तोताकृष्ण गैरोला
श्रीधर (प्रेमी-पथिक बटी)
रौंत्याˇा सिरधूर गा°उ° भर मा गोधूˇि का साजमा
दौ धौˇी, भरपाˇि काˇि घरऔ पाखे गु°जीं गाजमा
लैंजे लैगिन खोˇि≈° तइ सजी बाछे अड़ाई अमां
बालैणी थण थामि दौड़ि पहुंची हु°कारदी चौकुमा
औंणीं रम्कदी बणु बिटे ब्वारे घणी घामिणा
नान्हा दन्किनि दाणी छाणि मई दे, ये द्येलि तू जाणिमा
रोसे भक्कर की पुणीक पड़नी खार्यो न कोठारूमा
तै गौं मा सुख-शान्ति शर्द Ωतु मा ये तौर होणी जमा
मोटा श्रीधर सेठ जी तखत मा बैठ् यां बही हाथ मा
बेटा, माधाव देख भेक भरनी पाथे रिंगै रात मा
गौं गौं का जिमदार खोलण लग्यां भारा किल्या ये धरा
ना जै की च समूण भीत वइ क्वै पैले हि भल भरा
भर्याले सउकारू को गणि गुंथी उन्नीस पाथा खरा
हे! मेरा च≈बीस था घर बिटे मराज ! इन्नाकरा!!
क्या रोˇों! झट सेठ जी उठि उबैं बोल्दा कि पाथा खरा
पक्की छाप खुदीं च पाˇिक तई हे बाबु नौं भी धरा