"छायाकार"
करदु छ कैमरा सी कैद,
पहाड़ की प्राकृतिक सुन्दरता,
संस्कृति की झलक,
दूध जनि बगदि जल धारा,
धौळ्यौं का मनमोहक किनारा,
बणु का बुरांश प्यारा,
डांडा, काँठा, पर्वतजन, न्यारा,
देवदार अर कुळैं का डाळा,
पहाड़ मा घुमावदार सड़क,
लग्दि छन जन हो माळा,
पर्वतीय परिवेश मा सज्याँ,
दादा, दादी, बोडा, बोडि हमारा.
कवि लेखक जब कल्पना करिक,
लिख्दा छन कहानी अर गीत,
छायाकार करदु छ छायांकन,
भला लगदा पहाड़ी गीत संगीत.
छायाकार की छायाकारी का द्वारा,
लग्दि छन मन मा कुतग्याळि,
पहाड़ी गीतु की गीत माळा हेरि,
परदेश मा पहाड़ की झलक देखि,
मन मा खुश होन्दा छन पहाड़ी,
कुमाऊनी अर गढ़वाळी.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित दिनांक: १.७.२०१०)
"ऊलारया पराण"
घुटिक घुटिक कुजाणि क्यौकु,
परदेश मा पराण,
सोचि नि थौ कबि मन मा,
पाड़ छोड़िक चलि जाण.
छट्ट छुटिगि क्या बतौण,
अपणु पहाड़ प्यारू,
दुनियां मा देवभूमि,
कथ्गा सुन्दर मुल्क हमारू.
देवभूमि सी दूर दर्द छ,
हमारू मुल्क स्वर्ग का समान,
चारधाम देवतों कू वास,
जख बद्रीविशाल जी विराजमान.
जन्मभूमि सी दूर दगड़्यौं,
क्वांसु सी होन्दु पराण,
मयाळु मन भि मरिगि,
तर्स्युं छ "ऊलारया पराण".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित दिनांक: १.७.२०१०)