΠयां,
गढ़वाल का गढ़वाˇ़ी
हम तैं
हमीं रैंण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दी बिगचीं बिजˇी
गौं समाज चमकणू° च
टीवी का डब्बा पर,
गौं बचा.... लाज बचा...
छि भै तौं न दब्योंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैंदु भ्रम पर्यटन
तौं सेठों का क्लब
हिल-हिल रिसोर्ट
य°ू डांड्यू° मा
हमुन पातर नि नचौंण हमतै
हमारा पण्डौं
भूत-पिचास
नार्गजा-नगेलु
हीत-भैरव/ जितु बगड़वाˇ/ ग्वरील
ऐड़ी-आछरी
नचौंण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तैं
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दु पिज्जा-बरगर
बोदका-एट पी०एम०
बटर-चिकन
हम तैं
कोदा-झंगोरा की कच्ची
जंगˇी कुखड़ा/ उखड़ी भात
स्रोंतु कु पांणी प्योंण द्या,
64
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि, चिड़ावा हम तै
कुंमा≈ का पोर बिटिन
घाट-केदारघाटी,
पिण्डर-यमुना
उधमसिंह नगर से
देहरादून तक ‘माओ एैगी’
कै चक्कर मा छां
बोडा जी?
या त दम दमान्दीं
गंगा-यमुना भागीरथी-भिलंगना
काकी-रामगंगा पिण्डर- धौˇ़ी
अलकनन्दा-मन्दाकिनी
जन झमकदि ज्वानि च
भोˇ़ न हो कुछ ∫वे जौ
तुम यू° दब्या अंगारों
डरयां पाड़ियों
पर द्यबता
न निकˇण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तैं
शान्त रैंण द्या।।

मेरा ≈°चा हिमालय
तै शान्त रैंण द्या।।
नि पौंछावा सड़की
पुंगड़ी-कूड़ी नि दब्यौंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि बांधा बगदि गंगा तै
यू° पण्डों का गौं अठ्र-टीरि पांणी मा
नि समौंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दी
तुम्हारी राजधानी
गैरसैण मां
हम चमोली का ढेबरा,
पौड़ी का सलाड़ी,
खास पट्टी का खस्या,
बंगाण का बंगाणी,
जोशीमठ का भोट्या मारछा,
पिथौरागढ़ का तोलछा,
गंगाड़ का गंगाड़ी
जौनसार का जौनसारी
जौनपुर का जौनपुरी,
कुंमौ का कुंमΠयां,
गढ़वाल का गढ़वाˇ़ी
हम तैं
हमीं रैंण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दी बिगचीं बिजˇी
गौं समाज चमकणू° च
टीवी का डब्बा पर,
गौं बचा.... लाज बचा...
छि भै तौं न दब्योंण द्या,
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि चैंदु भ्रम पर्यटन
तौं सेठों का क्लब
हिल-हिल रिसोर्ट
य°ू डांड्यू° मा
हमुन पातर नि नचौंण हमतै
हमारा पण्डौं
भूत-पिचास
नार्गजा-नगेलु
हीत-भैरव/ जितु बगड़वाˇ/ ग्वरील
ऐड़ी-आछरी
नचौंण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तैं
शान्त रैंण द्या।।
नि चैन्दु पिज्जा-बरगर
बोदका-एट पी०एम०
बटर-चिकन
हम तैं
कोदा-झंगोरा की कच्ची
जंगˇी कुखड़ा/ उखड़ी भात
स्रोंतु कु पांणी प्योंण द्या,
64
मेरा ≈°चा हिमालय तै
शान्त रैंण द्या।।
नि, चिड़ावा हम तै
कुंमा≈ का पोर बिटिन
घाट-केदारघाटी,
पिण्डर-यमुना
उधमसिंह नगर से
देहरादून तक ‘माओ एैगी’
कै चक्कर मा छां
बोडा जी?
या त दम दमान्दीं
गंगा-यमुना भागीरथी-भिलंगना
काकी-रामगंगा पिण्डर- धौˇ़ी
अलकनन्दा-मन्दाकिनी
जन झमकदि ज्वानि च
भोˇ़ न हो कुछ ∫वे जौ
तुम यू° दब्या अंगारों
डरयां पाड़ियों
पर द्यबता
न निकˇण द्या
मेरा ≈°चा हिमालय तैं
शान्त रैंण द्या।।
;क्या फिर ऐतिहासिक उŸाराखण्ड आन्दोलन
जन द्यबता फिर औलु........? यां कि आस मांद्ध

;क्या फिर ऐतिहासिक उŸाराखण्ड आन्दोलन
जन द्यबता फिर औलु........? यां कि आस मांद्ध

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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त् देखा दर्शन सिंह बिष्ट-----------------बैठीं कुखड़ि मार्द्याेंवेखुणै-बन्दुक्या नि ब्वदाडुंकर्दु स्यू फर नपैक् त् देखा।ठुला बˇ्द्न् सगोड़ि चिरोड़िद्यावेखुणै हˇ्या नि ब्वदाबोड़ोन् स्यारा-सैकि त् देखा।जणेक झांजी बन्द कै देवेखुणै पट्वरि नि ब्वदाअरे! वूं फर हथ लगैक त् देखाफौजि कि लईं रम पे देवेखुणै दरोˇ्या नि ब्वदा‘बच्ची’ की कच्ची, पेक त् देखा।ग∂फा खैकि ठप्पावेखुणैं वोटर नि ब्वदाविकास का नौंफर वोट देक त् देखा।ढांगी का दूधन् ठेकि भोरिदेवीखुणैं ग्वील्येर नि ब्वदा‘डैणि गौड़ि’ का पांसा खैंचिक त् देखा.........।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मर्द का बच्चौंन

सतीश बलोदी

गढ़वाˇ का रगड़ा-भगड़ा त्
आज तक थमें नि सक्यन
अर भागीरथी मा दिवाल धरी दिनी
मर्द का बच्चौंन
यखका बौलौं को पा°णी
आज तक बटे न सक्यन
अर गंगाजी बौड़े दिनी
मर्द का बच्चौंन।
जौं भीठा-पाखों पर
घस्यारि बाजु-बन्द लगांदि छै
सिमटै-सिमट लिपि दिनी वख
मर्द का बच्चौंन
बल्दु कि जोड़ी सजदि छै जै उखड़-सेरा
डम्फर जोति दिनी वख
मर्द का बच्चौंन।
जौं पौडु पर सौˇा दूंˇि नि खुजै सकदा छा
टन्न्क छिरकै दिनी वख
मर्द का बच्चौंन।
ज्वा टिहरी शान्त रंणा खुण प्रसिह् छै
घुंघ्याट मचै दिनि वख
मर्द का बच्चौंन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लब मैरिज
 

 कुलानन्द घनशाला

 
जिठाणा कु भैसाब, सासू कू मांजी,
मेरू नौ लेकी भट्योन्दी च,
अपणा बुबा कु कुजाणी क्या ब्वलदि
पर मेरा बुबा कु पापा बोलणी च।
नांगा मुण्ड मां पल्लू धनु, धोती पैरण नि आंदी,
टी शर्ट-जींस पैरण मा जरा भी नी शरमांदी
झुकी सेवा लगौण मा कमर चसक पड़ जान्दी,
गाली़ अर गिच्चा चलौण मा द्वी हाथ अगाड़ी जान्दी।
बिना सौ सलाह का जब मर्जी मैत भाजी जान्दी,
फिक्वाˇ सी घ्ुामिघामी, ब्यखुनी हाथ हल्कैकी ऐ जान्दी,
काम काज कनु बुनै त जन लचुड़ी आई हो, टुप से जान्दी।
अर पकायूं खाणू सबसी पैली गाडी खै जान्दी
जरा कुछ ब्वलणे त बिना बाजौं का ही नचण बैठी जान्दी,
मां-बैणी गाल़-घात देकी धौ-धौ कै घिरे जान्दी।
गाड़-फाˇ , डांडा-फांस-जैर खाण की धमकी तक दे जान्दी,
कि दहेज अर वीं निर्भागी लब मैरिज की भी याद दिलै जान्दी
मिन बोली चुची ब्यो त ब्यो ही च,
दुनिया से बाकी बात थ्वींड़ी हांेयी च,
वींन गुरौं सी ठप-ठपाक मारी खबरदार,
ब्यो नी हमारी त लब मैरिज हांेई च।
शुभ दिन शुभ घड़ी देखी हाथ जोड़ी बोली मिन,
चुची नारी त देवी कु रूप होन्दु
वीन जुता की सी ठक्क चोट मारी,
हां नर भी त वींकु भगत होन्दू।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वन्दना
 
डा०उमेश चमोला

वीरभूमि! गढ़भूमि! त्वेतैं च परणाम,
नौं जपदू रौ≈ं मी, सबेर अर शाम।
बीरों की त तू च जाया, यन बीर ∫्वेन,
अपडू ल्वे दीनी, त्वेन जबरि धधेन।
वीर माधोसिंह ह्वेन, नौनु भी चढ़ाई,
क∂फूसिंह मरी गैन, मुण्ड नी झुकाई।
तीलू रौतेली सी ह्वेन, बड़भागी नारी,
कत्यूरों की सेना पर, असन्द ए भारी।
हरी भरी डांडी कांठी, हर्यां भर्यां बौण,
रोंतेˇी धरती की, कैमूं छ्वीं लगौण।
रांेतेˇी धरती च या वीरों की त जाया,
आतमा अमर रैली, मिट जाली काया।
तेरा माटा की कसम, अग्वाड़ी ही रौला,
मारी द्यूला, या मरी जौला, ल्वे हम बगौला।
देश प्रेम कू उमाˇ, जिकुड़ी मां ऐगी,
बीर अर सिंह अमरΣΣ बणीगे।
बौडर बटी भ्येजीं, चिट्ठी घौर ऐगी,
अपडु पता नी चली, चिट्ठी घौर ऐगी।
क्वी एक फौजी ज्वान, कू नौं नी अमर,
गढ़भूमि मां अमर, छन घर घर।
लुकरा खुशी का बाना, फौजी जान देन्दा,
शहीद ह्वे नौं अपडू, अमर कै जान्दा।
यू अमर शहीदों तैं, मेरू च परणाम,
नौं जपदूं रौं≈° मी, सबेर अर शाम।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऐगिन अब सब च्वर यपुन बी


जगदम्बा प्रसाद चमोला

ढुंगु डाल, कुछ लाठू बतेण्डू कर धध्यो ल्वखु धौ मार तपुन बी।
जु दिल्ली अर लखनौं मां छा, सी ऐगिन अब सब च्वर यपुन बी।
गौ बण्यां गर्त गरीब यखा कै मु जा व्यर्थ बतौणौं तैं
भूखा तैं नी भरत यपुन अर नांगा गात लुकौण तैं
मुर्दा बणिन मनस्वोच यपुन, क्वैं रे नी हाथ उठौणों तैं
सरकार च ब्वनि यौं कम्प्यूटर दयौण सिखौंणौं तैं
यन छन देसा नीति नियोजन छोड़ स्वयम खुद द्यौख तपुन बी
दिल्ली अर लखन≈ मां छा, सी ऐगिन अब सब परच्यौत यपुन बी
ढुंगु डाल, दिल्ली अर लखनौं मां छा, सी ऐगिनं अब सब च्वर यपुन बी
चुस्यां जन छा झौड़ जु पैली बै, नेता बन्या छा लखनौ रैं तै
मोटा मस्त मलनग पड्यां सी, अब सब देहरादून मां ऐ तैं
ऐगीन पैली क्वैं, अब औणा क्वै ऐ ते नजर लगौण छिन
य कै तैं कार मिलिन कुरस्युं दड़ी क्वैं अब लाल्द चुवौणा छिन
क्वै बी हो कै बी पार्टियों, सब अपडू वक्त बणौणा छन
क्वै गग्गू बणिन अजगर जन, क्वै कितला गात तड़योणा छिन
हपरा तपरी मद मस्त बण्यां यी, जगु-जगु आग लगौणा छिन
स्वार्थ का झूठा कौल्दा पैथर, यख सब दगडू पुरौण्यां छिन
हमरी कन्ध्यों मा ऐच चड़यां, अर हमरै मुंड मां वार कना छिन
उल्लवा पठा त हम तुम छन, जू यौं की जय जयकार कना छिन
छैगिन गिह् गरूड़ गग्गू य, ऐगिन बोक्सा बिराट तपुन बी
गिरगिट गौं-गौं तक पौंचिन, अब ह्वेगिन भूत पिचास यपुन बी
दिल्ली अर लखनौं मां छा, सी ऐगिनं अब सब च्वर यपुन बी।
मार काट हो हल्ला तमसु यी, भुखी जनता रूवौणों तैं
सी कुछ बी करी सकदन आखिर, खुद तैं सर्वाेंच्च बतौंणों तैं
बाना अर बेकूब बतौणा, तौं मू हर इस्टाइल छिन
सी अपरा स्वार्थ का खातिर हक्का तैं रौण रूवौंणा माहिर छिन
सी बीकी और बिकै सकदन, खुद कुरसी अपरी बचौणों तैं
55

सी कुशल वाध्य कलाकार छन हंक्का तै नाच नचौणांे
ख्वल द्वार अ जग्गो छूल्लु तो द्यौख छज्जा बिन संकति तपुन बी
दिल्ली अर लखनौं मां छा, सी ऐगिनं अब सब च्वर यपुन बी
ह्वैगिन पद परमोशन ऐथर, गोबर छा जू रेत बण्यां य
बजरी छा सी सीमेंट बण्यां, जू पत्थर छा सब टेक बण्यां य
जू कखडयूं का छा चोर, यपुन सी आज शसक्त डकैत बण्यां या
यन परिवर्तन ह्वैगी विकासौ डरख्वा आज लठैत बण्यां य
य आग लगी यन बजर पड़ी, जू छा वी सब परचेत बण्यां य
जू छ्वीं लांणौ तैयार नी छा सी टौव्ला आज टिकैत बण्यां य
ब्वन कैन अब यौं तैं कुछ बी, बुह्जिीव सब प्रेत बण्यां य
स्यौरा स्वगौड़ा सब बंजर ह्वैगीन रंगड़ धंगड़ खेत बण्या य
धर्म शक्ति का साथ जू छा सी अब सब नाम मेट बण्यां या
जाैं पर अफू विश्वास नी छौ सी लावा लसकर सेठ बण्यां य
जौंकू कुछ मनस्वौब नी छौ सी गद्वरा शंख पठैत बण्यां य
जौं मुख धौव्णैं बी होश नी छै सी बौल्दया आज सचेत बण्यां य
लम्बा कुरता ध्वत्ता नेता यन जन मेट बण्यां य
जू मनखियौं मां बी गणैदा नी छा सी गड़गौरव अभिलेख बण्यां य
पड़ी फरक बरबाद बण्यी य, ह्वेगी बात सब खाक यपुन बी
ह्वेगीन जीवन जनतु जीव सब मन्खी नी रै मनख्यात तपुन बी
जु दिल्ली अर लखनौ मां छा, सी ऐगिन अब सब च्वर यपुन बी
पुरूष बणिन यख नेता नपोडू कुछ औरत यख उसताद बणी छिन
छौड़ी मुख मरियादा घर की दार्वा टेण्डर डल्द लगी छिन
हाल क्यवा होला ये गढ़वाल ज सृष्टि शकल बेकार ह्वेयी च
मा जननी जगदम्बा ज अब दारू बिकौण त्यार ह्वयीं च
मा° छै शान लाज गढ़वाले दूधौ सत अधिकार च जौं तै
दूधा बदला दारू पिलौंणी चल हठ अब धिक्कार छ तौं तै
बणी हमरु प्रदेश अलग पर धरती परदूषित ह्वैग्ये
जू छौ चोरी कन्नू लखनौं मा आज उबैं हमरै य ऐ ग्ये
खबरदार बण होशियार गौ गल्दू बचो घर द्यौख अपुडू बी
जु दिल्ली अर लखन≈ मां छा, सी मैडम ऐगिन आज यपुन बी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भ्रम
 पारेश्वर गौड़ 

किलै कि लोक-ल्वख्वा पैथर लगी
बणी जैंदिन पिछलग्यु
जबकि ≈°थैं पता भि च ?
कि वो केवल ढंडास बधाणा का आलावा
कुछ नि कैर सकदा!
फिर भि, म्यारा मुल्क का लोक
खुज्याण छन बाटा...... बो भि ग्वरबट्टौं मा !
छैं च वंू पर गंध साहित्य अर इतिहास की
पर, फिर भि उलटाणा छन पन्ना, पोथि साहित्य की
बगत बगत समझयी-
आम बबूल थैं बुतणा छन
रस्स का लोभि, अब्त हडेलौं खुणि भि तर्सणा छन
मिटलो वूंको कब यो भ्रम
छुटलो कब एको फंदा!
येथैं तुणणो भि त चैंद-सहास, हाड-मास।
जब तैं मेरी सांस रैलि चनी
द्यखणू रौलु क्या
जु लुंचणा छन वूंकि हडक्यू° को मासू
कभि न कभि त आलो वू°मा सा°सू!
हडक्यू° से लुचुण मासू
लटलौं कि खैंचाताणी अब नि सईंदी।
तब, मीली कि उमड़ला नर कांकाल
नर भक्षियों पर झपटला बणी कि गिध!
भूक अर भुकमरी से परेशान
म्यारा मुल्का का नर कंकाल
तब, कारला हड़ताˇ
हम तैं जीणु कु हक चैंद
विकास अर उन्नति को बाटो
अब अलग चैंद।
 

 

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