Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 289702 times)

Bhishma Kukreti

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खौन्द्वार।

इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।

चौका तिरवालै पुंगड़ी टूटी
मज्यूल जाणै थुमुदी टूटी
टूट गाई दानणै पठाल
इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।

अब्ता धुरप्पलौ रस्ता ऊबरा अय्यु घाम
कूड़ी का टूट्या छन सब्या दार
ऊब्बर-मज्यूला काभी टूट्टी गैं मोर-संगार
इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।

सरग दिदा कू भी इन्न म्वारु
छन्नी पिछनै प्वाडू रवाडू
अब्ता छन्न भी ह्वैगै खौन्द्वार,
इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।


गौ का बाटा-घाटों मा काण्डा जामी गैं
सगोड़ा-पुगड़ियों मा बुखुलू फूली गैं
बांजा पोड्या छिन नवला-पन्यार
इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।

देवी-द्यब्तों का मन्दिरों मा मूसा दौड़णा छिन
ऊही द्यब्तों मा हम अपणी तरक्की मागणा छिन
अरे यो द्यबता लग्या छी अपणी पुज्जै का सार
इन्नैं खौन्द्वार, उन्नै खौन्द्वार
जन्नै द्यखा, उन्नै खौन्द्वार।।

चला कुछ दिनों खुणै ही,अपणा घर-गौ जौला यार
बचौला अपनी थाति, ल्यौला उन्नै भी बाहर
नी हूणी द्यौला अपणा पुरखों की कूड़ी तै खौन्द्वार।
नी हूणी द्यौला अपणा पुरखों की कूड़ी तै खौन्द्वार।

लिख्वार:- गोविन्दराम पोखरियाल 'साथी'

Bhishma Kukreti

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पयास पोखड़ा की गजलें
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पैलि त गुराव जन तड़क तड़कै जंदि लोग |
फेरि कुछ ब्वाला त नड़क नड़कै जंदि लोग ||
प्याजै दाणि अर लूणा कि कंकरि का दगड़ि |
बोतिळि फर बोतळि खड़क खड़कै जंदि लोग ||
तैळ्या मैळ्या सार्यूं त दुबुलु अर जख्या जामलु |
सरकरि कूल थैं जब गड़क गड़कै जंदि लोग ||
द्वार-मोरु फर हमल कभि संगुळा नि लगाया |
अपणा मोर संगाड़ थैं चड़क चड़कै जंदि लोग ||
सबुथैं पता च ज्यूंदाळ मांगिकि कुछ भि नि हूंद |
पर चौबट्टम चौंळ-दाळ छड़क छड़कै जंदि लोग ||
बस एक हैरि-पिंगळि सि कखड़ि का बाना |
कुंग्ळि लगल्यूं थैं झड़क झड़कै जंदि लोग ||
सर्या जिंदगि जिकुड़ा का फिनका स्यळ्याणा रवां |
बिरणि दैन की झैळ मा थड़क थड़कै जंदि लोग ||
रुळ्यां चिर्यां रिस्तों थैं गठ्ंयाणा रवां सिलणा रवां |
लगा लगदै दियां धागौं थैं धड़क धड़कै जंदि लोग ||
तातु दूध हुईं छन अजकाल नौना कु ब्वै अर ज्वै |
रोज़-रोज़ सासू ब्वारी थैं भड़क भड़कै जंदि लोग ||
म्यारा रस्वड़ा की रस्वै आजतक कम नि पोड़ी |
पर खै पेकि जुठ्ठि थकुळि रड़क रड़कै जंदि लोग ||
म्यारा गांवा का गोर-बछुरु अब तिसळा हि रंदिन |
भ्वरेण से पैलि ढण्ड थैं सड़क सड़कै जंदि लोग ||
पाणि का दगड़ा अपणों पस्यौ भि चरणु रौं "पयाश" |
सैंति पळिं लगुल्युं की जैड़ि मड़क मड़कै जंदि लोग ||
@पयाश पोखड़ा |
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स्वीणा
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(पलायन की मार झेलते  उत्तराखंड पर एम् मार्मिक गढ़वाली कविता )
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रचना - आसीस सुन्द्रियाल
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मिन स्वीणा मा देखि ब्याली रात
पर भयाराडी कनि बक्कीबात
मि स्वीणा मा द्याखुणु छौं
कि मि घड़ेक कु मोरी गयों
अर पुंगडी डोखरी घर बार
अर ऐंसु कु हि बणायू / लेण्टरवलो मकान शानदार
सब यखी छोड़ी गयों
मिन त या देह त्यागे अर सट मारी फाल चलीगयों
पर गौं मा रयां द्वी बुड्यों का गाल लैगिगयों
अब बिचरा कै कु ज्वडीन हाथ / अर कै दगड करीं बात
किलैकि वूंकी अपड़ी उमर त देणी नी छै साथ
खैर
जन तन करीक / बाल- ब्यठुला भेजिक बामण बुले
त अब मुकदान कु बाछी ना मिले
आँतुरी कु बिचरा पदानु का छानी गैनी
अंध्यर मा आँखा त देखा नी
अर छानी छोड़ी बाछी/ बोड बाँधिके ल्हेनी
द्यख्दे द्यखदी दवफरा ह्वेगी तड़तड़ी
अर बुड्यों कि त ऐग्ये घटघड़ि
किलैकि
गौं मा ज्वान जवान त रायूँ नी छौ क्वी
चार चैणा कांध लगाणु अर वो त छया सिर्फ द्वी
त अब
मज़बूरी मा त्वरित/ तत्काल व्यवस्था करेगे
अर कुड़ी पर पिलच्या द्वी पुरब्या अर पुंगडी मा मिस्यान द्वी डुट्याल तैं ल्हेंगे
चौक मा ऐकि चर्या मोल भाव कना/ बुड्यों तै देखिक करकुरु कै ब्वना
कि खडयाना है तो खड्यांगे , फूकना है तो फूकेंगे
पर कान खोल के सुन लेना, ध्याड़ी पुरे दिन कि लेगें
बस
इतगा सुणी कै बुड्यों न त कुछ नी बोले
पर भुयां मा धरीं लाश झट उठिगे
अर मेरी आख्यू कि निन्द खट टूटीग्ये
©आशीष सुंदरियाल
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बौडरा सिपै
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गढ़वाली कविता - महेंद्र ध्यानी
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तू भारती सपूत मां कु लाडलु छैई।
धन त्वेखुणि रै भाई बौडरा का सिपैई।
कै तै च नौटों को रंग
कै जवनी की उमंग
क्वी नशा मा पेकि भंग
कै चढ्यूं बड़पन को रंग
क्वी बि कै भी रंग मा रंग्यूंsssss
पर-- त्वैतैं प्यारू तिरंगा बौडरा का सिपैई।
दुशमनौं की नाक काटी
बौडरा का खड्वळा भ्वरदी
हम सिंया खतड़ी क पुटग
तु स्हैणू कांठौं कि सरदी
त्यरा देश का बच्चा बूढा
निसफिकरी सेई जालाsss
सर्य रात्यूं बिजि रै जन्दि बौडरा का सिपैई।
बढदू रै तू अगाड़ी बौडरा का सिपैई
हम छां त्यारा पिछाड़ी बौडरा का सिपैई।
धर्म तेरो भारती छ सेवा तेरी आरती छ।
कर्म तेरो पूजा पाठ चंदन देश को माटु।
ये देश की लाज राखीsss
सिपै दिदा--'
देश त्यरा हथ्यूं मा बौडरा का सिपैई।
अपणू भि ख्याल राखी बौडरा का सिपैई।
हम बि त्यारा पिछाडी बौडरा का सिपैई।
ल्यप्ट राइट ल्यप्ट राइट। अटैनसन।
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सर्वधिकार @ महेंद्र ध्यानी

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" द मेरी उत्तराखण्ड सरकार "
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Garhwali poetry by Manoj Kumar Bhatt
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धन - धन मेरो उत्तराखण्ड,
धन - धन यां की सरकार....
घोटालों  पर वाच नी गाढ़ा ,
दारु विचण पर लाचार ....

वर्षाणया गोड़ सी मुखियामन्तरि
साल द्वी सालम भियाणा ....
लैंद की आस मा जनता विचारी,
खुटों बांधी - बांधी पनाणा ....

नदी खैणी -  खैणी रुप्प्या कमाणा,
जमीन बेची - बेची  पुरयाणा...
जात्रा कु यात्रा बणे  - बणे,
आस्था भी रुप्प्यां बिकाणा...

डबल इंजन की सरकार ,
डबल पड़िगे महंगाई  मार....
न रोजगार चिंता न पलायन बात,
विकास माला जपणा सरकार...

जनता वोट मा ब्यास-ब्यास खिलणा,
राज करण तक  सोचीं.....
चार क्वाठा खेल मा जनता अल्झें,
पग्गा घसीटा लंगड़ी आँखमिचीं...                       
[11:30 PM, 6/7/2017] +91 99174 10522: " द मेरी उत्तराखण्ड सरकार "

धन - धन मेरो उत्तराखण्ड,
धन - धन यां की सरकार....
घोटालों  पर वाच नी गाढ़ा ,
दारु विचण पर लाचार ....

वर्षाणया गोड़ सी मुखियामन्तरि
साल द्वी सालम भियाणा ....
लैंद की आस मा जनता विचारी,
खुटों बांधी - बांधी पनाणा ....

नदी खैणी -  खैणी रुप्प्या कमाणा,
जमीन बेची - बेची  पुरयाणा...
जात्रा कु यात्रा बणे  - बणे,
आस्था भी रुप्प्यां बिकाणा...

डबल इंजन की सरकार ,
डबल पड़िगे महंगाई  मार....
न रोजगार चिंता न पलायन बात,
विकास माला जपणा सरकार...

जनता वोट मा ब्यास-ब्यास खिलणा,
राज करण तक  सोचीं.....
चार क्वाठा खेल मा जनता अल्झें,
पग्गा घसीटा लंगड़ी आँखमिचीं...

सर्वाधिकार सुरक्षित @  मनोज कुमार भट्ट यमकेश्वर पौड़ी...

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 " वु "
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Garhwwali Verse by Dharmendra Negi
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अफ्वु भग्यान गंगाळ तैरि गैनि वु
हमकु यख जिबाळ कैरि गैनि वु
मुख दिखैकि घड़ेक कु सुख को
सदनि कु अंदाळ कैरि गैनि वु
चप्प लीसु लगैsहम्हरा गिच्चा परै
सैरि दुन्या मा बबाल कैरि गैनि वु
ड्वारा-कोन्ना रीता कैरी अन्न का
भुम्याळ मा अग्याळ धैरि गैनि वु
माटाsभौ ह्वेग्यो नि रैगे क्वी कीमत
लूटी हमतैं कंगाल कैरि गैनी वु
हौंस - उलार ली गैनि वु अफुदगड़
'खुदेड़' तैं फिक्वाळ कैरि गैनि वू
सर्वाधिकार सुरक्षित :-
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ
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"त्यारा गौं मा"
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Garhwali Poetry by Payash Pokhara 
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कन चाल इबरै दां हवा, त्यारा गौं मा ।
सबि बणगीं बौळ्या-बवा, त्यारा गौं मा ॥

अब किळै सब्या माबत अधीता ह्वैगीं ।
पैलि त छाया सवा-प्यवा, त्यारा गौं मा ॥

मंगळेर बणि रैंदि छे जख कुळैं दिन रात ।
कैन थाम वा ठंडि हवा, त्यारा गौं मा॥

निदिता दुसमन अर अणत्वसि दगड़्या।
जु बि द्याख वी अपखवा, त्यारा गौं मा॥

अपणि देळि जनै तेरि नजर किळै नि गै ।
नि पूछ राति कख रवा, त्यारा गौं मा ॥

आंख्यूं मा त क्वी जिकुड़ि मा तेरि बैठ।
मीथैं त मील तातू तवा, त्यारा गौं मा ॥

"पयाश" त हवा बतास खाणा कु ऐ छौ।
सुबेरल्हेकि पियाल पवा, त्यारा गौं मा॥

Copyright@ @पयाश पोखड़ा ।
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  नेतागिरी 
-
Satirical Garhwali Poem by Narendra Kathait
-

अरे लाटा !
सुद्धि नेतगिरी नि करदी
अगर छै  तू तागतबर
 त  त्वे हमारि
 क्या जरोरत प्वङगी
अर -
 अगर छै तू निरबल
त लाटा !
हमारू छै हमारा बीच रे
अरे चुचा !
जन हम हिटणा छवां
तनि तू बि हीट ली ।
Copyright@ नरेँद्र कठैत


--




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सुपिणा मा गौं

-

Garhwali poem by Darshan Singh Rawat Pankhandai

-

ब्यालि राति म्यारु सुपिणा मा,
म्यारु गौं म्यारु मुलुक आई।
बल खुद लगणीं च दि, तु रूणू किलै छाई।।

अरे इना सूणिदी, पैलि जरा चुप ह्वैदी।
मेरी बात पर जोर से गेड बांधि देदी।।

कैदन त्यारा दाजी परदाजी यख ऐंई।
जौंल कूड़ि फुंगडी अर घाटा बाटा सजैंई।।
पैलि त उ सिरफ चार मौं ऐंई,
आज तुम चौसठ ह्वैग्योऊ।
फुंगड्यूं का खंडका देखिदी,
भलु च भंडिसि उंद चलि ग्योऊ।।

यखी रैंदा त कनुक्वै हिटदा।
सैर्या गळ्या बाटा बिगाणां रैन्दा।।
अरै त्यारा ब्वै बाबुल इलैई त पढैई।
नौकरी कैर ब्वाल अब ज्वान ह्वैगेईं।।

वैदिन जांद तू कनु रूणु छाई।
समझ वैदिनी तिल गौं छोडि द्याई।।।

अपणा बाल बच्चों म खुश रैई।
कभि कभि मैमान सि आणु जाणु रैई।।
अपणि खुद मिटै अर मिथैं भि देखि जैई।
खुश छौं मी, तु अपुणु पराण ना झुरैई।।

अपणि बोलि भाषा संस्कार ना बिसरैई।
जख भि रैलु खुश रै,अपणि पछ्याण बणैई।।

सर्वाधिकार सुरक्षित @:-
दर्शनसिंह रावत "पडखंडाई"
दिनांक :-06/06/2016

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बग्दी जांदी छे न्यार अ
-
Poem by Balkrishna Dhyani

-
अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि बग्दी जांदी छे न्यार अ
वख देखा अब सूना हुंयाँ
पड्युं अब अपडो गौं गोठ्यार

कन बिन्सरी सुबेर ऐई
अब की बारी ऐ मेरु पहाड़ा
१७ बरस ह्वैगे राज्य बणिक
पलायन परी अब बी चिंता बिचार अ

कख देखन हुमन भगी
अब रौला ,थौला वो गौला
कख ग्युं हुला मेरु ढूँगा गारों
मां हरयूं बलपन कु बौला

अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि जांदा छ टिपण हिंसोला
वख देखा अब सुखंण गलण लग्युं
काफल आरु औरृ कीनमोडा
--

Copyright@ Balkrishna Dhyani


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